रांची: झारखंड राज्य के 05 हजार से ज्यादा मनरेगाकर्मी एक बार फिर आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने में लगे हैं. इस बार सरकार से जितना गुस्सा इन मनरेगाकर्मियों का है उससे ज्यादा गुस्सा राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम से है. मनरेगाकर्मियों का आरोप है कि झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद सरकार का रवैया टाल मटोल वाला है.
झारखंड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ के अध्यक्ष जॉन पीटर बागे ने कहा कि सरकार ने मनरेगाकर्मियों की सेवा स्थायी करने का आश्वासन दिया था. लेकिन चार साल बाद भी आज तक मनरेगाककर्मियों की स्थिति जस की तस बनी हुई है. उन्होंने कहा कि एक ओर जहां राजस्थान जैसे राज्य में भी मनरेगाकर्मी स्थायी हो चुके हैं पर झारखंड में सरकार की नीति अब तक स्पष्ट नहीं हो पायी है.
सदन में विभागीय मंत्री के जवाब से बढ़ी मनरेगाककर्मियों की नाराजगीः
झारखंड विधानसभा के बजट सत्र के दौरान राज्य के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा विधायक भानु प्रताप शाही ने सदन में सवाल उठाया. इसके जवाब में विभागीय मंत्री आलमगीर आलम के जवाब को टाल-मटोल वाला बताते हुए झारखंड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ अध्यक्ष जॉन पीटर बागे ने कहा कि अब उनका संघ हर मोर्चे पर अपनी हक की लड़ाई लड़ रहा है. एक ओर झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन न करने पर संघ ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है. वहीं दूसरी ओर अब जोरदार आंदोलन की रूपरेखा तय की जा रही है. उन्होंने बताया कि लोकसभा चुनाव की घोषणा हो जाने के बाद संघ भी अपनी आंदोलन की घोषणा कर देगा ताकि जनता के बीच इस बात को ले जाया जाए कि कैसे महागठबंधन और कांग्रेस ने उनके साथ वादाखिलाफी की है.
सेवा नियमितीकरण और समान वेतन है मांगः
झारखंड मनरेगा कर्मचारी संघ के अध्यक्ष जॉन पीटर बागे ने बताया कि झारखंड के ज्यादातर मनरेगाकर्मी 15 साल से अधिक समय से रोजगार गारंटी की योजना को धरातल पर उतारने में लगे हैं. विकट परिस्थितियों में हम लोग सेवा कर रहे हैं लेकिन उनका नियमतिकरण नहीं हुआ है. 2019 में महागठबंधन के नेता हेमंत सोरेन ने अपने भाषण और घोषणा-पत्र में सेवा नियमितीकरण और समान काम के बदले समान वेतन की बात कही थी. उन्होंने कहा कि अगर समय रहते सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानी तो गठबंधन सरकार को चुनाव में इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है. संघ के अध्यक्ष ने कहा कि सरकार और खासकर विभागीय मंत्री के जवाब के बाद कई मनरेगाकर्मी डिप्रेशन में चले गये हैं, ऐसे में आंदोलन और हड़ताल ही आखिरी रास्ता बचा है.
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