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चमोली में फूलों की खेती से खिले किसानों के चेहरे, लिलिलय से कमा रहे लाखों रुपए - LILIUM FLOWER FARMING UTTARAKHAND

पहाड़ों में फूलों की खेती से महक रही बगिया, चमोली में तरक्की की इबारत लिख रहे किसान, 21 काश्तकार कमा चुके लाखों रुपए

Chamoli lilium Cultivation
लिलियम से कमाई (फोटो सोर्स- X@ChamoliDm)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 5, 2025, 6:47 PM IST

चमोली: उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में लिलियम की खेती को लेकर काश्तकारों का रुझान बढ़ने लगा है. चमोली जिले में उद्यान विभाग की ओर से संचालित योजनाओं के तहत वर्तमान में 21 काश्तकार लिलियम की खेती कर लाखों की कमाई कर रहे हैं. अब अन्य काश्तकार पर भी लिलियम की खेती को लेकर उत्सुक नजर आ रहे हैं. वहीं, विभागीय अधिकारियों की मानें तो अभी तक 40 से ज्यादा किसान लिलियम उत्पादन के लिए आवेदन कर चुके हैं.

लिलियम फूल की बाजार में काफी डिमांड: बता दें कि लिलियम का फूल गुलदस्ते के साथ ही शादी, विवाह, पार्टी और समारोह में भी सजावट के लिए उपयोग किया जाता है. जिससे लिलियम के फूल की बाजार में काफी मांग होती है. फूल की एक पंखुड़ी की बाजार में 50 से 100 रुपए तक की कीमत आसानी से मिल जाती है.

Chamoli lilium Cultivation
लिलियम की खेती (फोटो सोर्स- X@ChamoliDm)

वहीं, लिलियम के बाजारों में डिमांड को देखते हुए उद्यान विभाग चमोली ने जिला योजना मद से 80 फीसदी सब्सिडी पर लिलियम उत्पादन के लिए काश्तकारों को प्रोत्साहित किया. जिसके चलते बीते साल 21 काश्तकारों ने 26 पॉलीहाउस में करीब 5 लाख 50 हजार रुपए की लिलियम स्टिक की ब्रिकी की.

इस साल भी काश्तकारों ने लिलियम के 35 हजार बल्ब रोपा था. जिसे बेचकर काश्तकार करीब 7 लाख 50 हजार की कमाई कर चुके हैं. लिलियम में मुनाफे को देखते हुए अब अन्य काश्तकारों का भी इस ओर रुझान बढ़ने लगा है. चमोली उद्यान विभाग के सहायक विकास अधिकारी रघुवीर सिंह राणा का कहना है कि काश्तकारों की ओर से जहां बड़ी संख्या में लिलियम उत्पादन को लेकर जानकारी ली जा रही है तो वहीं 40 से ज्यादा काश्तकारों ने आवेदन भी मिल चुके हैं.

Chamoli lilium Cultivation
लिलिमय काश्तकार (फोटो सोर्स- X@ChamoliDm)

काश्तकारों ने लिलियम की ब्रिकी के लिए तैयार किया चैनल: चमोली में उत्पादित फूलों की ब्रिकी के लिए जहां पहली बार विभाग की ओर से विपणन की व्यवस्था की गई तो वहीं अब काश्तकारों ने विभाग के सहयोग से फूलों की ब्रिकी का चैनल तैयार कर लिया है. काश्तकारों ने बताया कि उनके फूलों की मांग गाजीपुर मंडी में बड़े पैमाने पर है. इससे पहले विपणन की समुचित व्यवस्था न होने से उन्हें अच्छा दाम और मार्केट नहीं मिल पाता था, लेकिन अब विपणन की व्यवस्था होने से काफी लाभ मिल रहा है.

क्या है लिलियम? लिली के नाम से पुकारे जाने फूल का वैज्ञानिक नाम लिलियम है. यह लिलीयस कुल का पौधा है. यह 6 पंखुड़ी वाला सफेद, नारंगी, पीले, लाल और गुलाबी रंगों का फूल होता है. जापान में जहां सफेद लिली को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है तो वहीं नारंगी लिली को वृद्धि और उत्साह का प्रतीक माना जाता.

लिली के पौधे अर्द्ध कठोर होता है. लिलियम के फूल कीप के आकार के होते हैं. इसका उपयोग सजावट के साथ ही सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी किया जाता है. उद्यान विशेषज्ञों की मानें तो पॉलीहाउस में लिलियम का फूल 70 दिनों में तैयार हो जाता है. ऐसे में लिलियम की खेती कर किसान आसानी से आय बढ़ा सकता है.

क्या कहते हैं काश्तकार?

  1. गोपेश्वर निवासी नीरज भट्ट का कहना है कि उन्होंने गोपेश्वर के पास रौली-ग्वाड़ में 10 नाली भूमि खरीदी. साथ ही 20 नाली भूमि लीज पर लेकर सरकार की ओर से मिलने वाली सब्सिडी से पॉलीहाउस स्थापित किया. जिसमें उन्होंने जहां 200 कीवी के पौधों का रोपण किया तो वहीं 400 वर्ग मीटर में लिलियम का उत्पादन शुरू किया. जिससे अभी तक 2 लाख रुपए की कमाई हो चुकी है.
  2. बैरागना गांव निवासी भूपाल सिंह राणा ने बताया कि बीते साल घर के पास ही उद्यान विभाग की ओर से सहयोग से 100 स्क्वायर मीटर का पॉलीहाउस स्थापित किया था. जिसमें 2 हजार लिलियम बल्ब का रोपण किया था. जिससे अभी तक 44 हजार रुपए तक की आय हो चुकी है.

चमोली के दशोली, पोखरी और कर्णप्रयाग में संरक्षित कृषिकरण में लिलियम का उत्पादन किया जा रहा है. वर्तमान में जिले में 21 किसान लिलियम का उत्पादन कर रहे हैं. विभाग की ओर से फूलों के विपणन के लिए गाजीपुर मंडी का चैनल बनाया गया है. जिससे काश्तकारों को अपनी उपज के विपणन में सहूलियत मिल रही है. इन काश्तकारों को हो रहे मुनाफे को देखते हुए अन्य काश्तकारों का भी इस ओर रुझान बढ़ रहा है. - जेपी तिवारी, मुख्य कृषि एवं उद्यान अधिकारी, चमोली

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चमोली: उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में लिलियम की खेती को लेकर काश्तकारों का रुझान बढ़ने लगा है. चमोली जिले में उद्यान विभाग की ओर से संचालित योजनाओं के तहत वर्तमान में 21 काश्तकार लिलियम की खेती कर लाखों की कमाई कर रहे हैं. अब अन्य काश्तकार पर भी लिलियम की खेती को लेकर उत्सुक नजर आ रहे हैं. वहीं, विभागीय अधिकारियों की मानें तो अभी तक 40 से ज्यादा किसान लिलियम उत्पादन के लिए आवेदन कर चुके हैं.

लिलियम फूल की बाजार में काफी डिमांड: बता दें कि लिलियम का फूल गुलदस्ते के साथ ही शादी, विवाह, पार्टी और समारोह में भी सजावट के लिए उपयोग किया जाता है. जिससे लिलियम के फूल की बाजार में काफी मांग होती है. फूल की एक पंखुड़ी की बाजार में 50 से 100 रुपए तक की कीमत आसानी से मिल जाती है.

Chamoli lilium Cultivation
लिलियम की खेती (फोटो सोर्स- X@ChamoliDm)

वहीं, लिलियम के बाजारों में डिमांड को देखते हुए उद्यान विभाग चमोली ने जिला योजना मद से 80 फीसदी सब्सिडी पर लिलियम उत्पादन के लिए काश्तकारों को प्रोत्साहित किया. जिसके चलते बीते साल 21 काश्तकारों ने 26 पॉलीहाउस में करीब 5 लाख 50 हजार रुपए की लिलियम स्टिक की ब्रिकी की.

इस साल भी काश्तकारों ने लिलियम के 35 हजार बल्ब रोपा था. जिसे बेचकर काश्तकार करीब 7 लाख 50 हजार की कमाई कर चुके हैं. लिलियम में मुनाफे को देखते हुए अब अन्य काश्तकारों का भी इस ओर रुझान बढ़ने लगा है. चमोली उद्यान विभाग के सहायक विकास अधिकारी रघुवीर सिंह राणा का कहना है कि काश्तकारों की ओर से जहां बड़ी संख्या में लिलियम उत्पादन को लेकर जानकारी ली जा रही है तो वहीं 40 से ज्यादा काश्तकारों ने आवेदन भी मिल चुके हैं.

Chamoli lilium Cultivation
लिलिमय काश्तकार (फोटो सोर्स- X@ChamoliDm)

काश्तकारों ने लिलियम की ब्रिकी के लिए तैयार किया चैनल: चमोली में उत्पादित फूलों की ब्रिकी के लिए जहां पहली बार विभाग की ओर से विपणन की व्यवस्था की गई तो वहीं अब काश्तकारों ने विभाग के सहयोग से फूलों की ब्रिकी का चैनल तैयार कर लिया है. काश्तकारों ने बताया कि उनके फूलों की मांग गाजीपुर मंडी में बड़े पैमाने पर है. इससे पहले विपणन की समुचित व्यवस्था न होने से उन्हें अच्छा दाम और मार्केट नहीं मिल पाता था, लेकिन अब विपणन की व्यवस्था होने से काफी लाभ मिल रहा है.

क्या है लिलियम? लिली के नाम से पुकारे जाने फूल का वैज्ञानिक नाम लिलियम है. यह लिलीयस कुल का पौधा है. यह 6 पंखुड़ी वाला सफेद, नारंगी, पीले, लाल और गुलाबी रंगों का फूल होता है. जापान में जहां सफेद लिली को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है तो वहीं नारंगी लिली को वृद्धि और उत्साह का प्रतीक माना जाता.

लिली के पौधे अर्द्ध कठोर होता है. लिलियम के फूल कीप के आकार के होते हैं. इसका उपयोग सजावट के साथ ही सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी किया जाता है. उद्यान विशेषज्ञों की मानें तो पॉलीहाउस में लिलियम का फूल 70 दिनों में तैयार हो जाता है. ऐसे में लिलियम की खेती कर किसान आसानी से आय बढ़ा सकता है.

क्या कहते हैं काश्तकार?

  1. गोपेश्वर निवासी नीरज भट्ट का कहना है कि उन्होंने गोपेश्वर के पास रौली-ग्वाड़ में 10 नाली भूमि खरीदी. साथ ही 20 नाली भूमि लीज पर लेकर सरकार की ओर से मिलने वाली सब्सिडी से पॉलीहाउस स्थापित किया. जिसमें उन्होंने जहां 200 कीवी के पौधों का रोपण किया तो वहीं 400 वर्ग मीटर में लिलियम का उत्पादन शुरू किया. जिससे अभी तक 2 लाख रुपए की कमाई हो चुकी है.
  2. बैरागना गांव निवासी भूपाल सिंह राणा ने बताया कि बीते साल घर के पास ही उद्यान विभाग की ओर से सहयोग से 100 स्क्वायर मीटर का पॉलीहाउस स्थापित किया था. जिसमें 2 हजार लिलियम बल्ब का रोपण किया था. जिससे अभी तक 44 हजार रुपए तक की आय हो चुकी है.

चमोली के दशोली, पोखरी और कर्णप्रयाग में संरक्षित कृषिकरण में लिलियम का उत्पादन किया जा रहा है. वर्तमान में जिले में 21 किसान लिलियम का उत्पादन कर रहे हैं. विभाग की ओर से फूलों के विपणन के लिए गाजीपुर मंडी का चैनल बनाया गया है. जिससे काश्तकारों को अपनी उपज के विपणन में सहूलियत मिल रही है. इन काश्तकारों को हो रहे मुनाफे को देखते हुए अन्य काश्तकारों का भी इस ओर रुझान बढ़ रहा है. - जेपी तिवारी, मुख्य कृषि एवं उद्यान अधिकारी, चमोली

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