नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों को पांच सालों तक पांच फसलों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने के कॉन्ट्रैक्ट का प्रस्ताव दिया है. किसानों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया. कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स कैट का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा 5 फसलों पर एमएसपी के प्रस्ताव को अस्वीकार करना किसानों के हित के विपरीत जा सकता है. किसानों को उक्त प्रस्तावों पर दोबारा विचार करना चाहिए.
किसानों के लिए किया गया कोई भी निर्णय सीधे तौर पर व्यापारियों एवं उपभोक्ताओं को भी प्रभावित करता है. इस दृष्टि से कैट ने सरकार द्वारा 5 फसलों पर एमएसपी देने के प्रस्ताव का विश्लेषण कर उचित बताया है. वहीं, किसानों द्वारा 23 फसलों पर एमएसपी दिये जाने की मांग को देश की अर्थव्यवस्था और उपभोक्ताओं पर एक बड़ा बोझ बताते हुए कहा है, "इससे देश का सारा इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास बिगड़ जाएगा तथा अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्र भी प्रभावित होंगे."
कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा, "सरकार का प्रस्ताव उड़द, मसूर, मक्का, कपास तथा अरहर पर एमएसपी दिये जाने की गारंटी किसानों को इन पांच मुख्य फसलों की ओर प्रेरित करेगा. इनमें वे अधिक निवेश कर सकते हैं. इससे उत्पादन बढ़ेगा और किसानों की आय में वृद्धि होगी. वहीं इस प्रस्ताव से बाजार में मूल्य स्थिरता आएगी तथा पंजीकृत किसानों को निर्दिष्ट मूल्य पर सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद की गारंटी मिलेगी, जो अभी तक नहीं है.
इससे कृषि क्षेत्र और अधिक विकसित होगा. व्यापारी नेताओं ने कहा कि इन पांच फसलों पर एमएसपी देने से किसानों की सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा होगी. जिससे उन्हें अनियामितता और आर्थिक संकट के खिलाफ बचाव मिल सकता है, जो उनका भरोसा और आत्मविश्वास बढ़ाएगा. वहीं, उन्हें बाजार के संकेतों के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है.
खंडेलवाल ने कहा कि 23 उत्पादों पर एमएसपी की मांग अनेक कारणों से अव्यावहारिक है. हालांकि, एमएसपी किसानों को उनकी फसलों के लिए महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान कर सकती है. यह मांग दीर्घ काल तक नहीं चल सकती क्योंकि संभावित बाजार विकृतियों, संसाधन सीमाओं, प्रशासनिक बोझ, आधारितता की जोखिम, वित्तीय दबाव, और खरीद और वितरण में बड़े पैमाने पर असंतुलन होगा. इसका विपरीत प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था और विकास के ढांचे पर पड़ेगा.
व्यापारी नेताओं ने कहा कि एक बड़ी संख्या में फसलों पर एमएसपपी का लागू होना बाजार की गतिविधियों को विकृत कर असंतुलित कर सकता है. वहीं सरकार द्वारा खरीद, भंडारण और वितरण प्रणालियों का प्रबंधन करने में कठिनाई हो सकती है.