लखनऊ: यूं तो भारतीय जनता पार्टी देश में परिवारवादी राजनीतिक पार्टियों पर खूब हमलावर रहती है और इसी मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी को घेरने का कोई अवसर नहीं छोड़ती है, लेकिन उत्तर प्रदेश में एनडीए गठबंधन में परिवारवादी क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों खूब फलफूल रही हैं. इसे भाजपा का दोहरा मानदंड ही कहेंगे कि एक ओर परिवारवादी राजनीतिक दलों का विरोध और दूसरी ओर ऐसी ही पार्टियों को बढ़ावा देना कहां तक उचित है. बात चाहे अपना दल सोने लाल की हो या निषाद पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की.
इन सभी पार्टियों में परिवारवाद को बुरा नहीं माना जाता. इन पार्टियों के मुखिया खुलकर कहते हैं कि इसमें बुरा क्या है.हाल ही में दोबारा भाजपा गठबंधन का हिस्सा बने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर को उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री बनाया गया. उन्हें मंत्री बने अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता कि उनके बेटे अरविंद राजभर को घोसी संसदीय सीट से लोकसभा का प्रत्याशी घोषित कर दिया गया. ओमप्रकाश राजभर अपनी पार्टी के अध्यक्ष भी हैं और उनके दोनों बेटे पार्टी के पदाधिकारी. राजभर पहली बार भाजपा गठबंधन से इसीलिए अलग हुए थे, क्योंकि तब भाजपा ने उनके बेटे को विधान परिषद का सदस्य नहीं बनाया था.
2022 का चुनाव उन्होंने सपा के साथ मिलकर लड़ा. उन्हें पूरी उम्मीद थी कि समाजवादी पार्टी उनके बेटों को कहीं न कहीं समायोजित जरूर कर देगी, लेकिन अखिलेश यादव ने ऐसा नहीं किया. निराश होकर उन्हें फिर भाजपा के साथ आना पड़ा, हालांकि इस बार वह भाजपा को अपनी शर्तें मनवाने में कामयाब रहे. ओमप्रकाश राजभर की टीवी से बातचीत में कह चुके हैं कि जब वह राजनीति में हैं, तो क्या उनके बेटे खेती करेंगे? मतलब वह अपने बेटों को अपना स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानते हैं.अपना दल सोने लाल की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल केंद्र की सरकार में मंत्री हैं.
वहीं उनके पति आशीष पटेल उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री के पद पर काम कर रहे हैं. कुर्मी वोटों की राजनीति करने वाला अपना दल परिवारवाद की राजनीति के लिए जाना जाता है. अनुप्रिया पटेल मोदी की पहली सरकार में भी केंद्रीय मंत्री थी और उनके पति भी योगी आदित्यनाथ की पहली सरकार में कैबिनेट मंत्री के पद पर काम कर रहे थे. आशीष पटेल विधान परिषद से उच्च सदन पहुंचते हैं. अनुप्रिया पटेल भी ईटीवी से बातचीत में कह चुकी हैं कि परिवारवाद की राजनीति में कुछ भी गलत नहीं है, बल्कि उनके अपने ही तर्क हैं.
वह कहती हैं की एक डॉक्टर का बेटा अच्छा डॉक्टर बन सकता है, तो नेता का पुत्र या पुत्री अच्छा राजनीतिज्ञ क्यों नहीं? आखिर ऐसे परिवारों के बच्चे बचपन से ही राजनीतिक माहौल देखते और समझते हैं और ऐसे बच्चों में आम परिवारों के बच्चों से अधिक राजनीतिक कुशलता हो सकती है. अनुप्रिया पटेल अपने पिता सोनेलाल पटेल की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. सोनेलाल पटेल भी कुर्मी वोट बैंक की सियासत करते थे. हालांकि उन्हें वह मुकाम कभी नहीं मिला, जो उनकी बेटी ने हासिल किया है.निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद भी परिवारवाद की राजनीति में दम-खम के साथ डटे हुए हैं.
वह विधान परिषद के सदस्य हैं और प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी. 2019 के लोकसभा चुनाव में संजय निषाद के पुत्र प्रवीण निषाद को भारतीय जनता पार्टी ने अपने टिकट पर संत कबीर नगर सीट से लोकसभा पहुंचा था. उनके दूसरे बेटे सरवन निषाद चौरी-चौरा विधानसभा सीट से विधायक हैं. उनकी पत्नी भी पार्टी में पदाधिकारी हैं. आगामी लोकसभा चुनाव में संजय निषाद चाहते हैं कि उनके बेटे प्रवीण निषाद को निषाद पार्टी से ही टिकट मिले. अब क्योंकि भाजपा नेतृत्व ओमप्रकाश राजभर के बेटे को उन्हीं की पार्टी के सिंबल पर टिकट दे चुकी है, इसलिए वह पूरा जोर लगाए हुए हैं कि उनके बेटे को भी निषाद पार्टी से ही टिकट मिले.
ऐसा होने पर उनकी पार्टी का कद बढ़ेगा और वह अपनी पार्टी के लिए अधिक पद और सीटें मांगने में सक्षम हो पाएंगे.राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर प्रदीप यादव कहते हैं कि 'इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. अब कोई भी डर आदर्शवादी राजनीति नहीं करता. सरकार बनाने में जोड़-तोड़ हो यह सरकार गिराने के लिए लेनदेन की बात. यहां तक कि भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों ने परिवारवाद की अपनी अपनी परिभाषा गढ़ ली है. भाजपा नेता कहते रहे हैं कि किसी नेता का पुत्र राजनीति में आ सकता है, बशर्ते वह पीढ़ी दर पीढ़ी पार्टी का अध्यक्ष न बने.
वहीं अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जैसे दलों के नेताओं का स्पष्ट मत है कि परिवार के लोगों को विरासत में राजनीति और पद मिलना कोई गलत बात नहीं है. हां, भाजपा की यह नीति जरूर हैरान करती है कि राष्ट्रीय स्तर पर जिस बात की वह सबसे ज्यादा आलोचना करती है, राज्य में इस बात को बढ़ावा दिए जा रही है. हालांकि आज की राजनीति में सब चलता है.