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दिल्लीवासी देख चुके हैं 10 साल पहले राष्ट्रपति शासन, क्या अब भी मंडरा रहा है खतरा! - President rule in Delhi

दिल्ली शराब घोटाला मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद से राष्ट्रीय राजधानी में राष्ट्रपति शासन लागू होने की चर्चा जोरों पर है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि बीजेपी केजरीवाल सरकार को गिराकर राष्ट्रपति शासन लगाने की साजिश रच रही है. पढ़िए, आशुतोष झा की रिपोर्ट...

दिल्ली में 10 साल पहले भी जब लगा था राष्ट्रपति शासन
दिल्ली में 10 साल पहले भी जब लगा था राष्ट्रपति शासन
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Apr 13, 2024, 6:12 AM IST

Updated : Apr 13, 2024, 12:37 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू होने की चर्चा सियासी गलियारे में इस समय सुर्खियों में है. कथित शराब घोटाला मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल में बंद हैं. आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल जेल से ही सरकार चलाने की बात कर रहे हैं, लेकिन गत कुछ दिनों के दौरान दिल्ली में प्रशासनिक कामकाज ठप पड़ा गया है. उपराज्यपाल वीके सक्सेना इस संबंध में गृह मंत्रालय को दो पत्र भेज चुके हैं.

दिल्ली सरकार के मंत्री राजकुमार आनंद ने अचानक मंत्री पद त्याग कर पार्टी के प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. इस बड़ी घटना के बाद शुक्रवार को आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेता इसके लिए बीजेपी को दोषी ठहराते रहे. आप नेता आतिशी, सौरभ भारद्वाज व अन्य नेताओं ने खुलकर कहा कि दिल्ली में ऐसे हालात जानबूझकर बनाए जा रहे हैं, ताकि राष्ट्रपति शासन लागू हो.

फरवरी 2014 में केजरीवाल के कारण लगा था राष्ट्रपति शासन: इससे पहले दिल्ली में जब फरवरी 2014 में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा था, तब उसके कारण भी मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी ही थी. राजनीति में आने के बाद केजरीवाल के नेतृत्व में जब आम आदमी पार्टी ने दिसंबर 2013 में विधानसभा का चुनाव लड़ा था तो पार्टी के सिर्फ 28 सीटें ही जीती थी. सरकार चलाने के लिए 36 विधायकों का समर्थन चाहिए. तब धुर विरोधी राजनीतिक दल कांग्रेस के समर्थन से आप ने दिल्ली में सरकार बनाई थी और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने थे. यह सरकार कुल 49 दिन तक ही चली.

दिल्ली विधानसभा में जब विपक्ष में बैठी भाजपा ने केजरीवाल सरकार से जनलोकपाल बिल लाने की मांग की तो सरकार वह बिल तो लाई लेकिन कांग्रेस का समर्थन इस बिल को नहीं मिला. ऐसी स्थिति बनी की मुख्यमंत्री केजरीवाल को 49 दिन की सरकार चलाने के बाद इस्तीफा देना पड़ा. मुख्यमंत्री विधानसभा से सीधे कनॉट प्लेस स्थित तब के पार्टी कार्यालय पहुंचे और वहां पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से इस्तीफा का ऐलान कर दिया.

49 दिन बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दे दिया था इस्तीफा: तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मुख्यमंत्री केजरीवाल के इस्तीफा को स्वीकारते हुए तत्काल प्रभाव से दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया. यह जानकारी तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग के कार्यालय से सार्वजनिक की गई थी. तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने दिल्ली विधानसभा को जन लोकपाल विधेयक पेश नहीं करने का सुझाव दिया था.

उपराज्यपाल ने कहा था कि इसके लिए पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेना जरूरी है. तब मुख्यमंत्री ने उपराज्यपाल पर निशाना साधते हुए कहा कि वह केंद्र सरकार के वायसराय की तरह काम करते हैं, जो सोचती है कि अभी ब्रिटिश सरकार है. मुख्यमंत्री केजरीवाल कमोबेश आज भी इस तरह की जिद पर अड़े हैं और उनकी पार्टी दिल्ली में हुए शराब घोटाले जिसकी जांच केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई और ईडी दोनों कर रही है इसे फर्जी बता रहे हैं.

इन बिंदुओं के आधार पर लग सकता है राष्ट्रपति शासन:

  1. संवैधानिक संकट तब कहा जा सकता है, जब दिल्ली में सरकार अल्पमत में हो.
  2. दिल्ली में खराब कानून व्यवस्था को आधार बनाकर भी राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि यह सीधे-सीधे एलजी और केंद्र के अधीन आती है.
  3. अगर राज्य सरकार ने ऐसा कोई कानून पारित नहीं किया है, जो केंद्र सरकोर के बनाए कानून के खिलाफ हो.
  4. दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार के किसी विधि सम्मत आदेश को भी मानने से इन्कार कर दिया हो.
  5. दिल्ली सरकार ने भारत की संप्रभुता के खिलाफ कोई काम किया हो तब.

आप विधायक की दलील: विधायक दिलीप पांडे ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 में यह बताया गया है कि राष्ट्रपति शासन किन परिस्थितियों में लगाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को पद से हटाने वाली पीआईएल पर जुर्माना लगाते हुए तीन बार खारिज किया है. इससे यह सिद्ध होता है कि दिल्ली में कुछ भी असंवैधानिक नहीं है.

उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 356 के सेक्शन 93 में छह बिन्दु दिए गए हैं और ये संवैधानिक संकट की स्थिति को परिभाषित करते हैं. इनमें से किसी बिंदु का पालन न होन पर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. वहीं, जब दिल्ली में ऐसी किसी भी तरह की स्थिति नहीं है. फिर बीजेपी ऐसी परिस्थियां क्यों पैदा करना चाहती है, जिनकी आड़ में वो दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा दें.

नई दिल्ली: दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू होने की चर्चा सियासी गलियारे में इस समय सुर्खियों में है. कथित शराब घोटाला मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल में बंद हैं. आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल जेल से ही सरकार चलाने की बात कर रहे हैं, लेकिन गत कुछ दिनों के दौरान दिल्ली में प्रशासनिक कामकाज ठप पड़ा गया है. उपराज्यपाल वीके सक्सेना इस संबंध में गृह मंत्रालय को दो पत्र भेज चुके हैं.

दिल्ली सरकार के मंत्री राजकुमार आनंद ने अचानक मंत्री पद त्याग कर पार्टी के प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. इस बड़ी घटना के बाद शुक्रवार को आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेता इसके लिए बीजेपी को दोषी ठहराते रहे. आप नेता आतिशी, सौरभ भारद्वाज व अन्य नेताओं ने खुलकर कहा कि दिल्ली में ऐसे हालात जानबूझकर बनाए जा रहे हैं, ताकि राष्ट्रपति शासन लागू हो.

फरवरी 2014 में केजरीवाल के कारण लगा था राष्ट्रपति शासन: इससे पहले दिल्ली में जब फरवरी 2014 में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा था, तब उसके कारण भी मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी ही थी. राजनीति में आने के बाद केजरीवाल के नेतृत्व में जब आम आदमी पार्टी ने दिसंबर 2013 में विधानसभा का चुनाव लड़ा था तो पार्टी के सिर्फ 28 सीटें ही जीती थी. सरकार चलाने के लिए 36 विधायकों का समर्थन चाहिए. तब धुर विरोधी राजनीतिक दल कांग्रेस के समर्थन से आप ने दिल्ली में सरकार बनाई थी और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने थे. यह सरकार कुल 49 दिन तक ही चली.

दिल्ली विधानसभा में जब विपक्ष में बैठी भाजपा ने केजरीवाल सरकार से जनलोकपाल बिल लाने की मांग की तो सरकार वह बिल तो लाई लेकिन कांग्रेस का समर्थन इस बिल को नहीं मिला. ऐसी स्थिति बनी की मुख्यमंत्री केजरीवाल को 49 दिन की सरकार चलाने के बाद इस्तीफा देना पड़ा. मुख्यमंत्री विधानसभा से सीधे कनॉट प्लेस स्थित तब के पार्टी कार्यालय पहुंचे और वहां पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से इस्तीफा का ऐलान कर दिया.

49 दिन बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दे दिया था इस्तीफा: तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मुख्यमंत्री केजरीवाल के इस्तीफा को स्वीकारते हुए तत्काल प्रभाव से दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया. यह जानकारी तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग के कार्यालय से सार्वजनिक की गई थी. तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने दिल्ली विधानसभा को जन लोकपाल विधेयक पेश नहीं करने का सुझाव दिया था.

उपराज्यपाल ने कहा था कि इसके लिए पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेना जरूरी है. तब मुख्यमंत्री ने उपराज्यपाल पर निशाना साधते हुए कहा कि वह केंद्र सरकार के वायसराय की तरह काम करते हैं, जो सोचती है कि अभी ब्रिटिश सरकार है. मुख्यमंत्री केजरीवाल कमोबेश आज भी इस तरह की जिद पर अड़े हैं और उनकी पार्टी दिल्ली में हुए शराब घोटाले जिसकी जांच केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई और ईडी दोनों कर रही है इसे फर्जी बता रहे हैं.

इन बिंदुओं के आधार पर लग सकता है राष्ट्रपति शासन:

  1. संवैधानिक संकट तब कहा जा सकता है, जब दिल्ली में सरकार अल्पमत में हो.
  2. दिल्ली में खराब कानून व्यवस्था को आधार बनाकर भी राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि यह सीधे-सीधे एलजी और केंद्र के अधीन आती है.
  3. अगर राज्य सरकार ने ऐसा कोई कानून पारित नहीं किया है, जो केंद्र सरकोर के बनाए कानून के खिलाफ हो.
  4. दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार के किसी विधि सम्मत आदेश को भी मानने से इन्कार कर दिया हो.
  5. दिल्ली सरकार ने भारत की संप्रभुता के खिलाफ कोई काम किया हो तब.

आप विधायक की दलील: विधायक दिलीप पांडे ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 में यह बताया गया है कि राष्ट्रपति शासन किन परिस्थितियों में लगाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को पद से हटाने वाली पीआईएल पर जुर्माना लगाते हुए तीन बार खारिज किया है. इससे यह सिद्ध होता है कि दिल्ली में कुछ भी असंवैधानिक नहीं है.

उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 356 के सेक्शन 93 में छह बिन्दु दिए गए हैं और ये संवैधानिक संकट की स्थिति को परिभाषित करते हैं. इनमें से किसी बिंदु का पालन न होन पर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. वहीं, जब दिल्ली में ऐसी किसी भी तरह की स्थिति नहीं है. फिर बीजेपी ऐसी परिस्थियां क्यों पैदा करना चाहती है, जिनकी आड़ में वो दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा दें.

Last Updated : Apr 13, 2024, 12:37 PM IST
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