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पांच युवक-युवती बने संत-साध्वी, सांसारिक जीवन त्यागकर संयम पथ अपनाया - MUMUKSHU TOOK INITIATION

बाड़मेर में पांच युवक-युवती ने सांसारिक जीवन त्यागकर संयम पथ को अपनाते हुए दीक्षा ग्रहण की. इनकी उम्र 24 से 31 साल के बीच है.

बाड़मेर में 5 युवक- युवतियों ने दीक्षा ग्रहण की
बाड़मेर में 5 युवक- युवतियों ने दीक्षा ग्रहण की (ETV Bharat Barmer)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 16, 2025, 7:54 PM IST

बाड़मेर : जिले में जैन धर्म के पांच युवक और युवतियों ने सांसारिक जीवन छोड़कर संयम का रास्ता अपनाया और रविवार को विधिवत रूप से दीक्षा ली. इनमें एक युवक और चार युवतियां हैं. इनकी उम्र 24 से 31 साल के बीच है.

वर्षीदान में दोनों हाथों से दान दिया : रविवार को शहर के कुशल वाटिका में खरतरगच्छाधिपति आचार्य जिनमणिप्रभ सूरीश्वर म.सा. और बहन म.सा. साध्वी डॉ. विधुत्प्रभा श्री म.सा., साध्वी कल्पलता श्री म.सा., साध्वी श्रुतदर्शना श्री म.सा. और साध्वी मयुरप्रभा श्री म.सा. के साथ मुमुक्षु अक्षय मालू, भावना संखलेचा, आरती बोथरा, निशा बोथरा और साक्षी सिंघवी की दीक्षा संपन्न हुई. इससे पहले मुमुक्षुओं ने अपने सांसारिक जीवन की आखिरी वस्तुओं को त्यागते हुए दोनों हाथों से दान दिया और सबका अभिवादन किया.

इसे भी पढ़ें- मुमुक्षु निशा बोथरा की कहानी: कोरोना ने बदली जीवन की दिशा, सांसारिक जीवन त्यागकर बनेंगी साध्वी

आचार्यश्री ने कहा कि वे माता-पिता धन्य हैं जिन्होंने अपने संस्कारों से इन युवाओं को प्रेरित किया. संस्कार एक जीवन की सबसे बड़ी पूंजी होती है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचनी चाहिए. हमें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने चाहिए, ताकि हम गर्व महसूस कर सकें. दीक्षा कार्यक्रम में जैन समाज के लोगों ने उत्साह से भाग लिया.

मुमुक्षुओं की एक झलक पाने के लिए उत्साह : दीक्षा से पहले मुमुक्षुओं को उनके घर से विदाई दी गई. इस दौरान उनके परिजन भावुक थे. घर से विदाई लेने के बाद मुमुक्षु कुशल वाटिका पहुंचे. यहां आचार्यश्री से रजोहरण मिलने पर मुमुक्षु खुश होकर नृत्य करने लगे. नए वस्त्र पहनने के बाद जब मुमुक्षु पांडाल में लौटे, तो उन्हें देखने के लिए लोगों में भारी उत्साह था. फिर उनके केश लोचन के बाद नामकरण किया गया.

ये बने नूतन मुनि और साध्वी : दीक्षा पूरी होने के बाद मुमुक्षु अक्षय मालू बने नूतन मुनि मेरु प्रभु सागरजी, मुमुक्षु भावना संखलेचा बनीं नूतन साध्वी श्री ध्यान रुचि श्रीजी, मुमुक्षु आरती बोथरा बनीं नूतन साध्वी श्री अपूर्ण रुचि श्रीजी, मुमुक्षु निशा बोथरा बनीं नूतन साध्वी अनन्य रुचि श्रीजी, और मुमुक्षु साक्षी सिंघवी बनीं नूतन साध्वी आत्मा रुचि श्रीजी. इस तरह पांच दिवसीय दीक्षा महोत्सव खत्म हुआ.

बाड़मेर : जिले में जैन धर्म के पांच युवक और युवतियों ने सांसारिक जीवन छोड़कर संयम का रास्ता अपनाया और रविवार को विधिवत रूप से दीक्षा ली. इनमें एक युवक और चार युवतियां हैं. इनकी उम्र 24 से 31 साल के बीच है.

वर्षीदान में दोनों हाथों से दान दिया : रविवार को शहर के कुशल वाटिका में खरतरगच्छाधिपति आचार्य जिनमणिप्रभ सूरीश्वर म.सा. और बहन म.सा. साध्वी डॉ. विधुत्प्रभा श्री म.सा., साध्वी कल्पलता श्री म.सा., साध्वी श्रुतदर्शना श्री म.सा. और साध्वी मयुरप्रभा श्री म.सा. के साथ मुमुक्षु अक्षय मालू, भावना संखलेचा, आरती बोथरा, निशा बोथरा और साक्षी सिंघवी की दीक्षा संपन्न हुई. इससे पहले मुमुक्षुओं ने अपने सांसारिक जीवन की आखिरी वस्तुओं को त्यागते हुए दोनों हाथों से दान दिया और सबका अभिवादन किया.

इसे भी पढ़ें- मुमुक्षु निशा बोथरा की कहानी: कोरोना ने बदली जीवन की दिशा, सांसारिक जीवन त्यागकर बनेंगी साध्वी

आचार्यश्री ने कहा कि वे माता-पिता धन्य हैं जिन्होंने अपने संस्कारों से इन युवाओं को प्रेरित किया. संस्कार एक जीवन की सबसे बड़ी पूंजी होती है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचनी चाहिए. हमें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने चाहिए, ताकि हम गर्व महसूस कर सकें. दीक्षा कार्यक्रम में जैन समाज के लोगों ने उत्साह से भाग लिया.

मुमुक्षुओं की एक झलक पाने के लिए उत्साह : दीक्षा से पहले मुमुक्षुओं को उनके घर से विदाई दी गई. इस दौरान उनके परिजन भावुक थे. घर से विदाई लेने के बाद मुमुक्षु कुशल वाटिका पहुंचे. यहां आचार्यश्री से रजोहरण मिलने पर मुमुक्षु खुश होकर नृत्य करने लगे. नए वस्त्र पहनने के बाद जब मुमुक्षु पांडाल में लौटे, तो उन्हें देखने के लिए लोगों में भारी उत्साह था. फिर उनके केश लोचन के बाद नामकरण किया गया.

ये बने नूतन मुनि और साध्वी : दीक्षा पूरी होने के बाद मुमुक्षु अक्षय मालू बने नूतन मुनि मेरु प्रभु सागरजी, मुमुक्षु भावना संखलेचा बनीं नूतन साध्वी श्री ध्यान रुचि श्रीजी, मुमुक्षु आरती बोथरा बनीं नूतन साध्वी श्री अपूर्ण रुचि श्रीजी, मुमुक्षु निशा बोथरा बनीं नूतन साध्वी अनन्य रुचि श्रीजी, और मुमुक्षु साक्षी सिंघवी बनीं नूतन साध्वी आत्मा रुचि श्रीजी. इस तरह पांच दिवसीय दीक्षा महोत्सव खत्म हुआ.

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