देहरादूनः लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तराखंड में चल रही जोड़-तोड़ की राजनीति से भले ही वर्तमान समय में कांग्रेस को बड़ा नुकसान होता दिखाई दे रहा है, लेकिन आने वाले समय में भाजपा में भी एक बड़ी समस्या खड़े होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है. जानकारों की मानें तो भाजपा, अन्य दलों के नेताओं को अपने पार्टी में शामिल कर भले ही अपना कुनबा बढ़ा रही हो. लेकिन आने वाले समय में पार्टी पुराने नेताओं के बीच असंतोष उत्पन्न हो जाएगा, जो पार्टी के लिए काफी खतरनाक होगा.
लोकसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा लगातार अपने कुनबे को बढ़ाने की कवायद में लगी है. मौजूदा स्थिति यह है कि अभी तक करीब 11 हजार से अधिक अन्य दलों के कार्यकर्ताओं को भाजपा में शामिल कराया जा चुका है. मुख्य रूप से भाजपा की कोशिश है कि विपक्ष के कुनबे को खाली कर दिया जाए. इसी टारगेट के साथ भाजपा अन्य दलों के नेताओं को अपने दल में शामिल कर रही है.
कांग्रेस के बागी नेताओं को 2017 में BJP ने दिया मंत्री पद: दरअसल, साल 2016 में तत्कालिन मुख्यमंत्री हरीश रावत सरकार के दौरान उनके ही तमाम मंत्रियों और विधायकों ने अपने बगावती सुर बुलंद कर दिए थे. फिर इन 9 विधायकों ने कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था. इसके बाद साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में तत्कालिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार बनी. इस दौरान सरकार में कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल हुए तमाम नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था. इसमें यशपाल आर्य, हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल, रेखा आर्य, सतपाल महाराज मंत्री पद पर काबिज हुए. यानी, साल 2016 में कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा में शामिल हुए नेताओं में से पांच बड़े नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह दी गई थी.
2017 के चुनाव में पार्टी कार्यकर्ताओं में दिखा था असंतोष: साल 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान जब भाजपा ने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान किया तो उस दौरान पूर्व प्रत्याशियों समेत पूर्व विधायकों ने पार्टी के सामने अपना विरोध जताया था. हालांकि, उनका विरोध खुलकर सामने नहीं आया, क्योंकि पार्टी उन्हें मनाने में कामयाब हो गई थी. लेकिन भाजपा के सीनियर नेता हेम आर्य ने भाजपा से टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा था. ऐसे में साल 2016 में कांग्रेसी नेता भाजपा में शामिल ना हुए होते तो शायद 2017 के चुनाव नतीजे और अन्य परिस्थितियां कुछ अलग ही होती. साल 2017 में भाजपा 57 सीटें जीतकर सत्ता पर काबिज हुई थी. अगर ये नेता शामिल न हुए होते तो यह जादुई आंकड़ा घटने की पूरी संभावना थी.
कांग्रेस नेताओं को टिकट मिलने पर सीटिंग विधायकों ने छोड़ी थी BJP: इसी क्रम में साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी जब भाजपा ने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान किया तो भाजपा के पूर्व विधायकों के सुर बुलंद हो गए थे. दरअसल, 2022 विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की पूर्व महिला प्रदेश अध्यक्ष सरिता आर्य और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने भाजपा का दामन थाम लिया था. ऐसे में भाजपा ने इन दोनों नेताओं को पार्टी से टिकट दिया था. ऐसे में टिकट कटने से नाराज दो विधायकों ने भाजपा से बगावत कर दी. जिसमें टिहरी से भाजपा विधायक रहे धन सिंह नेगी ने भाजपा का दामन छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया था और किशोर उपाध्याय के सामने चुनावी मैदान में उतर गए थे. इसके साथ ही भाजपा से विधायक रहे राजकुमार ठुकराल ने भी पार्टी से अपना इस्तीफा देकर रुद्रपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था.
2017 और 2022 में खूब हुआ नेताओं का दल बदल: किसी भी चुनाव के दौरान नेताओं के दल बदल का सिलसिला देखा जाता रहा है. साल 2016 के बाद नेताओं के दल बदल का मामला काफी अधिक देखा गया. इसके बाद हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान बड़ी तादाद में नेता अपने समर्थकों के साथ अन्य दलों में शामिल होते दिखाई देते रहे हैं. साल 2017 और 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में नेताओं ने कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा का दामन थामा था. ऐसा नहीं है कि सिर्फ कांग्रेस के नेता ही भाजपा में शामिल हुए. बल्कि तमाम दलों के नेता भी भाजपा में शामिल हुए. साथ ही भाजपा के भी तमाम नेता और कार्यकर्ता, कांग्रेस समेत अन्य दलों में शामिल हुए थे.
क्या भाजपा के भीतर हो सकता है घमासान? लेकिन वर्तमान लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश की राजनीतिक परिस्थितियों कुछ अलग ही नजर आ रही हैं. एक तरफ भाजपा में नेताओं-कार्यकर्ताओं के शामिल होने का सिलसिला लगातार जारी है. दूसरी तरफ विपक्षी दल कांग्रेस में गिने चुने नेता और कार्यकर्ता ही शामिल हो रहे हैं. इसलिए भाजपा का कुनबा लगातार बढ़ता जा रहा है. यही वजह है कि आशंका जताई जा रही है कि जिस बड़ी तादात में नेता और कार्यकर्ता भाजपा का दामन थाम रहे है, ऐसे में आने वाले समय में भाजपा के भीतर भी घमासान होने की संभावना बन सकती है.
दलबदल नेता को तवज्जो से कैडर बेस कार्यकर्ता निराश: भाजपा के बढ़ रहे कुनबे के सवाल पर राजनीतिक जानकार जय सिंह रावत का कहना है कि पुराने नेताओं के लिए चुनौती तब होती है जब अन्य दलों से आए नेताओं को पद दिए जाते हैं. जिन नेताओं ने पार्टी को इतनी ऊंचाई तक पहुंचाया है, उनको इग्नोर कर अगर दल-बदलू नेताओं को तवज्जो मिलेगी, तो जो पार्टी के कमिटेड नेता हैं, उनको निराशा होगी ही. लेकिन भाजपा में ऐसा कम होता है क्योंकि भाजपा में नेता एक विचारधारा पर कमिटेड हैं. ऐसे में उन्हें किसी भी प्रलोभन के जरिए हिलाया नहीं जा सकता है.
पार्टी के विचारों को स्वीकार कर रहे अन्य दल के नेता: भाजपा में लगातार बढ़ रहे नेताओं की संख्या आने वाले समय में पुराने कार्यकर्ताओं में असंतोष की स्थिति पैदा कर सकता है, इस सवाल पर भाजपा के वरिष्ठ नेता देवेंद्र भसीन का कहना है कि भाजपा आज विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है. इसका विस्तार, पार्टी के विचार का जनता में हो रही स्वीकृति के साथ बढ़ रहा है. इसके साथ ही अन्य दलों के नेता भी भाजपा के विचारों को स्वीकार करते हुए और पीएम मोदी के कार्यों को देखते हुए पार्टी में शामिल हो रहे हैं. पार्टी में काम की कोई कमी नहीं है. लिहाजा, संगठन में हर कार्यकर्ता के लिए काम है. पुराने कार्यकर्ताओं का जो सम्मान है, वो बना रहेगा और जो नए कार्यकर्ता पार्टी में शामिल हो रहे हैं, उनको भी योग्यता अनुसार सम्मान दिया जाएगा. लेकिन अगर कुछ लोग सीमित एजेंडे के साथ पार्टी में शामिल हो रहे हैं तो वो समय के साथ छन जाएंगे.
अन्य दलों को तोड़ने का काम कर रही भाजपा: भाजपा पर लगातार शामिल हो रहे नेताओं और कार्यकर्ताओं के सवाल पर कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट ने कहा कि भाजपा एक तरफ दावा करती है वो दुनिया की सबसे बड़ी कैडर बेस पार्टी है. दूसरी तरफ अन्य दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को तोड़ने में लगी हुई है. इससे स्पष्ट है कि भाजपा अंदर से जर्जर हो चुकी है. ऐसे में दूसरे दलों के नेताओं को तोड़कर चुनाव लड़ना चाहती है. लेकिन इससे भाजपा का जो कैडर बेस कार्यकर्ता है, वो निराश होगा. क्योंकि कैडर बेस कार्यकर्ता को साइड लाइन किया जा रहा है और जो बाहर से आए नेता हैं, उनको पुरस्कृत किया जा रहा है. चुनाव के समय में जो नेता अपने दल को छोड़ दूसरे दलों में शामिल हो रहे हैं, वो जनता के बीच अपने विश्वनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं. ऐसे में समय आ गया है कि इन दल-बदलू नेताओं को सबक सिखाया जाए.
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