भोपाल। लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की 29 सीटों पर हार-जीत को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा है मध्य प्रदेश की राजा और महाराजा की गुना और राजगढ़ लोकसभा सीट की. राघौगढ़ लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपना आखिरी चुनाव लड़ रहे हैं. चुनाव मैदान में वे मतदाताओं के बीच इसी दावे के साथ पहुंच रहे हैं. 33 साल बाद राजगढ़ सीट पर वापस लौटे दिग्विजय सिंह के लिए यह चुनाव निर्णायक होगा. कांग्रेस की मौजूदा कमजोर स्थिति में यदि वे जीते तो न सिर्फ प्रदेश बल्कि देश की सियासत में उनका कद कई गुना बढ़ना तय है.
33 साल बाद पुराने अंदाज में चुनावी जंग
10 साल चुनावी सियासत से दूर रहने के बाद 2019 का लोकसभा चुनाव दिग्विजय सिंह हार गए थे. इस बार वे चुनाव के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन पार्टी आलाकमान के आदेश पर वे राजगढ़ सीट पर जीत दर्ज करने दिन-रात जनसंपर्क में जुटे हैं. दिग्विजय सिंह अपना चुनाव अपने ही अंदाज में लड़ रहे हैं. दिग्विजय सिंह चुनाव प्रचार में बड़ी रैली नहीं कर रहे. इसके स्थान पर वे हर विधानसभा क्षेत्र में पद यात्रा कर रहे हैं. वे कहते हैं कि वे उन क्षेत्रों में खासतौर से गए हैं, जहां से कांग्रेस को वोट नहीं मिलता. लोगों से बात करता हूं. यहां का हर व्यक्ति मेरे परिवार का सदस्य है.
दिग्विजय सिंह ने राजगढ़ सीट से अपने नाम का ऐलान होने के पहले ही जनसंपर्क शुरू कर दिया था. राजगढ़ लोकसभा सीट में 8 विधानसभा सीटें आती हैं. गुना जिले की चाचौड़ा, राघौगढ़, राजगढ़ की नरसिंहगढ़, ब्यौवरा, राजगढ़, खिलचीपुर, सारंगपुर और आगर मालवा की सौंसर. दिग्विजय सिंह सभी विधानसभा क्षेत्रों में पैदल पहुंच रहे हैं. पद यात्रा के जरिए दिग्विजय सिंह चुनाव में कांग्रेस के पुराने कार्यक्रर्ताओं को सक्रिय करने में सफल रहे. उधर पद यात्रा में उनकी पत्नी अमृता सिंह भी शामिल हैं. वे लगातार यात्रा के दौरान स्थानीय महिलाओं और ग्रामीणों से मुलाकात करती हैं और उनका हाल चाल जानती हैं.
दिग्विजय सिंह अपना पूरा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर केन्द्रित किए हुए हैं. वे अपनी पद यात्रा बीजेपी सरकार की वादाखिलाफी के विरोध में निकाल रहे हैं. पद यात्रा के दौरान जगह-जगह नुक्कड़ सभाएं की जा रही हैं. जिसमें दिग्विजय सिंह के अलावा दूसरे नेता पहुंच रहे हैं.
जीत पर बढ़ेगा दिग्गी का कद
राजगढ़ लोकसभा सीट कांग्रेस पिछले दो चुनावों से हारती आ रही है. 2019 में कांग्रेस प्रदेश की 29 सीटों में से सिर्फ 1 पर सिमटकर रह गई थी. ऐसे में यदि दिग्विजय सिंह राजगढ़ सीट बीजेपी से हथियाने में कामयाब रहे तो न सिर्फ प्रदेश में, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर उनका कद बढ़ेगा. वरिष्ठ पत्रकार केडी शर्मा कहते हैं कि 'दिग्विजय सिंह 10 सालों तक चुनावी राजनीति से दूर रहने के बाद भी प्रदेश और देश की राजनीति में गौण नहीं हुए. वे हमेशा बीजेपी के निशाने पर रहते हैं. वजह यही है कि वे कांग्रेस एक बड़े और प्रभावी जमीनी नेता हैं. यदि राजगढ़ चुनाव वे जीते तो उनका कद और बढ़ेगा.'
देखा जाए तो मध्य प्रदेश कांग्रेस की हमेशा सिंधिया, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह तीन धुरी रही है. सिंधिया बीजेपी में जा चुके हैं. विधानसभा चुनाव बुरी तरह से हारने के बाद कमलनाथ कमजोर हुए हैं. ऐसे में दिग्विजय सिंह चुनाव जीते तो न सिर्फ मध्यप्रदेश, बल्कि पार्टी संगठन में उनका वजन बढ़ेगा. दिग्विजय सिंह कांग्रेस में कई बड़ी जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं. वे पार्टी अध्यक्ष की रेस में भी शामिल रहे हैं. चुनाव जीतकर पहुंचे तो पार्टी संगठन में भी उनकी जिम्मेवारियां बढ़ सकती हैं. दिग्विजय सिंह अभी राज्यसभा सदस्य हैं. चुनाव जीते तो 32 साल बाद लोकसभा पहुंचेंगे. इसके पहले दिग्विजय सिंह 1991 में राजगढ़ लोकसभा सीट से ही जीतकर संसद पहुंचे थे.
राजगढ़ लोकसभा सीट का इतिहास
राजगढ़ लोकसभा सीट पर दिग्विजय सिंह परिवार का प्रभाव रहा है. इस लोकसभा सीट पर अभी तक 18 लोकसभा चुनाव हुए हैं. जिसमें से 9 चुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. इस सीट से दिग्विजय सिंह 1984 और 1991 में जीत चुके हैं. जबकि उनके भाई लक्ष्मण सिंह ने चार बार 1994, 1996, 1998, 1999 में जीत दर्ज की है. 2004 का चुनाव लक्ष्मण सिंह बीजेपी के टिकट पर जीते थे. 2009 में कांग्रेस के नारायण सिंह चुने गए थे. 2014 और 2019 में बीजेपी के रोडमल नागर चुनाव जीत चुके हैं, जो इस बार फिर बीजेपी के टिकट पर मैदान में हैं.