देहरादून: उत्तराखंड में हरेला पर्व को सिर्फ वृक्षारोपण तक सीमित ना रखते हुए जवाबदेही को भी इसमें जोड़ा जा रहा है. इसके लिए पहली बार हरेला पर्व पर लगने वाले पौधों की जियो टैगिंग की जा रही है. यही नहीं पंचायतों को भी अधिकार देकर इन्हें वनों से जोड़ने की कोशिश की गई है. बीते दिनों वनाग्नि से निपटने में वन महकमे के पसीने छूट गए थे, जबकि स्थानीय लोगों द्वारा इसमें कोई रुचि नहीं लेने की बात सामने आ रही थी. ऐसे में अब वन विभाग नए कदम उठाकर वनों के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में निर्णय ले रहा है.
उत्तराखंड में आगामी हरेला पर्व पर वृक्षारोपण के लिए 50 लाख पौधों को लगाए जाने का लक्ष्य तय किया गया है, इसमें वन विभाग के अलावा बाकी तमाम महकमे भी शामिल होंगे. सभी विभागों को हरेला पर जिम्मेदारी दी दी गयी है. दरअसल, इस बार जंगलों से आम लोगों के टूटते रिश्ते को जोड़ने की कोशिश की जा रही है. इसमें जंगलों को बढ़ाने के लिए पारदर्शी व्यवस्था बनाई जा रही है. वहीं स्थानीय लोगों का भी इसमें परस्पर सहयोग बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं. हरेला पर्व पर राज्य में करीब 50 लाख पौधों को लगाया जाएगा और हर साल लाखों पौधे राज्य में इस दौरान लगाए जाते हैं, लेकिन इन पौधों का भविष्य में क्या होता है, इसके लिए कोई मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं तैयार किया गया.
ऐसे में अब हरेला पर्व पर जियो टैगिंग की नई व्यवस्था शुरू की जा रही है. जिसमें प्रत्येक पौधे को रोपने के साथ ही इसकी जिओ टैगिंग की जाएगी और इसके साथ ही वृक्षारोपण में लगने वाले पौधे जीपीएस सिस्टम से जोड़ दिए जाएंगे. इसके तहत समय-समय पर इस पौधे की फोटो भी उपलब्ध कराई जाएगी, जिससे इसकी ग्रोथ का भी पता चल पाएगा. यानी वृक्षारोपण में यह पूरी व्यवस्था पारदर्शी बन जाएगी और रोपित होने वाले हर पौधे का हिसाब विभाग के पास होगा.वृक्षारोपण में नए कदम उठाने के साथ ही आम लोगों और वन पंचायत को भी जंगलों से जोड़ने के प्रयास हो रहे हैं. इसलिए वन पंचायत को विशेष अधिकार भी दिए गए हैं. इसके तहत प्रदेश की 11217 वन पंचायत अधिकार संपन्न हुई है.
वन पंचायत को अब अवैध पातन समेत दूसरे अपराधों के मामले में मुकदमा दर्ज करने का अधिकार दिया गया है. इतना ही नहीं ऐसे मामलों में सरपंच को अपराध के आधार पर जुर्माना लगाने का भी अधिकार मिला है. वहीं सरपंचों को फॉरेस्ट ट्रेनिंग अकादमी के माध्यम से प्रशिक्षण दिलाए जाने की भी व्यवस्था की जा रही है. यह सब व्यवस्था वन पंचायत नियमावली में संशोधन के बाद हुई है.राज्य सरकार द्वारा इस तरह के कदम वनों को लेकर नए बदलाव के संकेत दे रहा है और जंगलों की सुरक्षा और संवर्धन में यह कदम हम भी साबित हो सकते हैं.