बीकानेर. देवताओं में प्रथम पूज्य भगवान गणेश का जन्मोत्सव यानी कि गणेश चतुर्थी आज है. भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी कहते हैं जिसे व्यापक रूप से सम्पूर्ण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है. जीवन में किसी भी मांगलिक कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है.
ऐसे करें पूजा : इस दिन प्रातः काल श्वेत तिलों के उबटन से स्नान करके मध्याह्न (श्रीगणेश का जन्म समय) में श्रीगणेश जी का पूजन आह्वान, आसन, अर्ध्य, पाद्य, आचमन, पंचामृत स्नान, शुद्धोदक स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवित, सिंदूर, आभूषण, दूर्वा, धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, पान आदि से करते हुए दो लाल वस्त्र दान देने चाहिए. पूजन के समय घी से निर्मित इक्कीस लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए. जो लोग अपने घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठान व कार्यलयों में भगवान गणेश की पूजा अर्चना करते हैं साथ ही घर और प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर लगी गणेश प्रतिमा का पूजन भी किया जाता है. विघ्न विनायक श्रीगणेश जी को देवताओं में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है.
श्रीगणेश देवताओं में प्रथम पूजनीय हैं और बुद्धि के देवता हैं. गणेश जी का वाहन चूहा है. इनकी दो पत्नियाँ ऋद्धि और सिद्धि हैं और इनका प्रिय भोग मोदक है. इस दिन प्रात:काल स्नानादि करके गणेशजी की प्रतिमा को सिंदूर चढ़ाकर षोडशोपचार विधि से पूजा करते हैं और दक्षिणा अर्पित करके इक्कीस लड्डुओं का भोग लगाते है. इनमें से पांच लड्डू गणेशजी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों को दान में देने चाहिए. इस दिन गणपति पूजन करने से बुद्धि, ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है और सभी विघ्न-बाधा नष्ट हो जाती है.
चंद्रदर्शन नहीं करें : गणेश चतुर्थी के दिन रात्रि में चन्द्र दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इससे मिथ्या कलंक का भागी बनना पड़ता है. यह इस दिन चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए.
गणेशजी व्रत की पौराणिक कथा : एक बार महादेव जी पार्वती सहित नदी के तट पर गए. वहां पार्वती ने भगवान शंकर जी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की. शिवजी ने कहा हमारी हार-जीत का साथी कौन होगा. पार्वती न तत्काल घास के तिनके बटोर कर मनुष्य का पुतला बना कर उसमें प्राण देते हुए कहा कि बेटा हम चौपड़ खेलने लगे हैं. खेल के अंत में तुम हार-जीत का साक्षी, बताना कि कौन जीता कौन हारा ? खेल में तीनों बार पार्वती जी जीत गईं. अंत में बालक से हार जीत पूछी गई तो उसने महादेवजी को विजयी बताया. जिससे रूष्ट होकर पार्वती ने उसे एक पैर से लंगड़ा होकर वहां कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का श्राप दे दिया. बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा कि माता मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है. मैंने किसी कुटिलता के कारण ऐसा नहीं किया है. मुझे क्षमा कीजिये, तब पार्वती ने उससे कहा कि यहां नाग कन्याएं गणेश पूजन करने आएंगी. उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे. इतना कहकर वे कैलाश पर्वत पर चली गई.
एक वर्ष बाद वहां श्रावण मास में नाग कन्याएं गणेश पूजन के लिए आईं. नाग कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई. तत्पश्चात् बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया. गणेशजी ने उसे दर्शन दे कर कहा कि मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूं मनवांछित वर मांगने का वरदान सुनकर बालक ने भगवान गणेश से कहा कि मेरे पांव में इतनी शक्ति दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुंच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएं. गणेशजी के वरदान से बालक भगवान शिव के चरणों में पहुंच गया. शिवजी ने उससे वहाँ तक पहुँचने के साधन के बारे में पूछा. बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी. उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वती शिवजी से भी विमुख हो गई थीं. इसके बाद भगवान शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन पर्यंत श्री गणेशजी का ध्यान किया. जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जागृत हुई. वे शीघ्र कैलाश पर्वत पर पहुंची. वहां पहुंचकर पार्वती जी ने शिवजी से पूछा कि आपके लौटने की इच्छा हुई है तो शिवजी ने गणेश व्रत का इतिहास बताया. तब पार्वजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यंत 21-21 की संख्या में दुर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया. 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वजी से जा मिले. उन्होंने भी मां के मुख से इस व्रत का महात्म्य सुना. कार्तिकेय ने भी यही व्रत विश्वामित्र जी को बताया. विश्वामित्र जी ने व्रत करके गणेशजी से जन्म से मुक्त होकर ब्रह्मा ऋषि होने का वर मांगा, गणेशजी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की.