पीयूष पाठक, अलवर : अलवर जिले को पर्यटन, औद्योगिक क्षेत्र व खान पान की दृष्टि से जाना जाता है, लेकिन इसके अलावा भी अलवर में कई ऐसी प्राचीन कला है, जिनका पता लगने पर लोग अचंभित महसूस करते हैं. ऐसा ही एक प्राचीन कला है कागजी पॉटरी, जो इस जमाने में बिल्कुल विलुप्त सी हो चुकी है, लेकिन इस कला को आज भी अलवर जिले के रामगढ़ क्षेत्र का एक परिवार संजोए हुए है. इस परिवार की 15वीं पीढ़ी इस कला को आज आगे बढ़ा रही है. इसके चलते परिवार को राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान भी मिल चुका है. इस कला को टेराकोटा नाम दिया गया है, जिसमें विभिन्न तरह के आइटम बनाए जाते हैं. इस परिवार की ओर से बनाई गई कागजी पॉटरी की छोटी बड़ी कलाकृति ने देश विदेश में इस क्षेत्र को प्रसिद्धि दिलाई.
रामगढ़ के कारीगर परिवार के ईश्वर सिंह प्रजापत ने बताया कि उनका परिवार टेराकोटा का कार्य करता है. इसमें मिट्टी से कई तरह के आइटम बनाए जाते हैं. उनके परिवार में टेराकोटा का काम पिछले 450 सालों से हो रहा है. आज इस कला को परिवार की 15वीं पीढ़ी संभाल रही है और आगे बढ़ा रही है. अलवर की कागजी पॉटरी कला काफी प्रसिद्ध कला रही है. इस कला के चलते अलवर को पहचान मिली. इसकी खासियत यह है कि यह वजन में हल्के होते हैं. ऐसे आइटम को अलवर के कारीगर खास तैयार करते थे, जो वजन में हल्के और दिखने में आकर्षक होते थे. इसी कला को आज भी हमारा परिवार निरंतर रूप से आगे बढ़ा रहा है. उनका मानना है कि इंडिया में कागजी पॉटरी को रामगढ़ का यह परिवार ही बना रहा है.
पढ़ें. डिजिटल युग में चित्रकथाओं के माध्यम से राजस्थान के गौरवशाली इतिहास को जीवंत कर रहे ब्रजराज सिंह...
अलग मिट्टी के मिश्रण से होते हैं तैयार : ईश्वर सिंह ने बताया कि इस कला में तैयार होने वाले आइटमों को अलग-अलग तरह के मिट्टी के मिश्रण से तैयार किया जाता है. इसके लिए अच्छी गुणवत्ता की मिटी की आवश्यकता होती है, जो खेत, तालाब व पहाड़ों से मिलती है. सभी को एक निश्चित मात्रा में लेकर मिश्रण तैयार कर चाक पर रखकर उत्पाद की शेप दी जाती है. चाक पर तैयार करने के बाद इन्हें सुखाया व पकाया जाता है, जिससे तैयार किए गए आइटम में स्ट्रेंथ बन सके. उन्होंने बताया कि इसमें डेकोरेटिव पॉट्स, खाना बनाने वाले उत्पाद, मटकी साथ ही मिट्टी से बने छोटे डेकोरेटिव आइटम भी बनाए जाते हैं.
छोटे-छोटे पॉट कर रहे आकर्षित : ईश्वर सिंह ने बताया कि आजकल मिनिएचर आर्ट का समय चल रहा है, जिसके चलते कलाकार अपनी कलाकारी व आइडिया के माध्यम से नए नए शेप तैयार करता है, जो लोगों को भी काफी पसंद आ रहे हैं. ईश्वर सिंह का परिवार अलग-अलग डिजाइन के छोटे-छोटे पॉट भी तैयार करता है, जो देखने पर तो असाधारण प्रतीत होते हैं, लेकिन लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनते हैं.
मिल चुके कई सम्मान : ईश्वर सिंह ने बताया कि उनकी इस कला के चलते उनके परिवार के लोगों को राज्य, राष्ट्रीय व कई अलग-अलग संस्थाओं की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका है. इसमें राज्य सरकार की ओर से उनके बड़े भाई ओमप्रकाश गालव को 2 बार दक्षता पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रपति की ओर से भी परिवार के सदस्य को भी सम्मानित किया जा चुका है. साथ ही यूनेस्को अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस फॉर हैंडीक्राफ्ट 2012 व 2014 शामिल है. इसके अलावा भी विभिन्न जगह पर इस परिवार को कई पुरस्कार व सम्मान मिले हैं. इस परिवार की ओर से बनाई गई कलाकृतियों को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड, यूनिक बुक ऑफ रिकॉर्ड में सबसे छोटी और बड़ी कलाकृति के रूप में दर्ज किया गया है, जिसके चलते इस कला को नए आयाम मिले हैं.
डेकोरेशन के लिए बनाए फ्रेम : ईश्वर सिंह ने बताया कि आजकल लोग अपने घरों को सजाने के लिए अलग-अलग तरह के आइटम देखते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए हमारी ओर से टेराकोटा के आइटम को मिनिएचर रूप में तैयार कर डेकोरेटिव फ्रेम बनाया गया है, जो लोगों को काफी पसंद आ रहे हैं.