भोपाल। एमपी की जिन छह सीटों पर 19 अप्रैल को मतदान होना है. जब प्रचार थमने को है, तब अंदाजा लगाना आसान है कि कहां कांग्रेस बीजेपी के बीच कितना कड़ा मुकाबला है. किस सीट पर तीसरा दल खेल बिगाड़ने की स्थिति में है. कौन सा वोटर है, जो हाथ में सत्ता की चाबी लिए है. किसी मुद्दे पर बाजी पलट सकती है. वोटिंग के पहले जानिए बालाघाट, छिंदवाड़ा, शहडोल, सीधी और जबलपुर सीट का टोटल स्कैन. कहां किसमें कितना दम और किस उम्मीदवार के लिए कहां जोखिम है.
देश की निगाहें, छिंदवाड़ा में कमल या कमलनाथ
जिन छह सीटों पर पहले फेज में 19 अप्रैल को मतदान होना है. उनमें छिंदवाड़ा सीट ऐसी है. जिस पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई हैं. बीजेपी के लिए ये सीट इस तरह से प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है कि पार्टी ने पश्चिम बंगाल की जवाबदारी संभाल चुके कैलाश विजयवर्गीय को छिंदवाड़ा में तैनात कर दिया है. अमित शाह रोड शो कर चुके हैं. अकेले छिंदवाड़ा में सीएम डॉ मोहन यादव के दस के करीब दौरे हो चुके हैं. प्रचार के आखिरी चरण तक मोहन यादव ने छिंदवाड़ा में सभाएं ली हैं. ये चुनाव की जमीन पर दिखाई दे रही तैयारी है. बाकी जिस तरह से थोक के भाव में कांग्रेसियों की और कमलनाथ समर्थकों की बीजेपी में भर्ती हुई है. एक तरीके से कमलनाथ अपने राजनीतिक जीवन का पहला चुनाव लड़ रहे हैं, जब उनके सारे मजबूत दाएं बाएं किनारे हो चुके हैं.
नकुलनाथ ने बीता चुनाव 37 हजार के करीब मतों से जीता था. लिहाजा एकतरफा कांग्रेस और कमलनाथ की जीत वाली, इस सीट पर अब कांटे की टक्कर का मुकाबला हो चुका है. कमलनाथ 44 साल के रिश्तों के साथ जज्बात का दांव खेल रहे हैं. बीजेपी इस तैयारी में कि इस सीट पर कमल खिलाने कोई कसर ना छोड़ी जाए. वरिष्ठ पत्रकार पवन देवलिया कहते हैं, 'कमलनाथ से जज्बात निभा गया, छिंदवाड़ा तो कहानी पलट सकती है. बाकी तो बीजेपी ने वाकई किसी मोर्चे पर कोई कसर नहीं छोड़ी है. जिस तरह से मेयर, विधायक दीपक सक्सेना और कामलनाथ के सारे सिपहसालार बीजेपी में आए, ये भले यहां आकर कोई करिश्मा ना कर पाएं, लेकिन साइकोलॉजिकल गेम तो बीजेपी खेल गई है.
बालाघाट में घाटा किसे, कौन फायदे में
बालाघाट इस चुनाव में बीएसपी उम्मीदवार कंकर मुंजारे और कांग्रेस विधायक अनुभा मुंजारे के राजनीतिक अखाड़े में शुरु हुए पारिवारिक विवाद की वजह से भले चर्चा में रहा हो, लेकिन इस बार यहां मुकाबला उम्मीदवारों के लिहाज से भी दिलचस्प है. बीएसपी के उम्मीदवार कंकर मुंजारे लोधी समाज से आते हैं. दिलचस्प ये है कि कांग्रेस ने भी स्रमाट सिंह सरस्वार के रुप में लोधी समाज को ही प्रतिनिधित्व दिया है. कंकर मुंजारे की पत्नी कांग्रेस विधायक अनुभा मुंजारे कांग्रेस उम्मीदवार सम्राट सिंह का प्रचार कर रही हैं. लिहाजा लोधी वोटर पति-पत्नि के अलग अलग प्रचार और विवाद की वजह से बंट भी सकता है. कांग्रेस के लिए मुश्किल भी बन सकता है. बीजेपी ने इस सीट से भारती पारधी को उम्मीदवार बनाया है. बालाघाट में बीजेपी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती, लिहाजा पीएम मोदी की सभा यहां हो चुकी है, लेकिन ये तय मानिए कि बालाघाट संसदीय सीट की चाबी लोधी वोटर के हाथ में है.
मंडला कुलस्ते पर दांव, आदिवासी आएंगे क्या
तीन महीने पहले विधानसभा चुनाव हारे कुलस्ते पर बीजेपी ने लोकसभा में फिर दांव लगा दिया. वजह केवल मंडला में मजबूत आदिवासी वोटर. वो आदिवासी जो कभी कांग्रेस के पंजे का साथ मजबूती से थामे खड़ा था और अब धीरे-धीरे बीजेपी का रुख कर रहा है, लेकिन कांग्रेस बीजेपी के अलावा इस सीट पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का प्रभाव भी है. कांग्रेस ने इस सीट से ओमकार सिंह मरकाम को अपना उम्मीदवार बनाया है. राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं 'ये फग्गन सिंह कुलस्ते के राजनीतिक जीवन का सबसे अहम चनाव है, क्योंकि हारने के बाद भी पार्टी ने उन्हें मौका दिया है. अपनी सियासी पारी संभालने कुलस्ते के लिए जीत हर कीमत पर जरूरी है.'
सीधी नहीं है सीधी लोकसभा की राह
चुनाव की तारीखों के एलान के बाद बीजेपी छोड़कर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से मैदान में उतरे अजय प्रताप सिंह खेलने से पहले खेल बिगाड़ने की तैयारी में है. कमोबेश इसी भूमिका में निर्दलीय उम्मीदवार लक्ष्मण सिंह वैश्य हैं. अब तक सीधी पर हुए 16 चुनाव में कांग्रेस बीजेपी को बराबर बराबर मौका दिया. मतदाता ने सात-सात बार दोनों पार्टियां जीती. बीते चुनाव में यहां से बीजेपी की सांसद रीति पाठक बनी थी. इस बार बीजेपी ने राजेश मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है. जबकि कांग्रेस से कमलेश्वर पटेल उम्मीदवार है. इन दो दलों के बीच रहने वाला सीधा मुकाबला गोंगपा की वजह से जरा टेढ़ा और मुश्किल हो गया है. पवन देवलिया कहते हैं 'सीधी में आदिवासी वोटर की तादात भी तीस फीसदी से अधिक है. ब्राह्मण और ठाकुर वर्ग का भी वोटर है, लेकिन खेल बिगाड़ने वाले दोनों दलों की चुनौती है.
शहडोल आदिवासी के हाथ में चाबी
शहडोल लोकसभा सीट की चाबी आदिवासी वोटर के हाथ में है. तीन महीने पहले के वोटर का सियासी मिजाज से इस सीट का आंकलन करें तो विधानसभा में केवल एक पुष्पराजगढ़ सीट कांग्रेस के हाथ आई थी, लेकिन कांग्रेस ने उसी पुष्पराजगढ में हाथ को मजबूत करने वाले फुंदेलाल मार्को को मैदान में उतार दिया. शहडोल से मौजूदा सांसद हिमाद्री सिंह पर बीजेपी ने फिर भरोसा जताया. शहडोल में पीएम मोदी की गारंटी और सरकारी योजनाओं का लाभ बीजेपी की जमीन मजबूत कर सकता है. खास कर बैगा आदिवासियों के लिए. मजबूत वोटर भी बैगा ही है. जिसके हाथ में शहडोल की सत्ता की चाबी है. आदिवासी वोटर का ही दम है कि राहुल गांधी से लेकर पीएम मोदी तक एमपी की इस सीट पर दोनों दिग्गजों का दौरा हो चुका है.
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जबलपुर तीन दशक से कमल ही खिला
जबलपुर लोकसभा सीट बीजेपी के मजबूत गढ़ में गिनी जाती है. जहां से पार्टी तीन दशक से जीत हासिल कर रही है. वोटर कमल खिला रहा है. यहां से लंबे समय तक राकेश सिंह बीजेपी के सांसद रहे. इस बार उन्हें विधानसभा में उतार देने के बाद बीजेपी आशीष दुबे को अपना उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस के प्रत्याशी दिनेश यादव हैं. छिंदवाड़ा की तरह ही जबलपुर में भी कांग्रेस में बड़ी टूट हुई है. एन चुनाव के पहले मेयर तक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. दमदार सीट होने के बावजूद बीजेपी ने यहां जोखिम नहीं लिया. पीएम मोदी जहां इस सीट पर रोड शो के लिए पहुंचे, तो जेपी नड्डा ने प्रबुध्द जन सम्मेलन के जरिए वोटरों को साधा.