लखनऊ: अरे यार कुछ तो करो, सांस चल रही है, केजीएमयू के डाक्टर कुछ तो करो, उसकी हार्ट बीट चल रही है...प्लीज देख लो...पल्स रेट चल रही है, देख लो यार, बच्चा जिंदा है... कुछ तो करो डॉक्टर बेटे की पल्स रेट चल रही है, प्लीज कुछ तो करो..एक पिता की ये दर्दभरी पुकार उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेज केजीएमयू की है. शुक्रवार सुबह से यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसे देखकर हर को भावुक हो जा रहा है. आरोप है कि लखनऊ स्थित केजीएमयू के डॉक्टरों द्वारा ठीक से इलाज नहीं करने के कारण 9 महीने के बच्चे की मौत हो गई.
14 जून को केजीएमयू में भर्ती हुआ था बच्चा
जानकारी के मुताबिक, गोरखपुर के रहने वाले जितेंद्र यादव ने 14 जून को बच्चे को सिर्फ लूज मोशन होने के कारण केजीएमयू में भर्ती कराया था. शुक्रवार की सुबह बच्चे की मौत हो गयी. परिजनों ने डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही का लगाया आरोप लगाया है. परिजनों का आरोप है कि डॉक्टरों ने बच्चे का इलाज नहीं किया. बच्चे का पल्स रेट लगातार गिर रही थी. जिसकी जानकारी देने के बाद भी डॉक्टर और स्टाफ नहीं पहुंचे. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में बच्चे का पिता कह रहा है कि डॉक्टर उन्हें धमकी दे रहे हैं. इसके अलावा स्टाफ कर्मचारियों ने धमकी दी कि ज्यादा इधर-उधर करोगे तो शव भी नहीं दिया जाएगा. डॉक्टरों और स्टाफ नर्सो ने यह भी कहा कि अगर पुलिस में शिकायत की तो बच्चे के शव को लावारिस में डाल देंगे. फिलहाल, परिजनों ने इस मामले की शिकायत पुलिस से की है. वहीं, केजीएमयू प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने कहा कि इस मामले की जांच जरूर की जाएगी. जांच में अगर लापरवाही सामने आई तो कार्रवाई की जाएगी. उधर बच्चे की मौत पर समाजवादी पार्टी ने योगी सरकार और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर सवाल खड़ा किया है.
ये यूपी के राजधानी लखनऊ के सबसे बड़े अस्पताल KGMU का हाल है👇
— SamajwadiPartyMediaCell (@MediaCellSP) June 28, 2024
बच्चे की सांस चल रही थी ,पिता चीखता चिल्लाता गुहार लगाता रहा कि कोई डॉक्टर देख ले लेकिन किसी डॉक्टर ने बच्चे को देखना तक उचित नहीं समझा और अंततः बच्चे की जान चली गई
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केजीएमयू ने बयान जारी कर बताई बच्चे के मरने की पूरी कहानी
वहीं, केजीएमयू की ओर से बयान जारी कर बताया गया है कि 14 जून को 9 महीने के बच्चे को मैक्स अस्पताल के पीआईसीयू से केजीएमयू में भर्ती कराया गया था. बच्चा पिछले 2 महीनों से बीमार चल रहा था. केजीएमयू में भर्ती के समय बच्चे को बुखार, डायरिया, निमोनिया, पैन्सीटोपेनिया के लक्षण थे. अंतर्निहित इम्युनोडेफिशिएंसी के चलते, सेप्सिस का निदान किया गया था। इम्यूनोडेफिशिएंसी के संदेह को देखते हुए बच्चे को मैक्स अस्पताल में आईवीआईजी (इम्यूनोग्लोब्लिन) दिया गया था. ब्रॉड स्पेक्ट्रम IV एंटीबायोटिक्स शुरू की गईं और बच्चे को उसकी श्वसन संबंधी परेशानी के लिए उच्च प्रवाह ऑक्सीजन पर रखा गया। बच्चे के परिवार को उसकी स्थिति और उपचार की योजना के बारे में परामर्श दिया गया था.
बच्चे की सांस संबंधी परेशानी धीरे-धीरे बिगड़ती गई, इसलिए उसे एचएफएनसी सहायता के लिए पीआईसीयू में स्थानांतरित कर दिया गया. निमोनिया की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए अधिक बैक्टीरिया को कवर करने के लिए IV एंटीबायोटिक्स को अपग्रेड किया गया। अगले कुछ दिनों में बच्चे की हालत और भी खराब हो गई तो एआरडीएस हो गया. इसके लिए बच्चे को मैकेनिकल वेंटिलेशन पर रखा गया. बच्चे को सेप्टिक शॉक के गंभीर हो जाने के कारण आयनोट्रोप्स जोड़े गए. बच्चे के परिवार को उसकी बीमारी की बिगड़ती स्थिति के बारे में परिजनों को रोज बताया जाता था.
केजीएमयू की ओर से बताया कि कुछ दिनों में बच्चे के मस्तिष्क और गुर्दे की कार्यप्रणाली भी ख़राब हो गई। उसने प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया और आँखें खोलना बंद कर दिया था. तरल पदार्थ शरीर में जमा होना शुरू हो गया, जिससे पूरे शरीर में सूजन हो गई. बाल चिकित्सा नेफ्रोलॉजी विशेषज्ञ से राय ली गई और उनकी सलाह के बाद, गुर्दे की विफलता के प्रबंधन के लिए बच्चे को डायलिसिस पर रखा गया. तमाम कोशिशों के बावजूद बच्चे की हालत लगातार बिगड़ती गई. बच्चे को सेप्टीसीमिया के बाद मल्टी-ऑर्गन डिसफंक्शन हो गया था, जिस पर एंटीबायोटिक्स का असर नहीं हो रहा था. बच्चे के माता-पिता को मल्टीपल ऑर्गन डिसफंक्शन सिंड्रोम और उपचार की गैर-प्रतिक्रियाशीलता के बारे में बताया गया. बच्ची सांस की हालत लगातार खराब होती जा रही थी और बहुत अधिक वेंटिलेटर सेटिंग्स के बावजूद ऑक्सीजन संतृप्ति बनाए रखना बंद कर दिया. रिफ्रैक्टरी हाइपोक्सिमिया के लिए बच्चे को एचएफओवी वेंटिलेटर पर भी रखा गया, लेकिन इससे भी कोई फायदा नहीं हुआ. इसके बाद शुक्रवार को बच्चे को ब्रैडीकार्डिया के बाद कार्डियक अरेस्ट हुआ और उसे मृत घोषित कर दिया गया.
केजीएमयू में इलाज कराना चुनौतीपूर्ण: केजीएमयू में इलाज कराना एक बड़ी चुनौती बन गई है. आरोप लगते रहे हैं कि प्रदेश भर से मरीज इलाज करने के लिए यहां आते तो है, लेकिन उन्हें कायदे से इलाज नहीं मिल पाता है. कड़ी मशक्कत के बाद मरीज भर्ती भी हो जाता है तो वार्ड में मरीज को देखने के लिए कोई सीनियर डॉक्टर तक नहीं पहुंचता है. एक मरीज जब भर्ती होता है, तो उसकी फाइल पर तीन डॉक्टरों का नाम लिखा होता है. रेजिडेंट डॉक्टर्स और स्टाफ कर्मचारियों की खरी खोटी सुन सुनकर तीमारदार खून के घूंट पीकर रह जाते हैं.