प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पति और उसके नाबालिग भाई-बहनों सहित पूरे परिवार पर दुर्भावना से आपराधिक मुकदमा दर्ज कराना क्रूरता है. इस स्थिति में विवाह जारी रखने की उम्मीद नहीं की जा सकती. 29 साल से बिना किसी कारण के पति से पत्नी अलग रह रही थी. कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए याची पति की तलाक के लिए दाखिल अपील को स्वीकार कर लिया है. न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डी रमेश की खंडपीठ ने बंसत कुमार द्विवेदी की याचिका पर यह आदेश दिया.
उत्तराखंड, हरिद्वार निवासी याची बंसत कुमार की शादी 29 अप्रैल 1992 को बलिया निवासी युवती से हुई थी. याची पेशे से इंजीनियर है. शादी के बाद याची की पत्नी बमुश्किल दो साल तक उसके साथ रही. दोनों पक्षों के बीच इस दौरान कटु संबंध रहे. 8 नवंबर 1995 को पत्नी ने अपने पति को स्थायी रूप से छोड़ दिया और अपने माता-पिता के घर बलिया चली गयीं. इसके बाद से 29 साल तक दोनों अलग रहे.
पति ने हरिद्वार में सिविल जज, सीनियर डिवीजन की अदालत में तलाक का मुकदमा दायर किया. पत्नी के अनुरोध पर सर्वोच्च न्यायालय ने मुकदमे की कार्यवाही को बलिया में स्थानांतरित कर दिया. ट्रायल कोर्ट बलिया ने तलाक आवेदन को खारिज कर दिया. इस आदेश को याची ने हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. इस दौरान पत्नी ने अपने पति और पति के नाबालिग भाई-बहनों सहित परिजनों पर दहेज उत्पीड़न सहित विभिन्न धाराओं में आपराधिक मुकदमा दर्ज करा दिया.
युवती के भाई ने गवाही में इन दहेज मांगने के आरोपों को झूठा करार दिया. कोर्ट ने कहा कि दुर्भावना पूर्ण आपराधिक मुकदमा दर्ज कराना और बिना कारण के 29 साल तक पति से अलग रहना क्रूरता है. कोर्ट ने तलाक की अपील को स्वीकार कर लिया.