जोधपुर : भारत में मुख्य तौर पर अंजीर की खेती महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों की दोमट मिट्टी में होती है, लेकिन अब ये फसल मारवाड़ में भी लहलहा रही है. जोधपुर के काजरी परिसर में करीब एक हैक्टेर से अधिक भूमि पर इन दिनों डायना किस्म की अंजीर तोड़ी जा रही है. इसके लिए काजरी के वैज्ञानिकों ने काफी मेहनत की, जिसका परिणाम है कि अब थार में अंजीर की खेती संभव हो सकी है.
दरअसल, काजरी से प्रशिक्षण लेकर कुछ प्रगतिशील किसानों ने बाड़मेर और जैसलमेर के साथ ही गंगानगर और हनुमानगढ़ में इसकी खेती शुरू की. काजरी में करीब चार साल पहले वैज्ञानिकों ने अंजीर पर शोध कार्य शुरू किया था. इसमें अंजीर की डायना किस्म के अच्छे परिणाम सामने आए. उसके बाद काजरी ने किसानों को प्रशिक्षित करने का काम शुरू किया. काजरी के निदेशक डॉ. ओपी यादव ने बताया कि किसानों की आय बढ़ाने किए केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान नवाचार करता है. इसके तहत ही किसानों को अंजीर की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.
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अंजीर की खेती के लिए चाहिए पानी : इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम के विभागाध्यक्ष डॉ. धीरज सिंह ने बताया कि काजरी में इस पर शोध कार्य के बहुत अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं. राजस्थान की जलवायु के लिए अंजीर की डायना किस्म बहुत उपयुक्त साबित हुई है. अंजीर की खेती अर्धशुष्क वातावरण और मध्यम तापमान में होती है. लू से इस पौधे को बचाना पड़ता है. किसानों को प्रशिक्षण के दौरान यह बताया जाता है, ताकि उन्हें नुकसान न हो. इसकी खेती के लिए पर्याप्त पानी चाहिए. इसलिए पानी के लिए सिंचाई में बूंद-बूंद विधि का इस्तेमाल किया जा सकता है.
अब अंजीर के फल को सुखाने पर होगा काम : डॉ. सिंह ने बताया कि एक हैक्टेर में 250 पौधे लगते हैं. प्रति पेड़ से 3 साल बाद 15 से 20 किलो अंजीर के फल मिलते हैं. जितनी पेड़ की आयु बढ़ती है, उतना ही उत्पादन बढ़ता है. अंजीर के कच्चे फल 100 से 150 रुपए प्रति किलो के भाव से बाजार में बिकते हैं. हालांकि, अभी इसके कच्चे खाने का चलन नहीं है. जबकि यह बेहद पौष्टिक होता है. अंजीर में फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभदायक है. किसानों में इसे और लोकप्रिय बनाने के लिए इस फल को सुखाने की सरल तकनीक पर काम करने की जरूरत है. वहीं, इससे प्रति हैक्टेयर 5 से 6 लाख की आय हो सकती है.