लखनऊ : राजधानी स्थित संगीत नाटक अकादमी में एक अनोखा 'गांव' सजाया गया है. गांव में कच्चे घरों को बनाया गया है. साथ ही यहां पर एक हाॅट बाजार भी लगाया गया है. गांव विशेष तौर पर जनजाति भागीदारी उत्सव के लिए तैयार किया गया है. गांव में घूमने आने वाले लोग स्पेशल खाने का भी लुफ्त उठा सकते हैं.
उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी ने बताया कि ऐसा पहली बार हो रहा है जब उत्सव स्थल को एक गांव के रूप में विकसित किया गया है. स्टेज को भी एक झोपड़ी की तरह सजाया गया है. इसे तैयार करने के लिए हिमाचल की धर्मशाला से मनीषा ठाकुर अपने 15 कलाकारों के साथ लखनऊ आई हुईं हैं. मनीषा ठाकुर ने बताया कि इस पूरे गांव को पराली से तैयार किया गया है. जिसे विशेष वॉटरप्रूफ घास के तौर पर जाना जाता है. इससे इस पूरे गांव की झोपड़ी तैयार की गई है. जूट से बेस बनाकर मिट्टी की परत से दीवार तैयार की गई है. यह पूरा गांव इको फ्रेंडली है. इसमें प्लास्टिक का कहीं भी कोई इस्तेमाल नहीं किया गया है, यहां बनी चीजों को रिड्यूस किया जा सकता है. मनीषा ठाकुर ने बताया कि आज आमतौर पर घरों में टाइल्स और मार्बल के प्रयोग हो रहे हैं, लेकिन प्राकृतिक तौर पर मिलने वाली मिट्टी और घासफूस से जो यह घर जनजाति समाज के लोग तैयार करते हैं वह 60 साल तक टिके रहते हैं.
देसी व्यंजनों का स्वाद लोगों को कर रहा आकर्षित : इस समारोह में जनजाति लोकवाद्यों का मंचीय प्रदर्शन भी लगाया गया है. बुक्सा, सहरिया जनजाति, त्रिपुरा का होजागिरी नृत्य, छत्तीसगढ़ के भुंजिया आदिवासी लोकनृत्य का भी आनंद उठा सकेंगे, वहीं 20 नवंबर को जनजाति कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया जाएगा. आयोजन में घूमंतु जाति के कलाकार भी अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे. जादू के भी कार्यक्रम होंगे. आयोजन में देसी व्यंजनों का स्वाद भी आकर्षित करेगा. इसमें सबसे रोचक बात यह है कि यहां पर आप न केवल आदिवासी व्यंजनों का लुफ्त उठा सकते हैं, बल्कि इनको बनाने के तरीकों को आप एक्सर्ट द्वारा सीख भी सकते हैं.
बजार घूमने आए विजय ने बताया कि हम लोग लखनऊ के रहने वाले हैं, यहां पर थोड़ा डिफरेंट टाइप का अरेंजमेंट किया गया है. जनजातियों के लगाए हुए स्टॉल्स देखने की अपॉर्चुनिटी बहुत कम मिलती है.
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