ETV Bharat / state

त्रिवेंद्र काल के भू-कानून को धामी सरकार बदलेगी, TSR बोले- निवेश के लिए था संशोधन - UTTARAKHAND BHOO KANOON

भू कानून बदलाव पर त्रिवेंद्र रावत ने दी सफाई, कहा पहाड़ों में निवेश के लिए किया था संशोधन, कांग्रेस ने बताया नूरा-कुश्ती

UTTARAKHAND BHOO KANOON
भू कानून बदलाव पर त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्रतिक्रिया (Photo- ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 4, 2024, 4:08 PM IST

Updated : Oct 4, 2024, 6:14 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में सख्त भू कानून को लेकर लगातार आमजन द्वारा आवाज उठाई जा रही है. इसी बीच धामी सरकार ने एक बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि पिछली भाजपा सरकार द्वारा भू कानून में जो संशोधन किए गए थे, उन्हें वापस किया जाएगा. ऐसे में अब तत्कालीन सरकार द्वारा भू कानून में किए गए बदलाव को लेकर हो रही आलोचनाओं पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने अपनी प्रतिक्रिया दी है.

पूर्व भाजपा सरकार के फैसले को धामी सरकार ने बदला: पहाड़ों पर जमीनों की खुर्द-बुर्द और खरीद-फरोख्त को रोकने के लिए हाल ही में धामी सरकार ने एक बड़ा एलान किया और कहा कि वह पिछली सरकार द्वारा भू कानून में जो संशोधन किए गए थे, उन्हें वापस किया जाएगा. यानी धामी सरकार ने त्रिवेंद्र सरकार के 2018 में लिए गए फैसले को वापस लेने का निर्णय लिया है.

भू कानून पर त्रिवेंद्र की सफाई (photo-ETV Bharat)

साल 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने किया था संशोधन: साल 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने इस भू कानून में संशोधन किया था. इस दौरान एक अध्यादेश भी लाया गया था, जिसमें उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम 1950 में संशोधन कर दो और धाराएं जोड़ी गईं थी. इन दोनों धाराओं 143 और 154 के तहत पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को खत्म कर दिया गया था.

UTTARAKHAND BHOO KANOON
उत्तराखंड में भू कानून की मांग तेज (Photo- ETV Bharat)

दरअसल, कॉमर्शियल भूमि के लिए भू कानून में अधिकतम 12.5 एकड़ कृषि भूमि खरीदने के प्रावधान से 'अधिकतम' शब्द को हटा दिया था. यानी कोई भी व्यक्ति उत्तराखंड में कितनी भी कृषि भूमि खरीद सकता था. ऐसे में अब प्रदेश में हो सख्त भू कानून की मांग के बीच धामी सरकार ने निर्णय लिया है कि 12.5 एकड़ की अधिकतम सीमा को रखा जाएगा. इसके अलावा धामी सरकार ने उन सभी जमीनों का विवरण तैयार करने का निर्णय लिया है, जो जमीनें भू कानूनों के नियमों को ताक पर रख कर ली गई हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने दी सफाई: पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि साल 2017 में हमने इन्वेस्टर्स समिट की थी और पहाड़ों में निवेश जाए उसके लिए सीलिंग अधिनियम हटाया गया था. आज भी उत्तरकाशी में प्राइवेट अस्पताल नहीं है. पर्यटन, स्वास्थ्य और शिक्षा की दृष्टि से संशोधन किया गया था. इसमें दो शर्त थी कि अगर दो साल में उस भूमि पर काम नहीं होता है, तो वो जमीन सरकार में निहित होगी. उन्होंने कहा भू कानून के लिए अच्छा मॉडल आए, तो ये बहुत अच्छा होगा.

कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने ली चुटकी: कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा कि पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उनकी पिछली सरकार द्वारा भू कानून में किए गए संशोधन को खत्म कर पिछली सरकार और प्रत्यक्ष रूप से त्रिवेंद्र रावत को खूब खरी-खोटी सुनाते हैं और नियम में बदलाव कर देते हैं. उन्होंने कहा कि त्रिवेंद्र रावत ने भू कानून में संशोधन किया था, उससे नुकसान तो हुआ है, लेकिन उसमें एक नियम यह भी था कि 2 साल के भीतर अगर भूमि पर प्रस्तावित कार्य नहीं हुआ, तो सरकार कार्रवाई करते हुए उस भूमि को सरकार में निहित कर देगी.

कांग्रेस बोली भू कानून को लेकर नहीं कोई गंभीर: गरिमा दसौनी ने कहा कि धामी सरकार को बताना चाहिए कि उन्होंने कितनी जमीन इस्तेमाल न होने की वजह से सरकार में शामिल की है. वर्तमान सरकार में भू कानून को लेकर पिछले कई सख्त नियमों की अनदेखी हुई है. इस तरह से लगता नहीं है कि कोई भी सख्त भू कानून को लेकर गंभीर है. यह केवल मुख्यमंत्री और पूर्व सीएम की लड़ाई नजर आ रही है.

भाजपा नेता ने संशोधन पर दी सफाई: भाजपा नेता देवेंद्र भसीन ने बताया कि पूर्व की भाजपा सरकार में जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत थे और इन्वेस्टर्स समिट हुई, तो उस समय इस तरह की चर्चाएं सामने आई की पहाड़ पर अगर स्वास्थ्य और शिक्षा के बड़े प्रोजेक्ट लगते हैं, तो भू कानून में संशोधन करना होगा. इसी वजह से यह संशोधन किया गया था. लेकिन जब अब दूसरी बार भाजपा की सरकार आई और भू कानून में संशोधन के बाद क्या कुछ लाभ राज्य को हुआ, उसकी समीक्षा की गई, तो देखा गया कि जिस मकसद के साथ भू कानून में संशोधन किया गया था, वह मकसद पूरा नहीं हुआ था. बल्कि लोगों ने इसका दुरुपयोग किया था. इसलिए अब सरकार ने इसे वापस लेते हुए एक मजबूत भू कानून बनाने की ओर कदम उठाया है.

मूल निवास भू कानून संघर्ष समिति ने उठाए सवाल: मूल निवास भू कानून संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि त्रिवेंद्र रावत जिस तरह से अपनी सफाई दे रहे हैं, उन्हें यह भी बताना चाहिए कि उनके कार्यकाल में जब इन्वेस्टर्स समिट हुई थी, तो उस समय सवा लाख करोड़ के MOU साइन किए गए थे. आखिरकार यह MOU कहां गए. उन्होंने कहा कि भू कानून को लेकर पिछली भाजपा सरकार ने पहाड़ के विकास के नाम पर संशोधन किया और उत्तराखंड के पहाड़ों पर जमीनें बाहर के लोगों के लिए खोल दी. सरकार जनता को गुमराह करने की कोशिश ना करे. अब तक प्रदेश में कितने लोगों को जमीन दी गई है, इसकी रिपोर्ट सरकार को सामने रखनी चाहिए.

ये भी पढ़ें-

देहरादून: उत्तराखंड में सख्त भू कानून को लेकर लगातार आमजन द्वारा आवाज उठाई जा रही है. इसी बीच धामी सरकार ने एक बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि पिछली भाजपा सरकार द्वारा भू कानून में जो संशोधन किए गए थे, उन्हें वापस किया जाएगा. ऐसे में अब तत्कालीन सरकार द्वारा भू कानून में किए गए बदलाव को लेकर हो रही आलोचनाओं पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने अपनी प्रतिक्रिया दी है.

पूर्व भाजपा सरकार के फैसले को धामी सरकार ने बदला: पहाड़ों पर जमीनों की खुर्द-बुर्द और खरीद-फरोख्त को रोकने के लिए हाल ही में धामी सरकार ने एक बड़ा एलान किया और कहा कि वह पिछली सरकार द्वारा भू कानून में जो संशोधन किए गए थे, उन्हें वापस किया जाएगा. यानी धामी सरकार ने त्रिवेंद्र सरकार के 2018 में लिए गए फैसले को वापस लेने का निर्णय लिया है.

भू कानून पर त्रिवेंद्र की सफाई (photo-ETV Bharat)

साल 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने किया था संशोधन: साल 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने इस भू कानून में संशोधन किया था. इस दौरान एक अध्यादेश भी लाया गया था, जिसमें उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम 1950 में संशोधन कर दो और धाराएं जोड़ी गईं थी. इन दोनों धाराओं 143 और 154 के तहत पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को खत्म कर दिया गया था.

UTTARAKHAND BHOO KANOON
उत्तराखंड में भू कानून की मांग तेज (Photo- ETV Bharat)

दरअसल, कॉमर्शियल भूमि के लिए भू कानून में अधिकतम 12.5 एकड़ कृषि भूमि खरीदने के प्रावधान से 'अधिकतम' शब्द को हटा दिया था. यानी कोई भी व्यक्ति उत्तराखंड में कितनी भी कृषि भूमि खरीद सकता था. ऐसे में अब प्रदेश में हो सख्त भू कानून की मांग के बीच धामी सरकार ने निर्णय लिया है कि 12.5 एकड़ की अधिकतम सीमा को रखा जाएगा. इसके अलावा धामी सरकार ने उन सभी जमीनों का विवरण तैयार करने का निर्णय लिया है, जो जमीनें भू कानूनों के नियमों को ताक पर रख कर ली गई हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने दी सफाई: पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि साल 2017 में हमने इन्वेस्टर्स समिट की थी और पहाड़ों में निवेश जाए उसके लिए सीलिंग अधिनियम हटाया गया था. आज भी उत्तरकाशी में प्राइवेट अस्पताल नहीं है. पर्यटन, स्वास्थ्य और शिक्षा की दृष्टि से संशोधन किया गया था. इसमें दो शर्त थी कि अगर दो साल में उस भूमि पर काम नहीं होता है, तो वो जमीन सरकार में निहित होगी. उन्होंने कहा भू कानून के लिए अच्छा मॉडल आए, तो ये बहुत अच्छा होगा.

कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने ली चुटकी: कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा कि पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उनकी पिछली सरकार द्वारा भू कानून में किए गए संशोधन को खत्म कर पिछली सरकार और प्रत्यक्ष रूप से त्रिवेंद्र रावत को खूब खरी-खोटी सुनाते हैं और नियम में बदलाव कर देते हैं. उन्होंने कहा कि त्रिवेंद्र रावत ने भू कानून में संशोधन किया था, उससे नुकसान तो हुआ है, लेकिन उसमें एक नियम यह भी था कि 2 साल के भीतर अगर भूमि पर प्रस्तावित कार्य नहीं हुआ, तो सरकार कार्रवाई करते हुए उस भूमि को सरकार में निहित कर देगी.

कांग्रेस बोली भू कानून को लेकर नहीं कोई गंभीर: गरिमा दसौनी ने कहा कि धामी सरकार को बताना चाहिए कि उन्होंने कितनी जमीन इस्तेमाल न होने की वजह से सरकार में शामिल की है. वर्तमान सरकार में भू कानून को लेकर पिछले कई सख्त नियमों की अनदेखी हुई है. इस तरह से लगता नहीं है कि कोई भी सख्त भू कानून को लेकर गंभीर है. यह केवल मुख्यमंत्री और पूर्व सीएम की लड़ाई नजर आ रही है.

भाजपा नेता ने संशोधन पर दी सफाई: भाजपा नेता देवेंद्र भसीन ने बताया कि पूर्व की भाजपा सरकार में जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत थे और इन्वेस्टर्स समिट हुई, तो उस समय इस तरह की चर्चाएं सामने आई की पहाड़ पर अगर स्वास्थ्य और शिक्षा के बड़े प्रोजेक्ट लगते हैं, तो भू कानून में संशोधन करना होगा. इसी वजह से यह संशोधन किया गया था. लेकिन जब अब दूसरी बार भाजपा की सरकार आई और भू कानून में संशोधन के बाद क्या कुछ लाभ राज्य को हुआ, उसकी समीक्षा की गई, तो देखा गया कि जिस मकसद के साथ भू कानून में संशोधन किया गया था, वह मकसद पूरा नहीं हुआ था. बल्कि लोगों ने इसका दुरुपयोग किया था. इसलिए अब सरकार ने इसे वापस लेते हुए एक मजबूत भू कानून बनाने की ओर कदम उठाया है.

मूल निवास भू कानून संघर्ष समिति ने उठाए सवाल: मूल निवास भू कानून संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि त्रिवेंद्र रावत जिस तरह से अपनी सफाई दे रहे हैं, उन्हें यह भी बताना चाहिए कि उनके कार्यकाल में जब इन्वेस्टर्स समिट हुई थी, तो उस समय सवा लाख करोड़ के MOU साइन किए गए थे. आखिरकार यह MOU कहां गए. उन्होंने कहा कि भू कानून को लेकर पिछली भाजपा सरकार ने पहाड़ के विकास के नाम पर संशोधन किया और उत्तराखंड के पहाड़ों पर जमीनें बाहर के लोगों के लिए खोल दी. सरकार जनता को गुमराह करने की कोशिश ना करे. अब तक प्रदेश में कितने लोगों को जमीन दी गई है, इसकी रिपोर्ट सरकार को सामने रखनी चाहिए.

ये भी पढ़ें-

Last Updated : Oct 4, 2024, 6:14 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.