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आंख मलने की आदत को न करें नजरअंदाज, हो सकता है केरोटोकोनस का खतरा - Rubbing Eyes Is Dangerous

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 21, 2024, 3:11 PM IST

अगर आपको बार-बार आंख मलने की आदत तो सावधान हो जाएं. आपको भी केराटोकोनस हो सकता है. आंखों के साथ छेड़छाड़ करने या लापरवाही बरतने से अनेक दिक्कतें होती हैं. इसमें केराटोकोनस समस्या भी शामिल है.

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वाराणसी: केराटोकोनस जेनेटिक माना जाता है,लेकिन कई बार ये बाह्य पर्यायवरणी कारणों से भी होती है.जिसमे बार बार आंख मलने की आदत शामिल है.बीमारी के गम्भीर स्वरूप के कारण इसमें कुछ मरीजों को कॉर्निया भी ट्रांसप्लांट करवाना पड़ता है.

यह बीमारी अनुवांशिक या अन्य बाह्य कारण होती है
यह बीमारी अनुवांशिक या अन्य बाह्य कारण होती है (Photo Credit- ETV Bharat)
बता दें कि, बढ़ती गर्मी और इंफेक्शन के कारण भी लोगों की आंखों में जलन होती है, जिससे वह अपनी आंखों को बार-बार मलते हैं. लेकिन उनकी यह आदत उनके लिए तब घातक बन जाती है, जब इसका विपरीत असर उनकी कॉर्निया पर पड़ता है. कार्निया इन्फेक्शन के कारण केराटोकोनस जैसी बीमारी भी होने की संभावना बढ़ जाती है. दशकों पहले जहां 100 में से एक मरीज में इस तरीके की बीमारी देखी जाती थी, तो वहीं वर्तमान समय में उसका आंकड़ा बढ़ गया है. हर माह सरकारी अस्पतालों में लगभग 50 ऐसे मरीज आ रहे हैं, जिनकी कॉर्निया प्रभावित हो रही हैं.
वर्तमान समय में केरोटोकोनस के मरीजों की संख्या बढ़ गयी है
वर्तमान समय में केरोटोकोनस के मरीजों की संख्या बढ़ गयी है (Photo Credit- ETV Bharat)
क्या है केरोटोकोनस: इस बारे में मंडलीय अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ने बताया कि सामान्य शब्दों में कार्निया की सतह का अनियमित और पतला होना ही कोरोटोकोनस कहलाता है. इसमें आंख में एक शंकु के आकार का उभार शुरू हो जाता है, जिसकी वजह से देखने में दिक्कत होती है. उन्होंने बताया कि यह बीमारी अनुवांशिक या अन्य बाह्य कारण होती है, जिसमें यदि किसी व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को यह बीमारी हुई है, तो आने वाली पीढ़ी में होने की संभावना ज्यादा रहती है. इसके साथ यदि आंखों में जलन है, बार-बार एलर्जी हो रही है, अस्थमा है, आंखों को रगड़ने की आदत है तो उसे वजह से भी यह बीमारी तेजी से पनपती है.
गर्मी और इंफेक्शन के कारण भी लोगों की आंखों में जलन होती है
गर्मी और इंफेक्शन के कारण भी लोगों की आंखों में जलन होती है (Photo Credit- ETV Bharat)
किशोरों में दिक्कत ज्यादा: उन्होंने बताया कि आमतौर पर यह किशोरावस्था में शुरू होता है और 20 वर्ष होते होते इस बीमारी का पता चल जाता है. उनकी आंखों में दृष्टि को लेकर दिक्कत बढ़ जाती है. हालांकि यह मरीज के स्थिति के ऊपर भी निर्भर करता है. उन्होंने बताया कि पहले महीने महज 1 से 2 केस ही सामने आते थे, लेकिन वर्तमान समय में हर माह लगभग 50 से 60 मामले केरोटोकोनस के आ रहे हैं, जिनमें से 6 से सात मामलों में कॉर्निया का ट्रांसप्लांट भी करना पड़ता है.
आमतौर पर यह समस्या किशोरावस्था में शुरू होती है
आमतौर पर यह समस्या किशोरावस्था में शुरू होती है. (Photo Credit- ETV Bharat)
ऐसे होती है जांच और निदान: उन्होंने बताया कि रोग निदान के शुरुआती समय में सबसे पहले मरीज के आंखों की सामान्य जांच होती है. इसके बाद आई ड्रॉप डालकर आंखों का फंडस एग्जामिनेशन कराया जाता है. इसमें आंख के बीच काले हिस्से यानी की पुतली को चौड़ा किया जाता है, जिससे डॉक्टर आंखों को और भी ज्यादा स्पष्ट रूप से देख सकते हैं. इसके बाद आंखों की आईसाइट, रोशनी वह कॉर्नियल टोपोग्राफी की जाती है.

इसके जरिए कॉर्निया के सतह के आकार को देखा जाता है. उन्होंने बताया कि जांच में बीमारी का पता लगने के बाद मरीज को चश्मा लगाने के साथ लेंस लगाने की सलाह दी जाती है. उनका उपचार किया जाता है. जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, चश्मे का नंबर बढ़ाकर मरीज को स्वस्थ करने का प्रयास किया जाता है, लेकिन चश्मा और लेंस के बाद भी यदि मरीज की रोशनी में कोई सुधार नहीं होता तब कार्निया प्रत्यारोपण कराया जाता है, जिससे मरीज की समस्या का समाधान किया जा सके.

हर माह सरकारी अस्पतालों में लगभग 50 ऐसे मरीज आ रहे हैं, जिनकी कॉर्निया प्रभावित हो रही हैं.
हर माह सरकारी अस्पतालों में लगभग 50 ऐसे मरीज आ रहे हैं, जिनकी कॉर्निया प्रभावित हो रही हैं. (Photo Credit- ETV Bharat)
धुंधले पन से शुरू हुई दिक्कत: बीएचयू अस्पताल में आज़मगढ़ से आए मनीष सेठ का कहना है कि, उनके बेटे को काफी दिनों से आंखों में देखने में दिक्कत हो रही थी. धुंधलापन नजर आ रहा है जिसको लेकर के अस्पताल आए थे जहां डॉक्टर ने उनके बच्चे के आंख में कॉर्निया में शुरुआती दौर की दिक्कत बताई और जिसका इलाज किया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि पहले जांच हुई जिसमें चश्मा लगाया गया. चश्मे से उसकी दृष्टि ठीक है.वो हर माह नियमित जांच के लिए अस्पताल आते है. गौरतलब को कि, बनारस के सभी सरकारी अस्पतालों में आंखों की जांच की सुविधा है,लेकिन बीमारी की गंभीरता को देखते हुए मरीज को BHU रेफर किया जाता है जहां इलाज के साथ जरूरत पड़ने कॉर्निया ट्रांसप्लांट भी होता है.

केरोटोकोनस के लक्षण
• आंखों में दर्द और पुराना सर दर्द.
• नाइट विजन में दिक्कत.
• चमकदार रोशनी को न देख पाना.
• आंखों का धुंधलापन.
• आंखों में जलन.
• बार-बार आंखों को मलना.
• स्कूली बच्चों में दूर से ब्लैक बोर्ड को साफ देखने में असमर्थ होना.

ऐसे होता है रोकथाम:
• आंखों को बार-बार मलने से बचना.
• आंखों में एलर्जी होने पर तुरंत नेत्र चिकित्सक को दिखाएं.
• ओवर टू काउंटर आई ड्रॉप्स का प्रयोग करने से बचें.
• निर्धारित समय से ज्यादा आई ड्रॉप्स या अन्य दावों का उपयोग करने से बचें.
• बच्चों में यदि कोई लक्षण दिखे, तो नियमित रूप से जांच कराएं

ये भी पढ़ें- यूपी में नहीं कानून का डर; जौनपुर में पिस्टल छीनकर सिपाही-होमगार्ड को बनाया बंधक - Public Hostage UP Police

वाराणसी: केराटोकोनस जेनेटिक माना जाता है,लेकिन कई बार ये बाह्य पर्यायवरणी कारणों से भी होती है.जिसमे बार बार आंख मलने की आदत शामिल है.बीमारी के गम्भीर स्वरूप के कारण इसमें कुछ मरीजों को कॉर्निया भी ट्रांसप्लांट करवाना पड़ता है.

यह बीमारी अनुवांशिक या अन्य बाह्य कारण होती है
यह बीमारी अनुवांशिक या अन्य बाह्य कारण होती है (Photo Credit- ETV Bharat)
बता दें कि, बढ़ती गर्मी और इंफेक्शन के कारण भी लोगों की आंखों में जलन होती है, जिससे वह अपनी आंखों को बार-बार मलते हैं. लेकिन उनकी यह आदत उनके लिए तब घातक बन जाती है, जब इसका विपरीत असर उनकी कॉर्निया पर पड़ता है. कार्निया इन्फेक्शन के कारण केराटोकोनस जैसी बीमारी भी होने की संभावना बढ़ जाती है. दशकों पहले जहां 100 में से एक मरीज में इस तरीके की बीमारी देखी जाती थी, तो वहीं वर्तमान समय में उसका आंकड़ा बढ़ गया है. हर माह सरकारी अस्पतालों में लगभग 50 ऐसे मरीज आ रहे हैं, जिनकी कॉर्निया प्रभावित हो रही हैं.
वर्तमान समय में केरोटोकोनस के मरीजों की संख्या बढ़ गयी है
वर्तमान समय में केरोटोकोनस के मरीजों की संख्या बढ़ गयी है (Photo Credit- ETV Bharat)
क्या है केरोटोकोनस: इस बारे में मंडलीय अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ने बताया कि सामान्य शब्दों में कार्निया की सतह का अनियमित और पतला होना ही कोरोटोकोनस कहलाता है. इसमें आंख में एक शंकु के आकार का उभार शुरू हो जाता है, जिसकी वजह से देखने में दिक्कत होती है. उन्होंने बताया कि यह बीमारी अनुवांशिक या अन्य बाह्य कारण होती है, जिसमें यदि किसी व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को यह बीमारी हुई है, तो आने वाली पीढ़ी में होने की संभावना ज्यादा रहती है. इसके साथ यदि आंखों में जलन है, बार-बार एलर्जी हो रही है, अस्थमा है, आंखों को रगड़ने की आदत है तो उसे वजह से भी यह बीमारी तेजी से पनपती है.
गर्मी और इंफेक्शन के कारण भी लोगों की आंखों में जलन होती है
गर्मी और इंफेक्शन के कारण भी लोगों की आंखों में जलन होती है (Photo Credit- ETV Bharat)
किशोरों में दिक्कत ज्यादा: उन्होंने बताया कि आमतौर पर यह किशोरावस्था में शुरू होता है और 20 वर्ष होते होते इस बीमारी का पता चल जाता है. उनकी आंखों में दृष्टि को लेकर दिक्कत बढ़ जाती है. हालांकि यह मरीज के स्थिति के ऊपर भी निर्भर करता है. उन्होंने बताया कि पहले महीने महज 1 से 2 केस ही सामने आते थे, लेकिन वर्तमान समय में हर माह लगभग 50 से 60 मामले केरोटोकोनस के आ रहे हैं, जिनमें से 6 से सात मामलों में कॉर्निया का ट्रांसप्लांट भी करना पड़ता है.
आमतौर पर यह समस्या किशोरावस्था में शुरू होती है
आमतौर पर यह समस्या किशोरावस्था में शुरू होती है. (Photo Credit- ETV Bharat)
ऐसे होती है जांच और निदान: उन्होंने बताया कि रोग निदान के शुरुआती समय में सबसे पहले मरीज के आंखों की सामान्य जांच होती है. इसके बाद आई ड्रॉप डालकर आंखों का फंडस एग्जामिनेशन कराया जाता है. इसमें आंख के बीच काले हिस्से यानी की पुतली को चौड़ा किया जाता है, जिससे डॉक्टर आंखों को और भी ज्यादा स्पष्ट रूप से देख सकते हैं. इसके बाद आंखों की आईसाइट, रोशनी वह कॉर्नियल टोपोग्राफी की जाती है.

इसके जरिए कॉर्निया के सतह के आकार को देखा जाता है. उन्होंने बताया कि जांच में बीमारी का पता लगने के बाद मरीज को चश्मा लगाने के साथ लेंस लगाने की सलाह दी जाती है. उनका उपचार किया जाता है. जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, चश्मे का नंबर बढ़ाकर मरीज को स्वस्थ करने का प्रयास किया जाता है, लेकिन चश्मा और लेंस के बाद भी यदि मरीज की रोशनी में कोई सुधार नहीं होता तब कार्निया प्रत्यारोपण कराया जाता है, जिससे मरीज की समस्या का समाधान किया जा सके.

हर माह सरकारी अस्पतालों में लगभग 50 ऐसे मरीज आ रहे हैं, जिनकी कॉर्निया प्रभावित हो रही हैं.
हर माह सरकारी अस्पतालों में लगभग 50 ऐसे मरीज आ रहे हैं, जिनकी कॉर्निया प्रभावित हो रही हैं. (Photo Credit- ETV Bharat)
धुंधले पन से शुरू हुई दिक्कत: बीएचयू अस्पताल में आज़मगढ़ से आए मनीष सेठ का कहना है कि, उनके बेटे को काफी दिनों से आंखों में देखने में दिक्कत हो रही थी. धुंधलापन नजर आ रहा है जिसको लेकर के अस्पताल आए थे जहां डॉक्टर ने उनके बच्चे के आंख में कॉर्निया में शुरुआती दौर की दिक्कत बताई और जिसका इलाज किया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि पहले जांच हुई जिसमें चश्मा लगाया गया. चश्मे से उसकी दृष्टि ठीक है.वो हर माह नियमित जांच के लिए अस्पताल आते है. गौरतलब को कि, बनारस के सभी सरकारी अस्पतालों में आंखों की जांच की सुविधा है,लेकिन बीमारी की गंभीरता को देखते हुए मरीज को BHU रेफर किया जाता है जहां इलाज के साथ जरूरत पड़ने कॉर्निया ट्रांसप्लांट भी होता है.

केरोटोकोनस के लक्षण
• आंखों में दर्द और पुराना सर दर्द.
• नाइट विजन में दिक्कत.
• चमकदार रोशनी को न देख पाना.
• आंखों का धुंधलापन.
• आंखों में जलन.
• बार-बार आंखों को मलना.
• स्कूली बच्चों में दूर से ब्लैक बोर्ड को साफ देखने में असमर्थ होना.

ऐसे होता है रोकथाम:
• आंखों को बार-बार मलने से बचना.
• आंखों में एलर्जी होने पर तुरंत नेत्र चिकित्सक को दिखाएं.
• ओवर टू काउंटर आई ड्रॉप्स का प्रयोग करने से बचें.
• निर्धारित समय से ज्यादा आई ड्रॉप्स या अन्य दावों का उपयोग करने से बचें.
• बच्चों में यदि कोई लक्षण दिखे, तो नियमित रूप से जांच कराएं

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