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दिल्ली के महर्षि वाल्मीकि मंदिर से गांधी जी का है विशेष नाता, बिताए थे यहां 214 दिन - Gandhi Jayanti Special 2024

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : 2 hours ago

Gandhi Jayanti Special: देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 155वीं जयंती मना रहा है. ऐसे में बापू के आजादी के आंदोलन और उनकी जिंदगी से जुड़े हर पहलू को देश याद कर रहा है. नई दिल्ली के मंदिर मार्ग पर स्थित वाल्मीकि मंदिर भी एक जगह है, जहां बापू ने अपनी जिंदगी के 214 दिन बिताए थे .आइए, गांधी जयंती पर आपको इस मंदिर के बापू कनेक्शन के बारे में बताते हैं.

दिल्ली के महर्षि वाल्मीकि मंदिर से गांधी जी का विशेष संबंध
दिल्ली के महर्षि वाल्मीकि मंदिर से गांधी जी का विशेष संबंध (ETV BHARAT)

नई दिल्ली: आजादी के संग्राम के दिनों में महात्मा गांधी जहां भी गए या रुके वहां आज भी उनसे जुड़ी चीजें और यादें मौजूद हैं. ऐसे ही एक जगह है, नई दिल्ली के मंदिर मार्ग पर स्थित वाल्मीकि मंदिर. यहां बापू अप्रैल 1946 से जून 1947 के बीच 214 दिन रुके थे. इस बात को 77 साल बीत चुके हैं, लेकिन उनसे जुड़ी यादों को आज भी इस मंदिर में बेहद संजो कर रखा गया है. महर्षि वाल्मीकि मंदिर में बाईं तरफ बापू का कमरा है. यहां उनका चरखा, मेज, लकड़ी से बना कलम स्टैंड, आसन और बिस्तर वैसा ही है जैसा उन्होंने इसका इस्तेमाल किया था.

वर्तमान में मंदिर की देख रेख करने वाले महर्षि वाल्मीकि मंदिर के स्वामी कृष्णन शाह विद्यार्थी महाराज ने ETV भारत के साथ खास बातचीत में बताया कि आजादी से पहले राष्ट्रपिता यहां पर एक अप्रैल 1946 से जून 1947 के बीच आते रहे. इस दौरान वह 214 दिन यहां रुके थे. यह वह समय था जब देश आज़ाद नहीं हुआ था.

दिल्ली के महर्षि वाल्मीकि मंदिर से गांधी जी का विशेष संबंध (ETV BHARAT)

महात्मा गांधी ने बताया था यहां रुकने की वजह
विद्यार्थी महाराज ने बताया कि जब महात्मा गांधी इस मंदिर में रुके थे उस समय एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि उन्होंने वाल्मीकि मंदिर में ही रुकने का फैसला क्यों किया? इस पर बापू ने जवाब दिया कि "वह सभी धर्मों का सम्मान करते हैं. वाल्मीकि मंदिर में रुकने का निर्णेय इसलिए क्योंकि वाल्मीकि जी द्वारा बताये गए मार्ग पर चल कर ही प्रभु राम पुरोषत्तम साबित हुए थे, तो उन्हीं वाल्मीकि जी की शरण में रह कर आज़ादी के सपने को देखना चाहता हूँ.

जीवन के अंतिम समय में भी यहीं रहना चाहते थे बापू
स्वामी ने बताया कि जब गांधी जी मंदिर में आए तो उन्होंने वाल्मीकि समाज के लोगों से यहां ठहरने की इजाजत मांगी. इस पर वाल्मीकि समाज के लोगों ने हामी भर दी. वहीं गांधी जी यह भी कहा था कि वह अपने जीवन के अंतिम समय को भी इसी मंदिर में बिताना चाहते हैं, ताकि यहां रहने वाले वाल्मीकि समुदाय के लोगों की पीड़ा और समस्या को समझ सकें. आज भी इस वाल्मीकि बस्ती में रहने वाले हर इंसान के जेहन में गांधी बस्ते हैं.

स्वामी ने बताया कि गांधी जी जिस कमरे में रुके थे, उसमें वाल्मीकि समाज के साधु-संत रहा करते थे. इसके साथ यहां एक स्कूल भी चलता था, जिसे देखकर गांधीजी ने भी बच्चों को पढ़ाने की इच्छा जताई थी.

ये भी पढ़ें : सूट-बूट से धोती में आने की कहानी, जब 'मोहनदास' से 'महात्मा' बने गांधी - Gandhi Jayanti 2024

गांधी के उपयोग किए गए सामान को सहेज कर यहां रखा गया
जिस कमरे में बापू रहते थे उसे बाहर बापू निवास लिखा हुआ है. कमरे के अंदर उनका आसन, मेज, चरखा, लकड़ी का कलम स्टैंड आज भी उसी तरह से मौजूद है. गांधीजी की एक तस्वीर लगी है. उनके बिस्तर को सफेद चादर से लपेट कर रखा गया है. दीवार पर जवाहरलाल नेहरू, लार्ड माउंटबेटन, वल्लभभाई पटेल आदि नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें लगी हुई हैं. एक अन्य हिस्से में महर्षि वाल्मीकि, पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन और 2014 में मंदिर आए वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें लगी हुई है.

ये भी पढ़ें : राष्ट्रपति और पीएम मोदी समेत गणमान्यों ने बापू और लाल बहादुर शास्त्री को दी श्रद्धांजलि

नई दिल्ली: आजादी के संग्राम के दिनों में महात्मा गांधी जहां भी गए या रुके वहां आज भी उनसे जुड़ी चीजें और यादें मौजूद हैं. ऐसे ही एक जगह है, नई दिल्ली के मंदिर मार्ग पर स्थित वाल्मीकि मंदिर. यहां बापू अप्रैल 1946 से जून 1947 के बीच 214 दिन रुके थे. इस बात को 77 साल बीत चुके हैं, लेकिन उनसे जुड़ी यादों को आज भी इस मंदिर में बेहद संजो कर रखा गया है. महर्षि वाल्मीकि मंदिर में बाईं तरफ बापू का कमरा है. यहां उनका चरखा, मेज, लकड़ी से बना कलम स्टैंड, आसन और बिस्तर वैसा ही है जैसा उन्होंने इसका इस्तेमाल किया था.

वर्तमान में मंदिर की देख रेख करने वाले महर्षि वाल्मीकि मंदिर के स्वामी कृष्णन शाह विद्यार्थी महाराज ने ETV भारत के साथ खास बातचीत में बताया कि आजादी से पहले राष्ट्रपिता यहां पर एक अप्रैल 1946 से जून 1947 के बीच आते रहे. इस दौरान वह 214 दिन यहां रुके थे. यह वह समय था जब देश आज़ाद नहीं हुआ था.

दिल्ली के महर्षि वाल्मीकि मंदिर से गांधी जी का विशेष संबंध (ETV BHARAT)

महात्मा गांधी ने बताया था यहां रुकने की वजह
विद्यार्थी महाराज ने बताया कि जब महात्मा गांधी इस मंदिर में रुके थे उस समय एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि उन्होंने वाल्मीकि मंदिर में ही रुकने का फैसला क्यों किया? इस पर बापू ने जवाब दिया कि "वह सभी धर्मों का सम्मान करते हैं. वाल्मीकि मंदिर में रुकने का निर्णेय इसलिए क्योंकि वाल्मीकि जी द्वारा बताये गए मार्ग पर चल कर ही प्रभु राम पुरोषत्तम साबित हुए थे, तो उन्हीं वाल्मीकि जी की शरण में रह कर आज़ादी के सपने को देखना चाहता हूँ.

जीवन के अंतिम समय में भी यहीं रहना चाहते थे बापू
स्वामी ने बताया कि जब गांधी जी मंदिर में आए तो उन्होंने वाल्मीकि समाज के लोगों से यहां ठहरने की इजाजत मांगी. इस पर वाल्मीकि समाज के लोगों ने हामी भर दी. वहीं गांधी जी यह भी कहा था कि वह अपने जीवन के अंतिम समय को भी इसी मंदिर में बिताना चाहते हैं, ताकि यहां रहने वाले वाल्मीकि समुदाय के लोगों की पीड़ा और समस्या को समझ सकें. आज भी इस वाल्मीकि बस्ती में रहने वाले हर इंसान के जेहन में गांधी बस्ते हैं.

स्वामी ने बताया कि गांधी जी जिस कमरे में रुके थे, उसमें वाल्मीकि समाज के साधु-संत रहा करते थे. इसके साथ यहां एक स्कूल भी चलता था, जिसे देखकर गांधीजी ने भी बच्चों को पढ़ाने की इच्छा जताई थी.

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गांधी के उपयोग किए गए सामान को सहेज कर यहां रखा गया
जिस कमरे में बापू रहते थे उसे बाहर बापू निवास लिखा हुआ है. कमरे के अंदर उनका आसन, मेज, चरखा, लकड़ी का कलम स्टैंड आज भी उसी तरह से मौजूद है. गांधीजी की एक तस्वीर लगी है. उनके बिस्तर को सफेद चादर से लपेट कर रखा गया है. दीवार पर जवाहरलाल नेहरू, लार्ड माउंटबेटन, वल्लभभाई पटेल आदि नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें लगी हुई हैं. एक अन्य हिस्से में महर्षि वाल्मीकि, पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन और 2014 में मंदिर आए वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें लगी हुई है.

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