डूंगरपुर. लोकसभा चुनाव की परिणामों के महज कुछ घंटे शेष है. इसके बाद पता चल जाएगी कि आखिर किस पार्टी को जनता ने स्वीकारा है. इस बीच प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है. राजस्थान के दक्षिणांचल में स्थित डूंगरपुर -बांसवाड़ा लोकसभा सीट की बात करें तो यह सीट इस बार राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रही. कारण था इस पर कांग्रेस का पहले प्रत्याशी घोषित करना और फिर उसके बाद बाप पार्टी से गठबंधन कर लेना. इस बार इस सीट पर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला. भाजपा और भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के बीच मुख्य रूप से कड़ी टक्कर देखी गई.
आजादी के बाद से पहली बार कांग्रेस ने यहां खुद के प्रत्याशी के बजाय बीएपी प्रत्याशी के लिए वोट मांगे. अब परिणाम आने के बाद ही पता चल पाएगी कि आखिर जीत का सेहरा किसके सिर बंधा है. डूंगरपुर-बांसवाड़ा लोकसभा सीट पर भाजपा से महेंद्रजीत सिंह मालवीय प्रत्याशी है. मालवीय चुनाव से ठीक एक महीने पहले ही कांग्रेस से भाजपा में आए थे. वहीं कांग्रेस से अरविंद डामोर को प्रत्याशी बनाया गया था, लेकिन बाद में कांग्रेस ने भारत आदिवासी पार्टी के प्रत्याशी और चौरासी से विधायक राजकुमार रोत को समर्थन दे दिया, लेकिन अरविंद डामोर पीछे नहीं हटे और उन्होंने चुनाव लड़ा. लिहाजा, कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी अरविंद को पार्टी से निकाल दिया था.
डूंगरपुर- बांसवाड़ा लोकसभा सीट की बात करें तो पिछली 2 बार से यहां भाजपा का कब्जा रहा है. 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा के कनकमल कटारा ने 3 लाख 5 हजार 464 वोटों से जीत दर्ज की थी. कटारा को 7 लाख 11 हजार 709 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के ताराचंद भगोरा को 4 लाख 6 हजार 245 वोट ही मिले थे. वहीं पहली बार मैदान में उतरी भारतीय ट्राइबल पार्टी बीटीपी के कांतिलाल को 2 लाख 50 हजार 761 वोट मिले थे, जबकि इससे पहले 2013-14 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के मानशंकर निनामा ने जीत हासिल की थी. मानशंकर निनामा को 5 लाख 77 हजार 433 वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस की रेशम मालवीय को 91 हजार 916 वोट मिले थे.
एसटी वोटर जिधर गया, उसी की जीत : राजस्थान का दक्षिणांचल आदिवासी बहुल बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिला कई मायनों में खास है. बांसवाडा-डूंगरपुर लोकसभा सीट जनजाति बाहुल्य सीट है. इस सीट पर 70 फीसदी वोटर एसटी है, जबकि 30 फीसदी वोटर्स में ओबीसी, सामान्य, एससी और अल्पसंख्यक सहित अन्य वोटर्स हैं. राजनीतिक लिहाज से इस क्षेत्र में कांग्रेस की मजबूत पकड़ मानी जाती थी क्योकि यहां के आदिवासी कांग्रेस का वोट बैंक माने जाते थे, लेकिन पिछले दो लोकसभा चुनाव में देखने में आया है कि आदिवासी वोट कांग्रेस से छिटक कर भाजपा की तरफ चला गया और दो बार भाजपा के सांसद जीत कर लोकसभा गए हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव में आदिवासी समाज के नाम से मैदान में आई भारत आदिवासी पार्टी कांग्रेस के गठबंधन के बाद इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत की गणित बिगाड़ सकती है.
22 लाख में से 14 लाख वोटर्स एसटी : बांसवाडा-डूंगरपुर लोकसभा सीट पर कुल करीब 22 लाख वोटर्स है. इनमें से करीब 14 लाख 85 हजार वोटर्स एसटी, करीब 3 लाख 17 हजार वोटर्स ओबीसी, एक लाख 67 हजार के करीब वोटर्स सामान्य, 80 हजार वोटर्स एससी और अन्य वर्ग के वोटर्स हैं. ऐसे में एसटी वोटर्स की संख्या ज्यादा होने से इस सीट पर एसटी वोटर ही जीत दिलवाते हैं.
17 में से 12 बार कांग्रेस की जीत : बांसवाड़ा लोकसभा सीट पर आजादी के बाद 17 बार चुनाव हुए, जिनमें से 12 बार कांग्रेस के सांसद बने. वहीं 4 बार भाजपा प्रत्याशी जितने में कामयाब रहे.