जयपुर. ग्रेटर नगर निगम की महापौर डॉ. सौम्या गुर्जर का कहना है कि अल्बर्ट हॉल के नाम बदलने को लेकर अब जनता से राय ली जाएगी. शनिवार को मीडियाकर्मियों से मुखातिब हुई मेयर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि सबसे पहले हमें अपनी विरासतों पर गर्व होना चाहिए. दरअसल, सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों के साथ शनिवार को मेयर अल्बर्ट हॉल पहुंची थीं, जहां उन्होंने कहा कि अल्बर्ट हॉल का नाम अल्बर्ट की जगह कुछ और होना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमारे महापुरुषों के नाम पर इस इमारत का नाम होना चाहिए.
मेयर ने बताया कि पृथ्वीराज कच्छावा और राजा राम सिंह जी के नाम समेत कई नाम का सुझाव मिला है. साथ ही जयपुर से जुड़े शहीदों और महापुरुषों के नाम का भी सुझाव मिला है, जिन पर विचार किया जाएगा. उन्होंने बताया कि यह फैसला जनता की भावनाओं को सर्वोपरि मानते हुए लिया जाएगा, जिसमें गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने का संदेश भी होगा. वहीं, इस चर्चा में राम के नाम से जुड़े सुझाव भी प्राप्त हुए हैं.
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ये है अल्बर्ट हॉल का इतिहास : जयपुर की हृदय स्थल के रूप में पहचान रखने वाला अल्बर्ट हॉल रामनिवास बाग के बीच में स्थित है. फिलहाल इसी इमारत की पहचान राजकीय संग्रहालय के रूप में भी है. भारत और अरबी शैली में बनी इस इमारत की डिजाइन ब्रिटिश शासनकाल के मशहूर आर्किटेक्ट सैमुअल स्विंटन जैकब ने की थी. पब्लिक संग्रहालय के रूप में इसे साल 1887 में खोला गया था. कहा जाता है कि जब प्रिंस ऑफ वेल्स, अल्बर्ट एडवर्ड की जयपुर यात्रा पर आए थे तो उनके नाम पर ही इस इमारत का नामकरण किया गया.
हालांकि, बाद में इसका उपयोग कैसे किया जाए, ये दुविधा काफी समय तक बनी हुई थी. तब के महाराजा सवाई राम सिंह चाहते थे कि अल्बर्ट हॉल, एक टाउन हॉल हो, कुछ विद्वानों ने इसे सांस्कृतिक या शैक्षिक उपयोग में लाने का सुझाव भी दिया था, लेकिन डॉ. थॉमस होबिन हेंडली ने इसे संग्रहालय बनाने का सुझाव दिया. आखिरकार महाराजा "माधोसिंह द्वितीय " ने इस इमारत को एक कला संग्रहालय के रूप में पहचान देने का मानस बनाया. साल 1880 में जयपुर के स्थानीय शिल्पकारों की कलाकृति को प्रदर्शित करने वाले एक संग्रहालय के रूप में अल्बर्ट हॉल को पहचान मिली.
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इस म्यूजियम के अहाते में कई पुराने चित्र, दरिया, हाथी दांत, कीमती पत्थर, धातु, मूर्तियां और रंग बिरंगे कई देसी-विदेशी सामान देखने को मिलेंगे. म्यूजियम की भव्य वास्तुकला इंडो-अरेबिक शैली की है. यहां मिस्र में एक पुजारी के परिवार की महिला सदस्य टूटू ममी है, इस तरह से अल्बर्ट हॉल संग्रहालय भी भारत के उन छह स्थानों में से एक है, जहां आप मिस्र की ममी को देख सकते हैं.