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पोस्ता की खेती को नष्ट करना बन गई बड़ी चुनौती! पुलिस बदल रही है रणनीति

Poppy cultivation in Palamu. नक्सल प्रभावित इलाके में पोस्ता की खेती को नष्ट करना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रही है. चतरा में हुई घटना के बाद से पुलिस अपनी रणनीति बदल रही है.

Poppy cultivation in Palamu
Poppy cultivation in Palamu
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Feb 9, 2024, 7:31 PM IST

पलामू: पोस्ता की खेती नष्ट करना पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है. चतरा में हुए नक्सली हमले के बाद पुलिस अब अपनी रणनीति बदलने की कोशिश कर रही है. चतरा में पोस्ता की खेती नष्ट कर पुलिस वापस लौट रही थी इसी क्रम में नक्सलियों ने हमला कर दिया था, इस हमले में पुलिस के दो जवान शहीद हो गए थे.

नक्सली इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि पोस्ता की खेती करने गई पुलिस की टीम पर हमला हुआ है. पलामू, चतरा, लातेहार और बिहार से सटे हुए सीमावर्ती इलाके में प्रतिवर्ष दिसंबर से लेकर मार्च के महीने तक पोस्ता के खिलाफ एक अभियान चलाया जाता है. पोस्ता की खेती के खिलाफ इस अभियान में पुलिस के जवान शामिल रहते हैं. पूरा अभियान थाना स्तर से चलाया जाता है और वरीय अधिकारी इसकी मॉनिटरिंग करते हैं.

थाना प्रभारी एसपी से अनुमति लेकर शुरू करेंगे अभियान

पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान की समीक्षा की जा रही है. चतरा घटना के बाद पोस्ता की खेती के खिलाफ जारी अभियान की रफ्तार धीमी हुई है. पोस्ता से प्रभावित इलाके के थानेदार एसपी को पूरी तरह से अभियान की जानकारी देंगे और अनुमति मिलने के बाद ही अभियान की शुरुआत करेंगे. पुलिस के वरीय अधिकारी अभियान की पूरी तरह से मॉनिटरिंग करेंगे और अभियान खत्म होने तक नजर रखेंगे. अभियान को लेकर पुलिस मुख्यालय द्वारा पहले से ही एसओपी जारी किया गया है. एसओपी का सख्ती से पालन किया जाएगा.

पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान में खर्च होते है हजारों रुपए

पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान चलाने में पुलिस को हजारों रुपए खर्च करने पड़ते हैं. अभियान में 30 से 40 जवान शामिल होते हैं. जवान प्रभावित इलाके में बाइक से सफर करते हैं. अभियान में करीब 20 बाइक एक साथ जाती है. वहीं नष्ट करने के दौरान 4 से 5 ट्रैक्टर का इस्तेमाल किया जाता है. कई बार इलाके में पोस्ता को नष्ट करने में 8 से 10 घंटे लग जाते हैं. एक अभियान में पुलिस को औसत 20 से 30 हजार रुपए खर्च होती है.

नक्सल प्रभावती इलाके में होती है पोस्ता की खेती

पोस्ता की खेती पिछले एक दशक से भी अधिक समय से अति नक्सल प्रभावित इलाकों में हो रही है. पोस्ता की खेती की शुरुआत पलामू और चतरा के इलाके से हुई है. प्रतिबंधित नक्सली संगठन तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी भाकपा माओवादी की संलिप्तता पोस्ता की खेती में रही है. दोनों संगठनों को प्रतिवर्ष इसकी खेती से करोड़ों रुपए की लेवी मिलती है. नक्सली संगठनों को लगातार इससे फायदा होता है.

पलामू के जोनल आईजी राजकुमार लकड़ा बताते हैं की पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान को लेकर एसओपी जारी किया गया है. जारी एसओपी का सख्ती से पालन करने को कहा गया है. पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान को लेकर पहले ही एसओपी जारी किया गया है.

पलामू: पोस्ता की खेती नष्ट करना पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है. चतरा में हुए नक्सली हमले के बाद पुलिस अब अपनी रणनीति बदलने की कोशिश कर रही है. चतरा में पोस्ता की खेती नष्ट कर पुलिस वापस लौट रही थी इसी क्रम में नक्सलियों ने हमला कर दिया था, इस हमले में पुलिस के दो जवान शहीद हो गए थे.

नक्सली इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि पोस्ता की खेती करने गई पुलिस की टीम पर हमला हुआ है. पलामू, चतरा, लातेहार और बिहार से सटे हुए सीमावर्ती इलाके में प्रतिवर्ष दिसंबर से लेकर मार्च के महीने तक पोस्ता के खिलाफ एक अभियान चलाया जाता है. पोस्ता की खेती के खिलाफ इस अभियान में पुलिस के जवान शामिल रहते हैं. पूरा अभियान थाना स्तर से चलाया जाता है और वरीय अधिकारी इसकी मॉनिटरिंग करते हैं.

थाना प्रभारी एसपी से अनुमति लेकर शुरू करेंगे अभियान

पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान की समीक्षा की जा रही है. चतरा घटना के बाद पोस्ता की खेती के खिलाफ जारी अभियान की रफ्तार धीमी हुई है. पोस्ता से प्रभावित इलाके के थानेदार एसपी को पूरी तरह से अभियान की जानकारी देंगे और अनुमति मिलने के बाद ही अभियान की शुरुआत करेंगे. पुलिस के वरीय अधिकारी अभियान की पूरी तरह से मॉनिटरिंग करेंगे और अभियान खत्म होने तक नजर रखेंगे. अभियान को लेकर पुलिस मुख्यालय द्वारा पहले से ही एसओपी जारी किया गया है. एसओपी का सख्ती से पालन किया जाएगा.

पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान में खर्च होते है हजारों रुपए

पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान चलाने में पुलिस को हजारों रुपए खर्च करने पड़ते हैं. अभियान में 30 से 40 जवान शामिल होते हैं. जवान प्रभावित इलाके में बाइक से सफर करते हैं. अभियान में करीब 20 बाइक एक साथ जाती है. वहीं नष्ट करने के दौरान 4 से 5 ट्रैक्टर का इस्तेमाल किया जाता है. कई बार इलाके में पोस्ता को नष्ट करने में 8 से 10 घंटे लग जाते हैं. एक अभियान में पुलिस को औसत 20 से 30 हजार रुपए खर्च होती है.

नक्सल प्रभावती इलाके में होती है पोस्ता की खेती

पोस्ता की खेती पिछले एक दशक से भी अधिक समय से अति नक्सल प्रभावित इलाकों में हो रही है. पोस्ता की खेती की शुरुआत पलामू और चतरा के इलाके से हुई है. प्रतिबंधित नक्सली संगठन तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी भाकपा माओवादी की संलिप्तता पोस्ता की खेती में रही है. दोनों संगठनों को प्रतिवर्ष इसकी खेती से करोड़ों रुपए की लेवी मिलती है. नक्सली संगठनों को लगातार इससे फायदा होता है.

पलामू के जोनल आईजी राजकुमार लकड़ा बताते हैं की पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान को लेकर एसओपी जारी किया गया है. जारी एसओपी का सख्ती से पालन करने को कहा गया है. पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान को लेकर पहले ही एसओपी जारी किया गया है.

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