झालावाड़. देश भर में शनिवार को अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाया जा रहा है. इस मौके पर पर्यटन विकास समिति झालावाड़ के तत्वावधान में झालावाड़ संग्रहालय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इसमें जिले की पुरातन विरासत और संस्कृति पर प्रकाश डाला गया और पुरा महत्व की धरोहरों को सहेजने के लिए सरकार से मांग की गई. इधर, झालावाड़ संग्रहालय में प्रवेश निशुल्क रहने से पूरे प्रदेश के अन्य जिलों से देशी विदेशी पर्यटक भी संग्रहालय देखने पहुंचे. यहां रखी ऐतिहासिक धरोहरों और पुरातन मूर्तियों व चित्रकारी को देखकर पर्यटकों ने संग्रहालय की काफी प्रशंसा की.
इस अवसर पर समिति के संयोजक ओम पाठक ने बताया कि झालावाड़ संग्रहालय राजस्थान का सबसे पुराना और भारत में बेहतरीन संग्रहालय में से एक है. इसकी स्थापना 1915 ई. में की गई थी. उन्होंने बताया कि संग्रहालय में सुंदर पेंटिंग, मूर्तियां और दुर्लभ पांडुलिपियां हैं, जो पांचवीं और सातवीं शताब्दी के शिलालेखों से संबंधित हैं. यहां पहुंचे पर्यटकों को चंद्रावती शहर और झालरापाटन क्षेत्र से प्राप्त मूर्तियों तथा पुरालेखों को अवश्य देखना चाहिए. संग्रहालय में 32 दीर्घाओं में प्रदर्शित कई दीवार पेंटिंग और मूर्तियां हैं.
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उन्होंने कहा कि यहां के राणा भवानी सिंह ने झालावाड़ राज्य और अपनी विदेश यात्राओं से कला के कार्यों को इकट्ठा करना शुरू किया और 1915 में महल के गेट के बाहर एक संग्रहालय खोला. उन्होंने कहा कि झालावाड़ 1920 के दशक में एक सांस्कृतिक केंद्र हुआ करता था. यहां राज राणा भवानी सिंह ने महल परिसर के भीतर भवानी नाट्यशाला या ओपेरा हाउस का निर्माण करवाया था. अर्धनारीश्वर की विश्वप्रसिद्ध प्रतिमा यहां मौजूद है. यह 1982 में भारत महोत्सव में लंदन में प्रदर्शित की गई थी. पर्यटन विकास समिति की ओर से आयोजित संगोष्ठी में प्रशासन से मांग की कि महीने में एक बार सरकारी तथा निजी विद्यालयों के विद्यार्थियों को संग्रहालय का अवलोकन करवाया जाए. संग्रहालय में गाइड की व्यवस्था की जाए जो संग्रहालय की सम्पदा को पूर्णरूप से बता सकें.