रांची: झारखंड में 20 मई को चतरा, कोडरमा और हजारीबाग सीट के लिए दूसरे चरण का चुनाव होना है. खास बात यह है कि इन तीनों सीटों पर 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों की बड़े अंतर से जीत हुई थी. लेकिन इस बार एनडीए और इंडिया गठबंधन की वजह से तीनों सीटों पर समीकरण बदल गया है. लेकिन चतरा सीट सबसे ज्यादा चर्चा में है.
2019 के चुनाव में भी यह सीट चर्चा में थी. इसकी कई वजहें हैं. एनडीए की ओर से भाजपा ने सीटिंग सांसद सुनील सिंह का टिकट काटकर कालीचरण सिंह को मैदान में उतारा है तो इंडिया गठबंधन की ओर से कांग्रेस ने डाल्टनगंज के विधायक रहे केएन त्रिपाठी को. दोनों अगड़ी जाति के हैं. लेकिन इसबार का चुनावी समीकरण बिल्कुल अलग हैं. इस वजह है चतरा लोकसभा क्षेत्र में आने वाले पांच विधानसभा सीटों का समीकरण.
चतरा में पांच विधानसभा (सिमरिया, चतरा, मनिका, लातेहार और पांकी) सीटें हैं. इनमें सिमरिया सीट पर भाजपा के किशुन दास, चतरा में राजद के सत्यानंद भोक्ता, मनिका में कांग्रेस के रामचंद्र सिंह, लातेहार में झामुमो के बैद्यनाथ राम और पांकी में भाजपा के कुशवाहा शशिभूषण मेहता की जीत हुई थी. पांच में से दो सीटों पर भाजपा और तीन पर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी जीते थे.
चतरा में कौन-कौन से मुद्दे हैं हावी
सबसे पहला मुद्दा है बाहरी और भीतरी का. इस सीट पर आजतक कोई भी स्थानीय नहीं जीता. दूसरी बात ये कि किसी भी बड़ी पार्टी ने स्थानीय को टिकट नहीं दिया. लेकिन इसबार भाजपा ने चतरा के मूलनिवासी कालीचरण सिंह को टिकट देकर उस धारणा को बदल दिया है. वहीं कांग्रेस ने केएन त्रिपाठी को सामने किया है. केएन त्रिपाठी वैसे तो डाल्टनगंज के पास रेड़मा के रहने वाले हैं लेकिन उनकी दलील है कि उनके पूर्वज सतबरवा के थे, जो चतरा लोकसभा क्षेत्र में ही आता है. यहां भीतरी और बाहरी के अलावा लातेहार में डिग्री कॉलेज का ना होना और रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है. दरअसल, चतरा और लातेहार में ही एशिया का सबसे बड़ा कोयले का ओपन कास्ट माइंस "आम्रपाली" है. इसके बावजूद वहां रोजगार की कमी है.
भीतरघात का है खतरा
भाजपा की ओर से पांकी के विधायक कुशवाहा शशिभूषण मेहता टिकट की रेस में थे. लेकिन आउट हो गये. उनकी जगह प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के करीबी माने जाने वाले कालीचरण सिंह को टिकट मिल गया. लिहाजा, उनके समर्थकों में नाराजगी से इनकार नहीं किया जा सकता. वहीं कांग्रेस यहां कभी अपना कैडर नहीं तैयार कर पाई. इस सीट पर राजद की स्थिति मजबूत रही है.
राज्य बनने के बाद 2004 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में राजद की टिकट पर धीरेंद्र अग्रवाल जीते थे. इसके बाद 2009 में बतौर निर्दलीय इंदर सिंह नामधारी की जीत हुई थी. उसके बाद से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है. खास बात है कि इसबार नागमणि भी मैदान में बसपा की टिकट पर उतर गये हैं. वह राज्य बनने से ठीक पहले हुए चुनाव में यहां से राजद के सांसद थे. इसलिए कांग्रेस को टिकट मिलने पर पहले से आस लगाए बैठे राजद के नेताओं और कार्यकर्ताओं में नाराजगी भीतरघात का कारण बन सकती है.
मोदी की रैली से बदली है चतरा की हवा
झारखंड में पहले फेज के चुनाव से ठीक एक दिन पहले यानी 11 मई को पीएम मोदी ने चतरा के सिमरिया में जनसभा की थी. इसमें जबरदस्त भीड़ उमड़ी थी. उन्होंने अपने एक्स हैंडल पर वहां का विजुअल भी शेयर किया था. तब पीएम ने झामुमो और कांग्रेस के ठिकानों से नोटों का पहाड़ निकलने की बात कही थी. उन्होंने भ्रष्टाचार पर हमला बोला था. उन्होंने यहां तक कहा था कि झामुमो और कांग्रेस ने यहां सिर्फ एक ही उद्योग लगाया है, वो है अफीम उद्योग. लिहाजा, उनके द्वारा कही बातों की चर्चा आज ही वहां हो रही है.
पहली बार चतरा में लोकल की चर्चा हो रही है. क्योंकि यहां से कभी भी स्थानीय को किसी भी बड़ी पार्टी ने टिकट नहीं दिया. इसका नतीजा यह रहा कि चतरा हमेशा आउट साइडर के लिए चुनावी मैदान बनकर रह गया. इसबार भाजपा ने चतरा से स्थानीय कालीचरण सिंह को टिकट देकर लोकल को वोकल करने की बात की है. वहीं कांग्रेस नेता केएन त्रिपाठी भी खुद को लोकल बताकर वोट मांग रहे हैं. लेकिन भीतरघात की संभावना ने सारे समीकरण को उलझा दिया है.
ये भी पढ़ें-