कुचामनसिटी. संगमरमर नगरी मकराना में मार्बल ही नहीं बल्कि कई कोहिनूर हीरे भी निकलते हैं. इसी का उदाहरण हैं 23 साल के अजय सिंह, जिन्होंने पिता के संघर्ष को देखते हुए जी तोड़ मेहनत की और चार साल में जयपुर में पचास करोड़ वैल्यूएशन की ऑनलाइन स्किल एजुकेशन की कंपनी खड़ी कर दी. उनके पिता 42 साल के पवन कुमार कैंची, छुरी पर धार करने का काम करते हैं.
मकराना के गौड़ाबास में दो गुना चार फीट की छोटी दुकान में पिछले 26 साल से कैंची, छुरी पर धार करने वाले पवन कुमार ने बेटे की कामयाबी को खुद पर और परिवार पर हावी नहीं होने दिया. अभी भी वो अपने काम से प्यार करते हुए कैंची, चाकू के धार करते हैं. वो सभी को यही प्रेरणा देते हैं कि अपना काम करते जाएं, चाहे आप या आपकी संतान कितनी भी काबिल क्यों ना बन जाए, अपना बेस लेवल काम नहीं छोड़ना चाहिए.
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सबसे बड़े एनजी सोर्स पिता : बेटे की कंपनी के बड़े इवेंट्स में सूटेड बूटेड शामिल होने वाले पवन कुमार मकराना में बेहद सादगी में अपनी दुकान में बैठकर अपने काम को एंजॉय करते हैं. मन होता है तो बेटे से मिलने जयपुर चले जाते हैं. कभी काम से फुर्सत मिलती है तो बेटा अजय उनसे मिलने मकराना आ जाता है. सफलता के मुकाम पर पहुंचने वाला अजय बताता है कि पिता के सपोर्ट की वजह से वह आगे बढ़ पाया है. जब भी किसी काम में डिमोटिवेट होता है तो अपने सबसे बड़े एनजी सोर्स अपने पिता और उनके संघर्ष और प्रेरणा को याद करता है.
पहले जानें पिता की कहानी : पवन कुमार आठ साल के थे तभी उनके माता पिता का देहांत हो गया. वे अपने बड़े भाइयों के पास रहे. ज्यादा पढ़ नहीं पाए और उन्होंने 16 साल की उम्र से कैंची में धार करने का काम शुरू कर दिया. परिवार ने कम उम्र में विवाह कर दिया. कैंची की धार लगाते हुए परिवार चलाने के लिए काफी संघर्ष किया. औसत 16 हजार मासिक इनकम के बावजूद बेटे अजय और बेटी भावना को हमेशा पढ़ाई और करियर के प्रति प्रेरित किया. किराए के मकान में रहते हुए दोनों को पढ़ाने के लिए कई बार उन्हें रुपए उधार भी लेने पड़े, लेकिन माता रेखा और पिता ने संघर्ष का दामन नहीं छोड़ा. उनकी जिद थी कि बच्चों को जरूर कामयाबी मिलेगी. बेटी भावना (25) को कुचामन से बीएससी में ग्रेजुएशन करवाया.
मकराना में 12वीं तक स्कूली शिक्षा के बाद बेटे अजय को ग्रेजुएशन के लिए जयपुर भेजा, जहां अजय के लिए किस्मत ने कुछ और ही सोच रखा था. उसने शिक्षा क्षेत्र में लोगों की ऑनलाइन जरूरत को समझा और ग्रेजुएशन को ड्रॉप आउट करते हुए वर्ष 2020 में ऑनलाइन स्किल एजुकेशन कंपनी खड़ी कर दी, जिसकी वैल्यूएशन अभी 50 करोड़ रुपए से अधिक है.
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पिता के संघर्ष को देख प्रयास नहीं छोड़े : अजय सिंह ने बताया कि बचपन से पिता के संघर्ष को देखा है, जिसके चलते माता-पिता को आर्थिक सपोर्ट करने के लिए पढ़ाई के साथ 15-16 साल की उम्र से कुछ न कुछ काम करता रहा. मकराना में पढ़ाई के साथ वर्ष 2019 में सिम बेचने की साइड जॉब की, जिससे पहले महीने की आमदनी दो हजार रुपए हुई. खुशी हुई कि पापा पर अब कम आर्थिक बोझ आएगा. बाद में फ्रीलांस और यूट्यूब पर ऑनलाइन काम किया, लेकिन इतनी ग्रोथ नहीं हो पाई. फिर जून 2020 में ऑनलाइन स्किल एजुकेशन कंपनी का आइडिया आया. जब स्कूल कॉलेज में पढ़ते हैं तो सिर्फ किताबी ज्ञान मिलता है, लेकिन व्यवहारिक ज्ञान नहीं सिखाया जाता. एक हजार लेागों के सामने कैसे बोलना है, इंग्लिश या कोई लैंग्वेज कैसे सीखनी है, इंटरव्यू कैसे देना होता है, ये नहीं सिखाया जाता.
कम संसाधन वाले स्टूडेंट की करेंगे मदद : स्टूडेंट के सपने तो होते हैं, लेकिन उनको पूरा करने का मार्गदर्शन नहीं होता. चार माह मेहनत कर 1 नवंबर 2020 को कंपनी की शुरुआत की. अजय ने बताया कि स्किल बेस्ड ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफार्म में एक स्टूडेंट बहुत सारे सॉफ्ट और हार्ड स्कील सीखकर अच्छी जॉब पा सकता है या फिर अपना निजी काम शुरू कर सकता है. चार साल में डेढ़ लाख से ज्यादा स्टूडेंट एनरॉल हुए, जिसमें उन्हें मल्टीपल कोर्सेस उपलब्ध करवाए जाते हैं. कंपनी की वैल्यूवेशन 50 करोड़ से अधिक की है. वर्तमान में इसमें 25 कर्मचारी-अधिकारी काम करते हैं. अजय अब इसे अगले पांच साल में भारत की टॉप स्किल बेस्ड एजुकेशन प्लेटफॉर्म बनाना चाहता है, जिसमें 10 लाख से ज्यादा स्टूडेंट स्किल बेस्ड एजुकेशन के जरिए अपने मुकाम को हासिल करें. उसके पिता पवन कुमार ने उसे प्रेरणा दी है कि वह टियर-2 और टियर-3 वाले स्टूडेंट जिनके पास संसाधन नहीं होते, उनकी मदद करके उनके करियर को आगे बढ़ाने का प्रयास करें.