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डीयू ने कानून के पाठ्यक्रम में मनु स्मृति को जोड़ने का लॉ फैकल्टी का प्रस्ताव खारिज किया, शिक्षकों ने किया था विरोध - implemention of manusmriti in llb

Implemention of manusmriti in LLB: एलएलबी छात्रों को मनुस्मृति पढ़ाने को लेकर शिक्षकों के एक वर्ग ने विरोध जताया है. इसके बाद शाम में डीयू ने कानून के पाठ्यक्रम में मनु स्मृति को जोड़ने के प्रस्ताव खारिज को खारिज कर दिया.

दिल्ली विश्वविद्यालय
दिल्ली विश्वविद्यालय (ETV Bharat)
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By PTI

Published : Jul 11, 2024, 7:13 PM IST

Updated : Jul 11, 2024, 10:56 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के विधि छात्रों को पाठ्यक्रम में मनुस्मृति पढ़ाने के लॉ फैकल्टी के प्रस्ताव को दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने खारिज कर दिया है. इस बात की जानकारी खुद डीयू कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने वीडियो जारी करके दी है. इससे पहले सुबह खबर आई थी कि इस प्रस्ताव पर शुक्रवार को अकादमिक परिषद की बैठक में चर्चा होने वाली है. इसका शिक्षकों के एक वर्ग ने विरोध किया था.

विधि संकाय ने अपने प्रथम और तृतीय वर्ष के छात्रों को 'मनुस्मृति' पढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम को संशोधित करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकाय से मंजूरी मांगी थी. न्यायशास्त्र पेपर के पाठ्यक्रम में बदलाव एलएलबी के सेमेस्टर एक और छह से संबंधित थे.

संशोधनों के अनुसार, मनुस्मृति पर दो पाठ- जी एन झा द्वारा मेधातिथि के मनुभाष्य के साथ मनुस्मृति और टी कृष्णासावमी अय्यर द्वारा मनुस्मृति की टिप्पणी - स्मृतिचंद्रिका - को छात्रों के लिए पेश करने का प्रस्ताव है. बैठक के ब्योरे के अनुसार, संशोधन का सुझाव देने के उनके निर्णय को डीन अंजू वली टीकू की अध्यक्षता में संकाय की पाठ्यक्रम समिति की 24 जून की बैठक में सर्वसम्मति से स्वीकृत किया गया था.

इस कदम पर आपत्ति जताते हुए वाम समर्थित सोशल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (एसडीटीएफ) ने डीयू के कुलपति प्रो. योगेश सिंह को पत्र लिखकर कहा है कि पांडुलिपि महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के अधिकारों के प्रति "प्रतिगामी" दृष्टिकोण का प्रचार करती है और यह एक प्रगतिशील शिक्षा प्रणाली के खिलाफ है.

कुलपति को लिखे पत्र में एसडीटीएफ के महासचिव एसएस बरवाल और अध्यक्ष एसके सागर ने कहा कि छात्रों को मनुस्मृति को एक सुझाव के रूप में पढ़ने की सिफारिश करना "अत्यधिक आपत्तिजनक है, क्योंकि यह पाठ भारत में महिलाओं और हाशिए के समुदायों की प्रगति और शिक्षा के प्रतिकूल है." मनुस्मृति में कई धाराओं में महिलाओं की शिक्षा और समान अधिकारों का विरोध किया गया है. इसमें लिखा है, ''मनुस्मृति के किसी भी खंड या भाग को शामिल करना हमारे संविधान की मूल संरचना और भारतीय संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है.''

यह भी पढ़ें- DU में हो सकता है 'मानवता व धर्म के लिए गीता' का पेपर, हिंदू अध्ययन केंद्र का प्रस्ताव

एसडीटीएफ की तरफ से यह मांग की गई है कि इस प्रस्ताव को तुरंत वापस लिया जाए और 12 जुलाई को होने वाली एकेडमिक काउंसिल की बैठक में इसे मंजूरी न दी जाए. साथ ही कुलपति से कानून संकाय और संबंधित स्टाफ सदस्यों को मौजूदा पाठ्यक्रम के आधार पर पेपर न्यायशास्त्र पढ़ाना जारी रखने का आदेश जारी करने का अनुरोध किया.

यह भी पढ़ें- डीयू अकादमिक काउंसिल की बैठक में रखी जाए प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट: प्रो. सुमन

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के विधि छात्रों को पाठ्यक्रम में मनुस्मृति पढ़ाने के लॉ फैकल्टी के प्रस्ताव को दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने खारिज कर दिया है. इस बात की जानकारी खुद डीयू कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने वीडियो जारी करके दी है. इससे पहले सुबह खबर आई थी कि इस प्रस्ताव पर शुक्रवार को अकादमिक परिषद की बैठक में चर्चा होने वाली है. इसका शिक्षकों के एक वर्ग ने विरोध किया था.

विधि संकाय ने अपने प्रथम और तृतीय वर्ष के छात्रों को 'मनुस्मृति' पढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम को संशोधित करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकाय से मंजूरी मांगी थी. न्यायशास्त्र पेपर के पाठ्यक्रम में बदलाव एलएलबी के सेमेस्टर एक और छह से संबंधित थे.

संशोधनों के अनुसार, मनुस्मृति पर दो पाठ- जी एन झा द्वारा मेधातिथि के मनुभाष्य के साथ मनुस्मृति और टी कृष्णासावमी अय्यर द्वारा मनुस्मृति की टिप्पणी - स्मृतिचंद्रिका - को छात्रों के लिए पेश करने का प्रस्ताव है. बैठक के ब्योरे के अनुसार, संशोधन का सुझाव देने के उनके निर्णय को डीन अंजू वली टीकू की अध्यक्षता में संकाय की पाठ्यक्रम समिति की 24 जून की बैठक में सर्वसम्मति से स्वीकृत किया गया था.

इस कदम पर आपत्ति जताते हुए वाम समर्थित सोशल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (एसडीटीएफ) ने डीयू के कुलपति प्रो. योगेश सिंह को पत्र लिखकर कहा है कि पांडुलिपि महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के अधिकारों के प्रति "प्रतिगामी" दृष्टिकोण का प्रचार करती है और यह एक प्रगतिशील शिक्षा प्रणाली के खिलाफ है.

कुलपति को लिखे पत्र में एसडीटीएफ के महासचिव एसएस बरवाल और अध्यक्ष एसके सागर ने कहा कि छात्रों को मनुस्मृति को एक सुझाव के रूप में पढ़ने की सिफारिश करना "अत्यधिक आपत्तिजनक है, क्योंकि यह पाठ भारत में महिलाओं और हाशिए के समुदायों की प्रगति और शिक्षा के प्रतिकूल है." मनुस्मृति में कई धाराओं में महिलाओं की शिक्षा और समान अधिकारों का विरोध किया गया है. इसमें लिखा है, ''मनुस्मृति के किसी भी खंड या भाग को शामिल करना हमारे संविधान की मूल संरचना और भारतीय संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है.''

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एसडीटीएफ की तरफ से यह मांग की गई है कि इस प्रस्ताव को तुरंत वापस लिया जाए और 12 जुलाई को होने वाली एकेडमिक काउंसिल की बैठक में इसे मंजूरी न दी जाए. साथ ही कुलपति से कानून संकाय और संबंधित स्टाफ सदस्यों को मौजूदा पाठ्यक्रम के आधार पर पेपर न्यायशास्त्र पढ़ाना जारी रखने का आदेश जारी करने का अनुरोध किया.

यह भी पढ़ें- डीयू अकादमिक काउंसिल की बैठक में रखी जाए प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट: प्रो. सुमन

Last Updated : Jul 11, 2024, 10:56 PM IST
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