खटीमाः उत्तराखंड के तराई इलाके में बसे खटीमा क्षेत्र की यूपी सीमा पर स्थित सहकारी मझोला चीनी मिल डेढ़ दशक के समय से बंद पड़ी है. सन 2009 की तत्कालीन मायावती सरकार में चीनी मिल को बंद कर दिया गया था. वहीं तब से चीनी मिल को खोले जाने के कई प्रयासों के बावजूद भी गन्ना किसानों के लिए उक्त चीनी मिल नहीं खुल पाई है.
वर्तमान में करोड़ों की चीनी मिल की मशीनें धूल फांक रही है. जबकि मझोला नगर को बसाने वाली चीनी मिल की कॉलोनी भी जर्जर हो चुकी है. खटीमा के गन्ना किसान अपनी गन्ने की फसल बेचने के लिए सितारगंज चीनी मिल पर निर्भर हैं. हालांकि, स्थानीय गन्ना काश्तकारों को यूपी-उत्तराखंड की डबल इंजन की सरकार में मझोला चीनी मिल के फिर से खुलने की उम्मीद है.
चीन मिल के निर्माण से अबतक कितनी बदली स्थिति: खटीमा से यूपी सीमा पर स्थित सहकारी मझोला चीनी मिल का निर्माण साल 1962 में हुआ. उस दौरान 2000 से 2500 वर्करों से मझोला चीनी मिल का परिसर गुलजार रहता है. जबकि आज चीनी मिल परिसर कॉलोनी में सिर्फ 60 से 70 कर्मचारी ही निवास करते हैं. वर्ष 1962 मझोला चीनी मिल निर्माण के बाद ही यूपी का मझोला नगर भी अस्तित्व में आया था.
निजी हाथों में देने के कारण भेंट चढ़ी मिल: चीनी मिल परिसर में रह रहे बुजुर्ग कर्मचारी सुरेश चंद्र वर्मा ने बताया कि चीनी मिल मायावती सरकार में वर्ष 2009-10 के दौरान बंद हुई. हालांकि, उसके बाद सरकार चीनी मिल को निजी हाथों में देना चाहती थी. लेकिन सहमति ना होने की वजह से चीनी मिल फिर कभी खुल नहीं पाई. अब अधिकतर कार्मिक यहां से पलायन कर चुके हैं.
राधा रतूड़ी के जीएम होने के दौरान फायदे में थी मिल: वहीं स्थानीय गन्ना किसान जविंदर सिंह के अनुसार तत्कालीन मायावती सरकार ने इस मिल को निजी हाथों में देने हेतु मिल को बंद किया था. लेकिन गन्ना किसानों ने मिल के निजीकरण का विरोध जता सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया था. वहीं जब चीनी मिल बंद हुई तो किसानों को 2 करोड़ 12 लाख रुपए बकाया मिल पर था. इस मिल पर 60 प्रतिशत उत्तराखंड तो 40 प्रतिशत यूपी के गन्ना किसानों का शेयर है. बता दें कि सन 1994-95 में चीनी मिल के संचालन के दौरान जीएम जीएम राधा रतूड़ी भी रही हैं, जो कि वर्तमान में उत्तराखंड की मुख्य सचिव हैं.
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