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गर्भवती की लापरवाही से नवजात को भी हो सकता है HIV, इलाज में देरी बनेगी घातक, पढ़िए विशेषज्ञ की सलाह - WORLD AIDS DAY 2024

WORLD AIDS DAY 2024 : गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में ही इलाज शुरू होने से नवजात को बीमारी से बचाया जा सकता है

एचआईवी संक्रमित गर्भवती को कई बातों का ध्यान रखना होता है.
एचआईवी संक्रमित गर्भवती को कई बातों का ध्यान रखना होता है. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 1, 2024, 12:32 PM IST

लखनऊ : एचआईवी (Human immunodeficiency viruses) का नाम आते है अक्सर लोगों के जेहन में डर बैठ जाता है. इसे एड्स के नाम से भी जाना जाता है. आंकड़ों के मुताबिक एचआईवी 25 से 35 वर्ष के युवाओं और गर्भवती महिलाओं को अधिक होता है. बहुत सारी महिलाएं गर्भावस्था के आखिरी महीने में अस्पताल पहुंचती हैं. यह सबसे चिंताजनक बात है. अगर किसी गर्भवती महिला को एड्स है तो उसके होने वाले शिशु को संक्रमण से बचाया जा सकता है. शुरुआती महीने से ही इसके लिए दवा शुरू करनी जरूरी होती है.

विशेषज्ञ ने दी कई अहम जानकारियां. (Video Credit; ETV Bharat)

हर मरीज की काउंसलिंग, नाम रखा जाता है गोपनीय : केजीएमयू स्थित एंटी-रेस्ट्रोवायरल थेरेपी सेंटर (एआरटी) की हेड डॉ. डी हिमांशु ने ईटीवी भारत के साथ कई जानकारियों को साझा किया. उन्होंने कहा कि पहले की तुलना में आज लोग अधिक जागरूक हो चुके हैं. सरकार की तरफ से कई जागरूकता कार्यक्रम आयोजित होते हैं. प्रदेश भर के जितने भी मरीज होते हैं. उनकी काउंसलिंग की जाती है. उन्हें फ्री एग्जामिनेशन के लिए बुलाया जाता है. अगर कभी कोई मरीज दिए गए तारीख पर नहीं पहुंचता है तो उसे फोन करके बुलाया जाता है. ताकि, उसका इलाज सुनिश्चित हो सकें. यहां पर जो भी मरीज आते हैं. उनकी प्राइवेसी रखी जाती है. उनका नाम उनकी फोटो किसी से साझा नहीं किया जाता है. उन्होंने कहा कि अब लोग यहां पर आने में शर्म नहीं करते हैं. बल्कि, यहीं आकर अपना इलाज पूरा करते हैं. पहले लोग आर्ट सेंटर आने में हिचक खाते थे.

एचआईवी संक्रमण में यूपी दूसरे नंबर पर : उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में लोग इस संक्रमण को लेकर बिल्कुल भी सावधानी नहीं बरत रहें है. इसके कारण यूपी भारत में एचआईवी संक्रमण के मामले में दूसरे नंबर पर है. उन्होंने बताया कि एड्स एक गंभीर बीमारी है. यह पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकता, लेकिन मौजूदा समय में जांच और दवा के जरिए इस बीमारी के खतरे को कम जरूर किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए जागरुकता जरूरी है. इसके लिए एक दिसंबर को हर साल विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है.

2030 तक एचआईवी को खत्म करने का लक्ष्य : उन्होंने कहा कि एचआईवी और एड्स का नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाते हैं. यह भय ही नुकसान का सबसे बड़ा कारण है. इतना ही नहीं भय और जागरूकता की कमी के चलते मौजूदा समय में हर साल करीब 7 प्रतिशत बच्चे एचआईवी संक्रमित हो रहे हैं. इसकी वजह है कि वयस्क डर और जागरुकता के चलते जांच नहीं कराते और उनके जब बच्चे होते हैं तो वह भी एचआईवी संक्रमित हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि पूरे देश में कुल आबादी का 2.1 प्रतिशत आबादी एचआईवी से ग्रसित है. उन्होंने कहा कि 2030 तक एचआईवी की महामारी को समाप्त करने के लक्ष्य और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जागरूकता व समाज को शिक्षित करने पर जोर दिया.

एचआईवी संक्रमण के मामलों में यूपी दूसरे स्थान पर.
एचआईवी संक्रमण के मामलों में यूपी दूसरे स्थान पर. (Photo Credit; ETV Bharat)

यूपी में 1.97 लाख लोग एचआईवी संक्रमित : उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी के संयुक्त निदेशक (प्रिवेंशन) रमेश श्रीवास्तव ने कहा कि एचआईवी/एड्स के प्रति समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करना और सही जानकारी को जन-जन तक पहुंचाना अत्यंत आवश्यक है. उन्होंने यह भी बताया कि इस दिशा में मीडिया का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है और जागरूकता बढ़ाने में मीडिया एक प्रभावी माध्यम बन सकता है. उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में अनुमानित 1.97 लाख लोग एचआईवी संक्रमित हैं, जिनमें से लगभग 1.20 लाख लोग समस्त जिलों में स्थापित एआरटी केंद्रों के माध्यम से उपचार प्राप्त कर रहे हैं.

बीएसडी संयुक्त निदेशक डॉ. गीता अगरवाल ने बताया कि 2030 तक एड्स को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है, और इस दिशा में वर्ष 2025-26 बेहद महत्वपूर्ण है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए नए संक्रमणों में 80 प्रतिशत की कमी लाना. एड्स से होने वाली मृत्यु दर को घटाना और एचआईवी संक्रमित माताओं से बच्चों में संक्रमण का खतरा पूरी तरह समाप्त करना प्रमुख प्राथमिकताएं हैं. अगर किसी गर्भवती महिला को एड्स है तो उसके होने वाले शिशु को संक्रमण से बचाया जा सकता है. इसके लिए गर्भावस्था से शुरुआती दिनों में ही इलाज शुरू करना बेहद जरूरी है.

एचआईवी जांच के लिए 399 ICTC : उन्होंने उत्तर प्रदेश में एड्स से संबंधित सुविधाओं की जानकारी साझा की. उन्होंने बताया कि राज्य में एचआईवी जांच के लिए 399 इंटीग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (ICTC) उपलब्ध हैं. इसके अलावा, 52 एआरटी (एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी) केंद्रों पर उपचार की सुविधा दी जा रही है. राज्य में 35 संपूर्ण सुरक्षा केंद्र और 115 एसटीआई, आरटीआई (यौन संचारित संक्रमण व प्रजनन मार्ग संक्रमण) केंद्र भी कार्यरत हैं, जो एड्स और इससे जुड़ी अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मददगार साबित हो रहे हैं.

एड्स के खतरों के बारें में जानकारी देते हुए डॉ. एके सिंघल, संयुक्त निदेशक (केयर सपोर्ट एवं उपचार सेवा) ने बताया कि संक्रमण का सबसे बड़ा कारण असुरक्षित शारीरिक संबंध है, जो 83 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार है. वहीं, लगभग 6.3 प्रतिशत मामलों में यह संक्रमण संक्रमित सुई के उपयोग से फैलता है.

प्रदेश में इतने सेंटर : एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी सेंटर (एआरटी सेंटर) 52, एआरटी प्लस 5, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस 1, प्राइवेट अस्पताल में एआरटी 7, केजीएमयू एआरटी में भर्ती बच्चे 262, गर्भवती 52. वहीं, केजीएमयू में कुल रजिस्टर्ड मरीज 4122 हैं. कोरोना महामारी से पहले इनकी संख्या 2,500 थी.

यह भी पढ़ें : बेहद गंभीर बीमारी है AIDS, जानिए इससे बचने के उपाय

लखनऊ : एचआईवी (Human immunodeficiency viruses) का नाम आते है अक्सर लोगों के जेहन में डर बैठ जाता है. इसे एड्स के नाम से भी जाना जाता है. आंकड़ों के मुताबिक एचआईवी 25 से 35 वर्ष के युवाओं और गर्भवती महिलाओं को अधिक होता है. बहुत सारी महिलाएं गर्भावस्था के आखिरी महीने में अस्पताल पहुंचती हैं. यह सबसे चिंताजनक बात है. अगर किसी गर्भवती महिला को एड्स है तो उसके होने वाले शिशु को संक्रमण से बचाया जा सकता है. शुरुआती महीने से ही इसके लिए दवा शुरू करनी जरूरी होती है.

विशेषज्ञ ने दी कई अहम जानकारियां. (Video Credit; ETV Bharat)

हर मरीज की काउंसलिंग, नाम रखा जाता है गोपनीय : केजीएमयू स्थित एंटी-रेस्ट्रोवायरल थेरेपी सेंटर (एआरटी) की हेड डॉ. डी हिमांशु ने ईटीवी भारत के साथ कई जानकारियों को साझा किया. उन्होंने कहा कि पहले की तुलना में आज लोग अधिक जागरूक हो चुके हैं. सरकार की तरफ से कई जागरूकता कार्यक्रम आयोजित होते हैं. प्रदेश भर के जितने भी मरीज होते हैं. उनकी काउंसलिंग की जाती है. उन्हें फ्री एग्जामिनेशन के लिए बुलाया जाता है. अगर कभी कोई मरीज दिए गए तारीख पर नहीं पहुंचता है तो उसे फोन करके बुलाया जाता है. ताकि, उसका इलाज सुनिश्चित हो सकें. यहां पर जो भी मरीज आते हैं. उनकी प्राइवेसी रखी जाती है. उनका नाम उनकी फोटो किसी से साझा नहीं किया जाता है. उन्होंने कहा कि अब लोग यहां पर आने में शर्म नहीं करते हैं. बल्कि, यहीं आकर अपना इलाज पूरा करते हैं. पहले लोग आर्ट सेंटर आने में हिचक खाते थे.

एचआईवी संक्रमण में यूपी दूसरे नंबर पर : उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में लोग इस संक्रमण को लेकर बिल्कुल भी सावधानी नहीं बरत रहें है. इसके कारण यूपी भारत में एचआईवी संक्रमण के मामले में दूसरे नंबर पर है. उन्होंने बताया कि एड्स एक गंभीर बीमारी है. यह पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकता, लेकिन मौजूदा समय में जांच और दवा के जरिए इस बीमारी के खतरे को कम जरूर किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए जागरुकता जरूरी है. इसके लिए एक दिसंबर को हर साल विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है.

2030 तक एचआईवी को खत्म करने का लक्ष्य : उन्होंने कहा कि एचआईवी और एड्स का नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाते हैं. यह भय ही नुकसान का सबसे बड़ा कारण है. इतना ही नहीं भय और जागरूकता की कमी के चलते मौजूदा समय में हर साल करीब 7 प्रतिशत बच्चे एचआईवी संक्रमित हो रहे हैं. इसकी वजह है कि वयस्क डर और जागरुकता के चलते जांच नहीं कराते और उनके जब बच्चे होते हैं तो वह भी एचआईवी संक्रमित हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि पूरे देश में कुल आबादी का 2.1 प्रतिशत आबादी एचआईवी से ग्रसित है. उन्होंने कहा कि 2030 तक एचआईवी की महामारी को समाप्त करने के लक्ष्य और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जागरूकता व समाज को शिक्षित करने पर जोर दिया.

एचआईवी संक्रमण के मामलों में यूपी दूसरे स्थान पर.
एचआईवी संक्रमण के मामलों में यूपी दूसरे स्थान पर. (Photo Credit; ETV Bharat)

यूपी में 1.97 लाख लोग एचआईवी संक्रमित : उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी के संयुक्त निदेशक (प्रिवेंशन) रमेश श्रीवास्तव ने कहा कि एचआईवी/एड्स के प्रति समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करना और सही जानकारी को जन-जन तक पहुंचाना अत्यंत आवश्यक है. उन्होंने यह भी बताया कि इस दिशा में मीडिया का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है और जागरूकता बढ़ाने में मीडिया एक प्रभावी माध्यम बन सकता है. उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में अनुमानित 1.97 लाख लोग एचआईवी संक्रमित हैं, जिनमें से लगभग 1.20 लाख लोग समस्त जिलों में स्थापित एआरटी केंद्रों के माध्यम से उपचार प्राप्त कर रहे हैं.

बीएसडी संयुक्त निदेशक डॉ. गीता अगरवाल ने बताया कि 2030 तक एड्स को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है, और इस दिशा में वर्ष 2025-26 बेहद महत्वपूर्ण है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए नए संक्रमणों में 80 प्रतिशत की कमी लाना. एड्स से होने वाली मृत्यु दर को घटाना और एचआईवी संक्रमित माताओं से बच्चों में संक्रमण का खतरा पूरी तरह समाप्त करना प्रमुख प्राथमिकताएं हैं. अगर किसी गर्भवती महिला को एड्स है तो उसके होने वाले शिशु को संक्रमण से बचाया जा सकता है. इसके लिए गर्भावस्था से शुरुआती दिनों में ही इलाज शुरू करना बेहद जरूरी है.

एचआईवी जांच के लिए 399 ICTC : उन्होंने उत्तर प्रदेश में एड्स से संबंधित सुविधाओं की जानकारी साझा की. उन्होंने बताया कि राज्य में एचआईवी जांच के लिए 399 इंटीग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (ICTC) उपलब्ध हैं. इसके अलावा, 52 एआरटी (एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी) केंद्रों पर उपचार की सुविधा दी जा रही है. राज्य में 35 संपूर्ण सुरक्षा केंद्र और 115 एसटीआई, आरटीआई (यौन संचारित संक्रमण व प्रजनन मार्ग संक्रमण) केंद्र भी कार्यरत हैं, जो एड्स और इससे जुड़ी अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मददगार साबित हो रहे हैं.

एड्स के खतरों के बारें में जानकारी देते हुए डॉ. एके सिंघल, संयुक्त निदेशक (केयर सपोर्ट एवं उपचार सेवा) ने बताया कि संक्रमण का सबसे बड़ा कारण असुरक्षित शारीरिक संबंध है, जो 83 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार है. वहीं, लगभग 6.3 प्रतिशत मामलों में यह संक्रमण संक्रमित सुई के उपयोग से फैलता है.

प्रदेश में इतने सेंटर : एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी सेंटर (एआरटी सेंटर) 52, एआरटी प्लस 5, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस 1, प्राइवेट अस्पताल में एआरटी 7, केजीएमयू एआरटी में भर्ती बच्चे 262, गर्भवती 52. वहीं, केजीएमयू में कुल रजिस्टर्ड मरीज 4122 हैं. कोरोना महामारी से पहले इनकी संख्या 2,500 थी.

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