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रासायनिक खाद के भरोसे किसान, लगातार बढ़ रही खपत, पर्यावरण के साथ इंसानों पर भी मंडरा रहा खतरा - chemical fertilizers - CHEMICAL FERTILIZERS

कोरबा में रासायनिक खाद की खपत में लगातार वृद्धि हो रही है. लगातार रासायनिक खाद के उपयोग से पर्यावरण और इंसानों पर भी कई तरह के दुष्प्रभाव पड़ रहा है. बावजूद इसके रासायनिक खाद का उपयोग रोकना संभव नहीं नजर आ रहा. आइये जानें कि आखिर केमिकल खाद की डिमांड बढ़ने की क्या वजह है और इसे नियंत्रित करना क्यों जरूरी हो गया है.

CHEMICAL FERTILIZER ADVERSE EFFECTS
रासायनिक खाद के दुष्प्रभाव (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jul 9, 2024, 8:28 PM IST

Updated : Jul 11, 2024, 10:41 PM IST

रासायनिक खाद के दुष्प्रभाव (ETV Bharat)

कोरबा : जिले में खेती के लिए किसान पूरी तरह से केमिकल आधारित खाद पर निर्भर हो चुके हैं. अकेले कोरबा जिले में कृषि विभाग ने वर्ष 2020 में 15.32 हजार टन खाद के भंडारण लक्ष्य रखा था. जो साल 2024 में बढ़कर 17 हजार टन हो गया है. पिछले चार साल में 1.68 हजार टन रासायनिक खाद की खपत में वृद्धि हुई है.

रासायनिक खाद के संबंध में प्रोफेसर का बयान (ETV Bharat)

केमिकल आधारित खाद पर निर्भरता खतरनाक : कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में गोठानों की वजह से पारंपरिक गोबर व जैविक खाद का लाभ किसानों को कुछ समय तक मिला. वर्तमान स्थिति में गोठानों से जैविक और गोबर खाद का प्रोडक्शन पूरी तरह से बंद हो चुका है. इस वजह से किसान अब पूरी तरह से केमिकल आधारित खाद पर निर्भर हो चुके हैं. अब इसका दुष्प्रभाव पर्यावरण के साथ ही मानवों पर भी पड़ रहा है.

धान खरीदी की कीमत बढ़ी, खेती भी हुई महंगी : धान की कीमत में सरकार ने भले ही वृद्धि की है. लेकिन रासायनिक खाद की निर्भरता ने किसानों की लागत 20 प्रतिशत बढ़ा दी है. पहले की तुलना में अब गोबर खाद डालने की परंपरा लगभग लुप्त होने लगी है. विडंबना यह भी किसानों की ओर से रासायनिक खाद की मांग बढ़ती जा रही है, लेकिन डिमांड पूरा करने में विपणन विभाग नाकाम नजर आ रहा है. मानसून शुरू होने के पहले भले अधिकारिक तौर पर खाद पर्याप्त होने का दावा किया जाता है. लेकिन जब खाद का उठाव शुरू होने के बाद जरूरत के अनुसार पूर्ति नहीं हो पाती. बाजार से खाद खरीदने पर किसानों को अधिक राशि खर्च करनी पड़ती है, जिससे खेती भी अब पहले के तुलना में काफी महंगी हुई है.

नरवा गरवा घुरवा बाड़ी योजना बंद : पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की फ्लैगशिप 'नरवा गरवा घुरूवा बाड़ी' योजना से किसानों को कुछ खाद मिल जाता था. बीजेपी की सरकार आते ही योजना बंद हो चुकी है. योजना को मूर्त रूप देने के लिए कांग्रेस की भूपेश सरकार ने गोबर खाद की उपयोगिता को बढ़ावा देने का काम तो किया, लेकिन सड़कों पर बेसहारा घूम रहे मवेशियों को गोठान में लाने में सफलता नहीं मिली. यदि इस योजना का संचालन बेहतर तरीके से किया गया होता, गोबर खरीदी से लेकर वार्मी कंपोस्ट की उपलब्धता बढ़ाई जाती, तो किसानों को अच्छी क्वालिटी का खाद जरूर मिलता.

लक्ष्य के उलट अब तक भंडारण टन में :

उर्वरक लक्ष्य भंडारण
यूरिया 8,800 8,596
डीएपी 2,800 2,879
सुपर फास्फेट 3,100 2,690
एमओपी 500 234
एनपीके 1,900 1,100


रासायनिक खाद की मांग में इजाफा : कृषि विभाग के सहायक संचालक डीपीएस कंवर ने बताया, "खरीफ फसल के लिए पर्याप्त मात्रा में रासायनिक खाद का भंडारण सभी सहकारी समितियों में किया जा चुका है. धान का रकबा बढ़ने से खाद की मांग भी बढ़ गई है. किसानों को अग्रिम उठाव के लिए प्रेरित किया जा रहा है. खाद की कमी नहीं होने दी जाएगी. अधिक मात्रा में खाद का भंडारण किया गया है."

रासायनिक खाद्य के कई दुष्प्रभाव, नियंत्रण जरूरी : बॉटनी विषय के प्रोफेसर डॉ संदीप शुक्ला ने बताया, "रासायनिक खाद के कई तरह के दुष्प्रभाव है. लगातार इसका उपयोग किया जा रहा है. जब ग्रीन रिवॉल्यूशन की शुरुआत हुई थी, तब हमारे प्रोडक्शन में लगातार वृद्धि हुई थी. लेकिन उसके बाद से प्रोडक्शन गिरा है. मार्केट को ज्यादा से ज्यादा खाद्यान्न देने की जरूरत होती है. किसान भी अधिक से अधिक खाद्यान्न बेचना चाहते हैं. इसी कारण रासायनिक खाद का उपयोग बढ़ा है.

"ऑर्गेनिक फार्मिंग अचानक नहीं किया जा सकता. सॉइल में जो माइक्रोब्स होते हैं, वह केमिकल के उपयोग से मर जाते हैं. लगातार तीन या चार सर्किल तक ऑर्गेनिक फार्मिंग करने के बाद ही इसे बेहतर तरीके से क्रियान्वन किया जा सकता है. तभी प्रोडक्शन अच्छा होगा." - डॉ संदीप शुक्ला, प्रोफेसर, बॉटनी

कई तरह के स्टडी सामने आई हैं, जिसमें यह सामने आया है कि लगातार रासायनिक खाद के उपयोग से कैंसर होने का भी खतरा रहता है. पर्यावरण और इंसानों पर भी कई तरह के दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं. बावजूद इसके वर्तमान परिवेश में रासायनिक खाद के उपयोग को पूरी तरह से रोकना संभव नहीं दिखता. लेकिन सरकार को इसकी मात्रा पर जरूर नजर रखनी चाहिए. इसके लिए उच्च स्तर पर मात्रा के नियंत्रण के लिए नियम बनाया जाना अब बेहद जरूरी हो चुका है.

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रासायनिक खाद के दुष्प्रभाव (ETV Bharat)

कोरबा : जिले में खेती के लिए किसान पूरी तरह से केमिकल आधारित खाद पर निर्भर हो चुके हैं. अकेले कोरबा जिले में कृषि विभाग ने वर्ष 2020 में 15.32 हजार टन खाद के भंडारण लक्ष्य रखा था. जो साल 2024 में बढ़कर 17 हजार टन हो गया है. पिछले चार साल में 1.68 हजार टन रासायनिक खाद की खपत में वृद्धि हुई है.

रासायनिक खाद के संबंध में प्रोफेसर का बयान (ETV Bharat)

केमिकल आधारित खाद पर निर्भरता खतरनाक : कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में गोठानों की वजह से पारंपरिक गोबर व जैविक खाद का लाभ किसानों को कुछ समय तक मिला. वर्तमान स्थिति में गोठानों से जैविक और गोबर खाद का प्रोडक्शन पूरी तरह से बंद हो चुका है. इस वजह से किसान अब पूरी तरह से केमिकल आधारित खाद पर निर्भर हो चुके हैं. अब इसका दुष्प्रभाव पर्यावरण के साथ ही मानवों पर भी पड़ रहा है.

धान खरीदी की कीमत बढ़ी, खेती भी हुई महंगी : धान की कीमत में सरकार ने भले ही वृद्धि की है. लेकिन रासायनिक खाद की निर्भरता ने किसानों की लागत 20 प्रतिशत बढ़ा दी है. पहले की तुलना में अब गोबर खाद डालने की परंपरा लगभग लुप्त होने लगी है. विडंबना यह भी किसानों की ओर से रासायनिक खाद की मांग बढ़ती जा रही है, लेकिन डिमांड पूरा करने में विपणन विभाग नाकाम नजर आ रहा है. मानसून शुरू होने के पहले भले अधिकारिक तौर पर खाद पर्याप्त होने का दावा किया जाता है. लेकिन जब खाद का उठाव शुरू होने के बाद जरूरत के अनुसार पूर्ति नहीं हो पाती. बाजार से खाद खरीदने पर किसानों को अधिक राशि खर्च करनी पड़ती है, जिससे खेती भी अब पहले के तुलना में काफी महंगी हुई है.

नरवा गरवा घुरवा बाड़ी योजना बंद : पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की फ्लैगशिप 'नरवा गरवा घुरूवा बाड़ी' योजना से किसानों को कुछ खाद मिल जाता था. बीजेपी की सरकार आते ही योजना बंद हो चुकी है. योजना को मूर्त रूप देने के लिए कांग्रेस की भूपेश सरकार ने गोबर खाद की उपयोगिता को बढ़ावा देने का काम तो किया, लेकिन सड़कों पर बेसहारा घूम रहे मवेशियों को गोठान में लाने में सफलता नहीं मिली. यदि इस योजना का संचालन बेहतर तरीके से किया गया होता, गोबर खरीदी से लेकर वार्मी कंपोस्ट की उपलब्धता बढ़ाई जाती, तो किसानों को अच्छी क्वालिटी का खाद जरूर मिलता.

लक्ष्य के उलट अब तक भंडारण टन में :

उर्वरक लक्ष्य भंडारण
यूरिया 8,800 8,596
डीएपी 2,800 2,879
सुपर फास्फेट 3,100 2,690
एमओपी 500 234
एनपीके 1,900 1,100


रासायनिक खाद की मांग में इजाफा : कृषि विभाग के सहायक संचालक डीपीएस कंवर ने बताया, "खरीफ फसल के लिए पर्याप्त मात्रा में रासायनिक खाद का भंडारण सभी सहकारी समितियों में किया जा चुका है. धान का रकबा बढ़ने से खाद की मांग भी बढ़ गई है. किसानों को अग्रिम उठाव के लिए प्रेरित किया जा रहा है. खाद की कमी नहीं होने दी जाएगी. अधिक मात्रा में खाद का भंडारण किया गया है."

रासायनिक खाद्य के कई दुष्प्रभाव, नियंत्रण जरूरी : बॉटनी विषय के प्रोफेसर डॉ संदीप शुक्ला ने बताया, "रासायनिक खाद के कई तरह के दुष्प्रभाव है. लगातार इसका उपयोग किया जा रहा है. जब ग्रीन रिवॉल्यूशन की शुरुआत हुई थी, तब हमारे प्रोडक्शन में लगातार वृद्धि हुई थी. लेकिन उसके बाद से प्रोडक्शन गिरा है. मार्केट को ज्यादा से ज्यादा खाद्यान्न देने की जरूरत होती है. किसान भी अधिक से अधिक खाद्यान्न बेचना चाहते हैं. इसी कारण रासायनिक खाद का उपयोग बढ़ा है.

"ऑर्गेनिक फार्मिंग अचानक नहीं किया जा सकता. सॉइल में जो माइक्रोब्स होते हैं, वह केमिकल के उपयोग से मर जाते हैं. लगातार तीन या चार सर्किल तक ऑर्गेनिक फार्मिंग करने के बाद ही इसे बेहतर तरीके से क्रियान्वन किया जा सकता है. तभी प्रोडक्शन अच्छा होगा." - डॉ संदीप शुक्ला, प्रोफेसर, बॉटनी

कई तरह के स्टडी सामने आई हैं, जिसमें यह सामने आया है कि लगातार रासायनिक खाद के उपयोग से कैंसर होने का भी खतरा रहता है. पर्यावरण और इंसानों पर भी कई तरह के दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं. बावजूद इसके वर्तमान परिवेश में रासायनिक खाद के उपयोग को पूरी तरह से रोकना संभव नहीं दिखता. लेकिन सरकार को इसकी मात्रा पर जरूर नजर रखनी चाहिए. इसके लिए उच्च स्तर पर मात्रा के नियंत्रण के लिए नियम बनाया जाना अब बेहद जरूरी हो चुका है.

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Last Updated : Jul 11, 2024, 10:41 PM IST
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