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छत्तीसगढ़ में आदिमानव, इन जंगलों में मिली निशानियां, 4 हजार साल का दिखा इतिहास - Primitive man civilization - PRIMITIVE MAN CIVILIZATION

Discovery Of Signs Related To Primitive Man छत्तीसगढ़ के कोरबा में आदिमानवों से जुड़ी निशानियां मिली हैं. पुरातत्ववेत्ताओं की माने तो ये निशानियां 4 हजार साल से भी ज्यादा पुराने हो सकते हैं.इसके लिए अब वैज्ञानिकों को शोध करने के निर्देश दिए गए हैं.Thousands Of Years Old Civilization

Discovery of signs related to primitive man
आदिमानव से जुड़ी निशानियों की खोज (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 28, 2024, 9:22 PM IST

Updated : Aug 29, 2024, 9:32 AM IST

कोरबा : छत्तीसगढ़ की ऊर्जाधानी कोरबा अपने अंदर बहुत बड़ा इतिहास समेटे हुए है. ये क्षेत्र खनिज संपदा से लबरेज तो है ही साथ ही साथ जिले का इतिहास भी भव्य रहा है. जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर दुधीटांगर गांव में 45 से अधिक शैलचित्र मिले हैं. जिन्हें पत्थर पर उकेरा गया है. इन चित्रों में हिरण, सांभर, श्वान, बकरी, तेंदुआ, सियार के अलावा पदचिन्ह और मानवाकृति के अलावा ज्यामितीय चित्र भी बनाए गए हैं. यह सभी पहाड़ के नीचे एक गुफा के अंदर मौजूद हैं.

छत्तीसगढ़ में आदिमानव से जुड़ी निशानियों की खोज (ETV BHARAT)


किसने खोजा शैल चित्र ? : इस गुफा की खोज कुछ दिन पहले जिला पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक हरिसिंह क्षत्री ने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से की है. क्षत्री का दावा है कि "इस गुफा में मौजूद यह सभी शैलचित्र 4000 साल पुराने ताम्रपाषाण युग के हैं. शैल चित्रों के बारे में हरिसिंह क्षत्री ने बताया कि पुरातत्व की दृष्टिकोण से यह शैलचित्र बेहद महत्वपूर्ण हैं. इसकी सूचना पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री से सम्मानित केके मोहम्मद, कर्नाटक के पुरातत्वविद रवि कोरीसेट्टार, वाकणकर शोध संस्थान उज्जैन के पदाधिकारी एवं पुरातात्विक जानकार विनीता देशपांडे के अलावा स्थापत्य कला विशेषज्ञ इंद्रनील बंकापुरे कोल्हापुर को भी वीडियो कॉल के माध्यम से दी है."

Discovery of signs related to primitive man
गुफा की दीवारों पर हिरण के चित्र (ETV Bharat Chhattisgarh)

'' शैल चित्रों को देखकर केके मोहम्मद ने संभावना जताई है कि चित्र ताम्रपाषाण युग के हो सकते हैं. जिनका संबंध 4000 साल पुराना है. पुरातत्ववेत्ता केके मोहम्मद ने इन शैल चित्रों का डॉक्यूमेंटेशन करने के आवश्यक निर्देश दिए हैं. ताकि इन्हें विज्ञान की कसौटी पर परखा जा सके. साथ ही आसपास पाषाणकालीन लघु उपकरणों की खोजबीन करने के लिए कहा है. ताकि यहां की प्राचीन स्थिति और मानव सभ्यता के विकास में दुधीटांगर में मिले शैल चित्रों को देखकर कोई निष्कर्ष निकाला जा सके.''- हरिसिंह क्षत्री, पुरातत्व संग्रहालय कोरबा

सभ्यता को प्रदर्शित कर रहे हैं शैलचित्र : प्राचीन काल में आदिमानव इसी तरह की गुफाओं में शरण लेते थे. जिस गुफा में वो निवास करते थे, वहां अपनी मौजूदगी का प्रमाण छोड़ते थे. इसलिए शैलचित्रों का विकास मानव सभ्यता के इतिहास से जुड़ा होना माना जाता है. पूर्व में मानव अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शैल या चट्टानों पर चित्र उकेरते थे. तब उसके पास लिखने के लिए कोई लिपि नहीं थी.

कोरबा में मिली तीसरी गुफा : क्षत्री ने यह भी बताया कि कोरबा में खोज की गई यह तीसरी गुफा है. संभावना है कि इस गुफा में आदि मानव रहता था. इसके पहले इसी प्रकार की गुफा अरेतला के जंगल में मिली थी. कोरबा जिले में आदिमानवों के अनेक ठिकानों को खोजने का दावा पूर्व में भी हरि सिंह कर चुके हैं. इसमें 25 चित्रित शैलाश्रयों के अलावा अचित्रित शैलाश्रयों की खोज शामिल है. कोरबा में पाषाणकाल के उपकरण भी पूर्व में मिले हैं, जिन्हें जिला पुरातत्व संग्रहालय में रखा गया है.

Discovery of signs related to primitive man
चार हजार साल की सभ्यता मिलने का दावा (ETV Bharat Chhattisgarh)
वैज्ञानिक पद्धति से गुजरने के बाद ही मिलेगी मान्यता : पुरातत्व की दृष्टिकोण शैलचित्र और इस तरह की कलाकृति के प्राचीन होने की जांच की जाती है. इसके लिए वैज्ञानिक पद्धति का सहारा लिया जाता है. जब तक इस पद्धति से शैलचित्रों को प्रमाणित ना कर लिया जाए, विज्ञान की कसौटी पर न उतार जाए, तब तक यह कितने पुराने हैं. यह प्रमाणित करना कठिन है. हालांकि गुफा में मिले शैलचित्रों की स्थिति देखकर इनके काफी पुराने होने के बात जानकारी कह रहे हैं. लेकिन अब इसके वैज्ञानिक पद्धति से जांच करने की तैयारी चल रही है. प्रयास किया जा रहा है कि इन शैलचित्राें को केंद्र या राज्य संरक्षित स्थल के तौर पर मान्यता मिले. जिससे कि इन शैलचित्रों को संरक्षित किया जा सके.

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किसने खोजा शैल चित्र ? : इस गुफा की खोज कुछ दिन पहले जिला पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक हरिसिंह क्षत्री ने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से की है. क्षत्री का दावा है कि "इस गुफा में मौजूद यह सभी शैलचित्र 4000 साल पुराने ताम्रपाषाण युग के हैं. शैल चित्रों के बारे में हरिसिंह क्षत्री ने बताया कि पुरातत्व की दृष्टिकोण से यह शैलचित्र बेहद महत्वपूर्ण हैं. इसकी सूचना पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री से सम्मानित केके मोहम्मद, कर्नाटक के पुरातत्वविद रवि कोरीसेट्टार, वाकणकर शोध संस्थान उज्जैन के पदाधिकारी एवं पुरातात्विक जानकार विनीता देशपांडे के अलावा स्थापत्य कला विशेषज्ञ इंद्रनील बंकापुरे कोल्हापुर को भी वीडियो कॉल के माध्यम से दी है."

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'' शैल चित्रों को देखकर केके मोहम्मद ने संभावना जताई है कि चित्र ताम्रपाषाण युग के हो सकते हैं. जिनका संबंध 4000 साल पुराना है. पुरातत्ववेत्ता केके मोहम्मद ने इन शैल चित्रों का डॉक्यूमेंटेशन करने के आवश्यक निर्देश दिए हैं. ताकि इन्हें विज्ञान की कसौटी पर परखा जा सके. साथ ही आसपास पाषाणकालीन लघु उपकरणों की खोजबीन करने के लिए कहा है. ताकि यहां की प्राचीन स्थिति और मानव सभ्यता के विकास में दुधीटांगर में मिले शैल चित्रों को देखकर कोई निष्कर्ष निकाला जा सके.''- हरिसिंह क्षत्री, पुरातत्व संग्रहालय कोरबा

सभ्यता को प्रदर्शित कर रहे हैं शैलचित्र : प्राचीन काल में आदिमानव इसी तरह की गुफाओं में शरण लेते थे. जिस गुफा में वो निवास करते थे, वहां अपनी मौजूदगी का प्रमाण छोड़ते थे. इसलिए शैलचित्रों का विकास मानव सभ्यता के इतिहास से जुड़ा होना माना जाता है. पूर्व में मानव अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शैल या चट्टानों पर चित्र उकेरते थे. तब उसके पास लिखने के लिए कोई लिपि नहीं थी.

कोरबा में मिली तीसरी गुफा : क्षत्री ने यह भी बताया कि कोरबा में खोज की गई यह तीसरी गुफा है. संभावना है कि इस गुफा में आदि मानव रहता था. इसके पहले इसी प्रकार की गुफा अरेतला के जंगल में मिली थी. कोरबा जिले में आदिमानवों के अनेक ठिकानों को खोजने का दावा पूर्व में भी हरि सिंह कर चुके हैं. इसमें 25 चित्रित शैलाश्रयों के अलावा अचित्रित शैलाश्रयों की खोज शामिल है. कोरबा में पाषाणकाल के उपकरण भी पूर्व में मिले हैं, जिन्हें जिला पुरातत्व संग्रहालय में रखा गया है.

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वैज्ञानिक पद्धति से गुजरने के बाद ही मिलेगी मान्यता : पुरातत्व की दृष्टिकोण शैलचित्र और इस तरह की कलाकृति के प्राचीन होने की जांच की जाती है. इसके लिए वैज्ञानिक पद्धति का सहारा लिया जाता है. जब तक इस पद्धति से शैलचित्रों को प्रमाणित ना कर लिया जाए, विज्ञान की कसौटी पर न उतार जाए, तब तक यह कितने पुराने हैं. यह प्रमाणित करना कठिन है. हालांकि गुफा में मिले शैलचित्रों की स्थिति देखकर इनके काफी पुराने होने के बात जानकारी कह रहे हैं. लेकिन अब इसके वैज्ञानिक पद्धति से जांच करने की तैयारी चल रही है. प्रयास किया जा रहा है कि इन शैलचित्राें को केंद्र या राज्य संरक्षित स्थल के तौर पर मान्यता मिले. जिससे कि इन शैलचित्रों को संरक्षित किया जा सके.

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Last Updated : Aug 29, 2024, 9:32 AM IST
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