नई दिल्ली: ओडिशा के पुरी में निकलने वाली भगवान श्री जगन्नाथ की रथयात्रा विश्वस्तर पर प्रसिद्ध और प्राचीन त्योहार के रूप में जाना जाता है. इसी क्रम में रविवार को लोग दिल्ली के अलग-अलग जगन्नाथ मंदिर में पहुंचे. वहीं, रोहिणी सेक्टर 24 स्थित जगन्नाथ मंदिर से भी धूमधाम से रथयात्रा निकाली गई. इस दौरान श्री जगन्नाथ रोहिणी सेवा संघ के प्रधान पवन जैन ने बताया कि इसके लिए मंदिर को पिछले कई दिनों से सजाया जा रहा था.
रथयात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं को किसी तरह की कोई परेशानी न हो इसका प्रबंधकों ने खास इंतजाम किया. ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के दर्शन मात्र से कई यज्ञ कराने जितना फल प्राप्त होता है. श्रद्धालु सुबह से ही मंदिर परिसर में रथयात्रा में शामिल होने के लिए जुटने लगे थे.
वहीं, मंदिर संघ के सदस्य मानस मोहंती ने बताया कि रविवार सुबह सबसे पहले श्रद्धालुओं ने भगवान जगन्नाथ का नवजीवन दर्शन किया. मंदिर परिसर में सुबह 10 बजे से भजन कीर्तन शुरू हुआ, जिसके बाद दोपहर 12 बजे जगन्नाथ जी का रथ पर आगमन हुआ. फिर दोपहर ढाई बजे छेरा पहरा (राजा द्वारा सोने की झाड़ू से रथ की सफाई) के बाद अपराह्न 3 बजे रथयात्रा की शुरुआत हुई. रथयात्रा सेक्टर 24 में घूमने के बाद वापिस श्री जगन्नाथ मंदिर में आई.
जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव की शुरुआत 12वीं से 16वीं शताब्दी के बीच हुई थी. इसकी शुरुआत के बारे में कई कहानियां हैं. कुछ लोग कहते हैं कि भगवान कृष्ण की अपनी मौसी मां की जन्मभूमि की यात्रा को दर्शाता है. मान्यता है कि इसकी शुरुआत राजा इन्द्रद्युम्न से हुई थी. कहते हैं इस दिन भगवान श्री कृष्ण के अवतार के रूप में भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम के साथ अपनी बहन सुभद्रा को नगर घुमाने के लिए ले जाते हैं.
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ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर घूमने की इच्छा बताई थी, जिसके बाद बहन की इच्छा पूरा करने के लिए भगवान जगन्नाथ ने तीन रथ बनवाए और सुभद्रा को नगर घूमने के लिए रथयात्रा पर ले गए. सबसे आगे वाला रथ बलराम जी, उसके बाद सुभद्रा जी और अंत में भगवान जगन्नाथ जी का रथ चलता है. जब भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा को नगर घूमने के लिए निकले तो रास्ते में ही अपनी मौसी गुंडिचा के भी घर गए और वहां सात दिन तक ठहरे.
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