कुचामनसिटी: रोशनी के त्योहार दीपावली पर घराें को रोशन करने के लिए इन दिनों कुचामन के कुम्हार मोहल्ले में चाक की रफ्तार बढ़ गई है. जिले ही नहीं बल्कि प्रदेश के कई इलाकों में कुचामन में बने मिट्टी के दिए जलाकर ही दीपावली मनाई जाती है.
श्यामलाल प्रजापत ने बताया कि आधुनिक युग में लोग अब बिजली सहित अन्य तरीकों से घरों को दीपावली पर सजाते हैं, लेकिन मिट्टी के दीयों से घरों को रोशन करने की परंपरा जारी है. इस साल भी दीपावली को लेकर जिले में तैयारियां परवान पर हैं. कुचामन के कलाकार भी मिट्टी के दिए बनाने में जुट गए हैं. गौरतलब है कि कुचामन क्षेत्र के मिट्टी के दिए ना सिर्फ डीडवाना-कुचामन जिले बल्कि प्रदेश के कई इलाकों में भेजे जाते हैं. इस साल अच्छी बरसात के बाद फसल भी अच्छी होने की बात कही जा रही है और माना जा रहा है इसी के चलते दिवाली भी खास होगी.
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कलाकारों को इस साल पिछले सीजन की तुलना में दिए बनाने के ज्यादा आर्डर मिले हैं. कलाकार श्यामलाल प्रजापत ने बताया कि पिछले कुछ साल से दिए बनाने के काम में मंदी आ गई थी. क्योंकि बाजार में चाइनीज प्रोडक्ट के चलते लोग पारंपरिक मिट्टी के दिए ना खरीदकर चाइनीज लाइट की खरीददारी कर रहे थे. लेकिन राम मंदिर में मूर्ति की स्थापना के समय कुचामन में बने मिट्टी के दिए की मांग फिर से बढ़ी है. उस समय 5 लाख से ज्यादा दिए बनाने के ऑर्डर मिले थे.
कुचामन के कुम्हारों के मोहल्ले में आज गलियां और चौक मिट्टी के दीयों से अटे पड़े हैं. पुरुष हो या महिलाएं सभी, दिए बनाने, उन्हे बाहर भेजने के काम में जुटे हैं. मिट्टी के दीपक की बढ़ती मांग को देखते हुए कुम्हारों के मोहल्ले में रात-दिन चाक का पहिया रफ्तार पकड़े हुए है. कलाकारों का कहना है कि पिछले समय से मिट्टी के दीपकों की मांग वापस बढ़ी है. कलाकारों ने आमजन से दीवाली पर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार के स्वदेशी उपयोग में लेने की भी बात कही.
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कलाकार राजकुमार प्रजापत कहते हैं कि हर साल 5 लाख दियों के ऑर्डर मिलते थे. इस बार हमें 5 लाख से ज्यादा दीपक बनाने हैं. गोपाल प्रजापत ने बताया कि दियों का सीजन केवल दीपावली के अवसर पर ही आता है. इसके बाद हमें दीपक का आर्डर नहीं मिलता. केवल गर्मी के दिनों में मटकी बनाते हैं और कभी कबार मिट्टी के कुछ आइटम का आर्डर आता रहता है. लगभग 8-9 वर्ष पहले हमारे दीपक बहुत ज्यादा बिकते थे और अच्छी कमाई भी हो जाती थी. लेकिन जब से चाइनीज लाइट चली है, हमारी कमाई में कमी आई है. कलाकार मिट्टी को आकार देकर दीपक, हटरि, गुजरी, लक्ष्मी-गणेश जी, चौघड़िया, डिवट, बनाने में जुटे हैं. पहले 30 रुपए के 100 दीये बिकते थे अब 80 रुपए में 100 दीये दिए जा रहे हैं.