गया: बिहार के गया में वेस्ट टू वेल्थ के झोंपड़ा मॉडल ने कमाल कर दिखाया है. यह वेस्ट टू वेल्थ का मॉडल दिल्ली तक हिट हुआ है. कुशा (कासी) घास को लोग बेकार समझते हैं, उसी वेस्ट टू वेल्थ से ऐसा झोपड़ा मॉडल तैयार किया गया है, जो कि लघु उद्यमियों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है. इस झोपड़ा मॉडल की काफी प्रशंसा हो रही है.
झोपड़ा मॉडल को प्रथम पुरस्कार: दिल्ली में पेप्सिको कंपनी ने इस मॉडल को प्रथम पुरस्कार दिया है. माना जा रहा है, कि यह झोपड़ा मॉडल महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में कारगर साबित होगा. वहीं महिलाओं के अलावा पुरुषों के लिए भी यह झोंपड़ा रोजगार के एक बड़े विकल्प के रूप में सामने आ रहा है.
इस खास से बनता है ये झोपड़ा: कुशा घास जंगल या फिर झाड़ियां या नदियों में बड़े पैमाने पर देखी जाती है. कुशा घास का आयुर्वेद में तो महत्व है, लेकिन आमतौर पर यह इतने बड़े पैमाने पर उपजता है कि इसका कुछ नहीं हो पाता है. कुछ पर्व त्योहार में ही कुशा घास का उपयोग लोग करते हैं. हालांकि अब कुशा घास झोपड़ा मॉडल कमाल कर रहा है.
उद्यमियों के लिए बड़े काम का है ये झोपड़ा: ये झोपड़ा लघु उद्यमियों के लिए रोजगार का एक नया अवसर है. कुशा घास का झोपड़ा कमजोर नहीं होता है. ये हवा के झोंके से भी नहीं उड़ता और न ही आसानी से टूटता है. यह झोपड़ा काफी मजबूत होता है और टिकाऊ भी. थोड़ी देखभाल से 10 सालों तक यह झोपड़ा पूरी तरह से सलामत रहता है.
प्लग एंड प्ले की तर्ज पर 24 से 48 घंटे में होता है तैयार: गया में संचालित समर्थ संस्था ने इसकी शुरुआत की है. समर्थ संस्था की ऑर्डिनेटर सुरभी कुमारी ने आइडिया आने के बाद पहले कुशा घास से मशरूम झोपड़ी के तौर पर इसकी शुरुआत की. ट्रायल सफल रहा, तो उसके बाद अब समर्थ संस्था के द्वारा कुशा घास से झोपड़ी तैयार किए जा रहे हैं. समर्थ संस्था इन झोपड़ों को तैयार करने के पीछे कमाई का जरिया नहीं बना रही, बल्कि बेरोजगारों को रोजगार का विकल्प भी दें रही है. झोपड़ा तैयार करने में सिर्फ 24 से 48 घंटे ही लगते हैं और फिर प्लग एंड प्ले की तर्ज पर रोजगार शुरू.
लघु उद्योग के लिए बड़े काम का है झोपड़ा मॉडल: कुशा का बना झोपड़ा मॉडल अब रोजगार का माध्यम बनेगा. समर्थ संस्था महिलाओं के लिए कई तरह के काम करती है. इस क्रम में समर्थ संस्था से जुड़ी महिलाएं उनसे रोजगार की अपेक्षा कर रही थी, किसी प्रकार के उद्यम लगाने की उनकी मंशा थी. इस बीच समर्थ संस्था की कोऑर्डिनेटर सुरभी कुमारी को आइडिया आया, कि क्यों न महिलाओं के लिए कम पैसे में ऐसे झोपड़ा बनाया जाए, जिसमें वह स्वरोजगार कर सकती है. अपना उद्यम लगा सकती हैं.
केंद्र और राज्य सरकार लागातार ला रही कई योजनाएं: आज वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकार की कई योजनाएं हैं, जिसमें लघु उद्यम के लिए अवसर दिए जा रहे हैं. इसके बाद समर्थ संस्था के मन में कुशा यानि, जिसे काशी घास भी लोग कहते हैं, उससे झोपड़ा तैयार करने का आइडिया आया और यह कामयाब रहा. झोपड़े को बनाने वाली समर्थ संस्था की कोऑर्डिनेटर सुरभी कुमारी की दूरदर्शी सोच को लेकर पेप्सिको कंपनी ने दिसंबर महीने में दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में इस झोपड़ा मॉडल को नंबर वन का पुरस्कार दिया है.
पोर्टेबल है यह झोपड़ा: इस संबंध में समर्थ संस्था की कोऑर्डिनेटर सुरभी कुमारी बताती हैं कि उनकी संस्था इको फ्रेंडली वेस्ट टू वेल्थ के तर्ज पर काशी घास से झोपड़ी बना रही है. काशी घास को बेकार समझा जाता है, लेकिन इसका उपयोग कर झोपड़े बनाए जा रहे हैं. चंद हजार में ही दुकान के लायक 100 स्क्वायर फीट जमीन में या फिर आधे या एक कट्ठा का झोपड़ा नक्शे के साथ तैयार कर दिया जाता है. यह झोपड़ा पोर्टेबल है, जिसे आप कहीं भी ले जा सकते हैं.
"यदि लोग बेरोजगार हैं, तो सिर्फ खाली जमीन का चयन करें और उसमें झोपड़ा 24 से 48 घंटे में बनकर तैयार हो जाएगा और उसमें तुरंत ही उद्यम या रोजगार शुरू कर सकते हैं. काशी घास आसपास की नदियों में ही पाया जाता है. उसका उपयोग पूरी तरह से इस झोपड़ी को बनाने में किया जा रहा है. लोकल बंबू का इस्तेमाल किया जा रहा है. कुशा घास के झोपड़े और उसके परिसर को मिलकर लोग मधुमक्खी पालन, होटल, दुकान, मशरूम उत्पादन, बकरी पालन या अन्य छोटे-मोटे रोजगार या उद्यम कर सकते हैं. इसमें ज्यादा खर्च नहीं आता है."-सुरभी कुमारी, समर्थ संस्था की कोऑर्डिनेटर
पेप्सिको से मिला प्रथम पुरस्कार: सुरभी कुमारी बताती हैं कि इस तरह के दूरदर्शी सोच से वेस्ट टू वेल्थ की तर्ज पर उद्यम झोपड़ी बनाने को लेकर पेप्सिको ने प्रथम अवार्ड दिया है. "हम यह सोचते हैं, कि महिलाएं खेत के पास नहीं जाना चाहती हैं, तो खेत ही महिलाओं के पास आए, उसी तर्ज पर इसका निर्माण किया जा रहा है. तकरीबन 10 सालों तक झोपड़ा मजबूती से टिका रहता है. सिर्फ थोड़ी सी देखभाल की जरूरत होती है."
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