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राजस्थान के इस शहर की इको फ्रेंडली गणेश मूर्तियों की विदेशों में डिमांड, चिकनी मिट्टी से तैयार होती है प्रतिमा - Eco Friendly Ganeshji

अलवर के इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा की डिमांड देश व विदेशों में भी खूब है. चिकनी मिट्टी से बनी गणेश जी की इको फ्रेंडली प्रतिमा को काफी पसंद किया जा रहा है.

मूर्तियों की विदेशों में डिमांड
मूर्तियों की विदेशों में डिमांड (फोटो ईटीवी भारत gfx)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 4, 2024, 6:03 AM IST

चिकनी मिट्टी से तैयार होती है प्रतिमा (वीडियो ईटीवी भारत अलवर)

अलवर. जैसे जैसे गणेश चतुर्थी का पर्व नजदीक आ रहा है, इसी को देखते हुए अब अलवर जिले में तैयार हुई मूर्तियां को बाहर भेजने की तैयारी की जा रही है. गणेश प्रतिमा के लिए लोगों की पहली पसंद अलवर बन रहा है. इसका खास कारण है कि अलवर में इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बनाई जाती है, जो की चिकनी मिट्टी से तैयार की जाती है. अलवर में कारीगरों द्वारा करीब 6 माह पहले इसकी तैयारी शुरू कर दी जाती है. अलवर शहर के एक परिवार ने अपने पुरखों की इस विरासत को सहेजकर रखा. आज इसी के चलते अलवर का नाम की मूर्तियों के जरिए विदेशों तक पहुंचाया. गणेश चतुर्थी के पर्व तक इस परिवार द्वारा बनाई गई करीब 10 हजार से ज्यादा प्रतिमाएं विदेश व कई राज्यों तक पहुंचती है.

गणेश प्रतिमा बनाने वाले कारीगर रामकिशोर ने बताया कि यह उनका पुश्तैनी काम है. इससे पहले उनके बुजुर्ग मिट्टी से कई आइटम बनाने का कार्य करते थे. लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया, उन्होंने मिट्टी के आइटमों के अलावा चिकनी मिट्टी से गणेश जी की इको फ्रेंडली प्रतिमा बनाने की शुरुआत की, जिसे लोगों द्वारा काफी पसंद किया गया.

इसे पढ़ें: भीलवाड़ा में इस बार घरों में बिराजेंगे इकोफ्रेंडली गणेशजी, तैयार हो रही मूर्तियां -

10 हजार से ज्यादा प्रतिमा करते है तैयार : रामकिशोर ने बताया कि उन्होंने जब गणेश प्रतिमा बनाने की शुरुआत की, तब कम क्वांटिटी में प्रतिमा को बनाया. लेकिन आज उनकी द्वारा बनाई प्रतिमा को इतना पसंद किया जाता है, जिसके चलते 5- 6 माह पहले ही गणेश प्रतिमा बनाने की शुरुआत करते हैं और गणेश चतुर्थी पर्व आते आते 10 हजार से ज्यादा बनाई हुई प्रतिमाएं बाजार में बिकने के लिए पहुंचती है.

दो माह पहले ऑर्डर पर भी करते हैं तैयार : रामकिशोर ने बताया कि उनके पास मूर्तियां बनाने के ऑर्डर भी आते हैं. यदि कोई व्यक्ति अपने पसंद की प्रतिमा बनवाना चाहता है, तो इसके लिए उन्हें दो माह पहले मॉडल की फोटो देनी होती है. उन्होंने बताया कि पार्टी द्वारा दिया गया मॉडल को देख परख कर बनाने में और फिनिशिंग में समय लगता है. जिसके लिए करीब दो माह पहले आर्डर लिया जाता है.

विदेशों तक पहुंचती है गणेश प्रतिमा
विदेशों तक पहुंचती है गणेश प्रतिमा (फोटो ईटीवी भारत अलवर)

सभी प्रतिमाएं बनाई जाती है हाथ से : मूर्ति बनाने वाले कारीगर रामकिशोर ने बताया कि उनके परिवार द्वारा बनाई गई सभी मूर्तियां हाथों से निर्मित है. यदि मूर्तियों का आर्डर ज्यादा होता है, तो उसके लिए पहले मूर्ति के आकार का मॉडल बनाया जाता है. उसे भी हाथों द्वारा तैयार किया जाता है. यदि कम क्वांटिटी में मूर्तियां बनानी होती है, तो सब लोग हाथों से ही मूर्तियों को तैयार करते हैं. उन्होंने बताया कि कुछ मूर्तियां ऐसी होती है जो एक दिन में तैयार हो जाती है, तो वहीं कुछ मूर्तियां ऐसी होती है, जो करीब 10 दिनों में तैयार होती है. छोटी व बड़ी मूर्ति के हिसाब से देखना पड़ता है कि वह कितने समय में तैयार हो सकती है.

चिकनी मिट्टी से तैयार होती है अलवर में गणेश प्रतिमा
चिकनी मिट्टी से तैयार होती है अलवर में गणेश प्रतिमा (फोटो ईटीवी भारत अलवर)

चिकनी मिट्टी से बनाई जाती है प्रतिमा : रामस्वरूप के बेटे मोनू कुमार ने बताया कि वह कई समय से इस पुश्तैनी काम में हाथ बंटा रहे हैं. उन्होंने बताया कि अलवर में तैयार की गई प्रतिमाओ की खास पहचान उनकी बनावट व चिकनी मिट्टी के चलते हैं. अलवर मे तैयार गणेश प्रतिमाओ को चिकनी मिट्टी के द्वारा तैयार किया जाता है. इसके लिए मिट्टी अलवर के राजगढ़ व आंधवाड़ी क्षेत्र से लेकर आई जाती है. यह मिट्टी खेतों की होती है. काली, पीली व भूरी मिट्टी को मिलाकर मिश्रण तैयार किया जाता है. इसके बाद प्रतिमा बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है.

इसे पढ़ें: गणेश चतुर्थी 2024: गणेश प्रतिमाओं को अंतिम रूप देने में जुटे मूर्तिकार - Ganesh Chaturthi 2024

4 इंच से लेकर 5 फीट तक की प्रतिमा होती है तैयार : मोनू ने बताया कि उनके द्वारा तैयार की गई गणेश प्रतिमा 4 इंच से लेकर 5 फीट तक की होती है. इनकी कीमत उसी के अनुसार तय की जाती है. उन्होंने बताया कि उनके पास 30 रुपए की कीमत से प्रतिमा शुरू होती है. इसके बाद 15 से 20 हजार तक की प्रतिमाएं उनके पास मिल जाती है.

लॉकडाउन के बाद बढ़ा लोगों मे क्रेज : मोनू ने बताया कि उनके द्वारा तैयार की गई मूर्तियों पहले से ही लोगों को काफी पसंद आई. हालांकि कोरोना में हुए लॉकडाउन के बाद लोगों मे ज्यादा क्रेज देखने को मिल रहा हैं. उन्होंने बताया कि अलवर में तैयार की गई मूर्तिया मिट्टी से निर्मित है. जिन्हें विसर्जन करने पर जीव जंतुओं को भी कोई नुकसान नहीं होता.

पूरा परिवार लगता है काम में : रामकिशोर ने बताया कि गणेश प्रतिमा को बनाने के लिए उनका पूरा परिवार जुटता है. इसमें वह खुद, उनकी पत्नी, दो बेटे, बेटों की पत्नी व उनकी एक बेटी इस कार्य को मिलकर पूरा करते है. उन्होंने बताया साथ ही कुछ कारीगर भी इसके लिए लगाए जाते हैं. उन्होंने बताया कि सभी इस काम में निपुण है. सभी को अपने-अपने काम पता है. आज हमारे परिवार की पहचान इसी काम की वजह से मिली है, इसके हकदार परिवार के सभी सदस्य हैं.

विदेशों तक पहुंचती है गणेश प्रतिमा : मोनू ने बताया कि उनके द्वारा तैयार की गई प्रतिमाएं विदेशों के साथ भारत के कई राज्यों में जाती है. इसमें दिल्ली, मुंबई, गुजरात, एमपी व राजस्थान की ज्यादातर जिलों में अलवर में तैयार हुई गणेश प्रतिमाओं की विशेष डिमांड रहती है. उन्होंने बताया विदेश में जाने वाली गणेश प्रतिमाएं बड़े डिस्ट्रीब्यूटर के जरिए पहुंचती हैं. इसमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा सहित अन्य देश हैं, जहां प्रतिमा की विशेष डिमांड रहती है.

चिकनी मिट्टी से तैयार होती है प्रतिमा (वीडियो ईटीवी भारत अलवर)

अलवर. जैसे जैसे गणेश चतुर्थी का पर्व नजदीक आ रहा है, इसी को देखते हुए अब अलवर जिले में तैयार हुई मूर्तियां को बाहर भेजने की तैयारी की जा रही है. गणेश प्रतिमा के लिए लोगों की पहली पसंद अलवर बन रहा है. इसका खास कारण है कि अलवर में इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बनाई जाती है, जो की चिकनी मिट्टी से तैयार की जाती है. अलवर में कारीगरों द्वारा करीब 6 माह पहले इसकी तैयारी शुरू कर दी जाती है. अलवर शहर के एक परिवार ने अपने पुरखों की इस विरासत को सहेजकर रखा. आज इसी के चलते अलवर का नाम की मूर्तियों के जरिए विदेशों तक पहुंचाया. गणेश चतुर्थी के पर्व तक इस परिवार द्वारा बनाई गई करीब 10 हजार से ज्यादा प्रतिमाएं विदेश व कई राज्यों तक पहुंचती है.

गणेश प्रतिमा बनाने वाले कारीगर रामकिशोर ने बताया कि यह उनका पुश्तैनी काम है. इससे पहले उनके बुजुर्ग मिट्टी से कई आइटम बनाने का कार्य करते थे. लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया, उन्होंने मिट्टी के आइटमों के अलावा चिकनी मिट्टी से गणेश जी की इको फ्रेंडली प्रतिमा बनाने की शुरुआत की, जिसे लोगों द्वारा काफी पसंद किया गया.

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10 हजार से ज्यादा प्रतिमा करते है तैयार : रामकिशोर ने बताया कि उन्होंने जब गणेश प्रतिमा बनाने की शुरुआत की, तब कम क्वांटिटी में प्रतिमा को बनाया. लेकिन आज उनकी द्वारा बनाई प्रतिमा को इतना पसंद किया जाता है, जिसके चलते 5- 6 माह पहले ही गणेश प्रतिमा बनाने की शुरुआत करते हैं और गणेश चतुर्थी पर्व आते आते 10 हजार से ज्यादा बनाई हुई प्रतिमाएं बाजार में बिकने के लिए पहुंचती है.

दो माह पहले ऑर्डर पर भी करते हैं तैयार : रामकिशोर ने बताया कि उनके पास मूर्तियां बनाने के ऑर्डर भी आते हैं. यदि कोई व्यक्ति अपने पसंद की प्रतिमा बनवाना चाहता है, तो इसके लिए उन्हें दो माह पहले मॉडल की फोटो देनी होती है. उन्होंने बताया कि पार्टी द्वारा दिया गया मॉडल को देख परख कर बनाने में और फिनिशिंग में समय लगता है. जिसके लिए करीब दो माह पहले आर्डर लिया जाता है.

विदेशों तक पहुंचती है गणेश प्रतिमा
विदेशों तक पहुंचती है गणेश प्रतिमा (फोटो ईटीवी भारत अलवर)

सभी प्रतिमाएं बनाई जाती है हाथ से : मूर्ति बनाने वाले कारीगर रामकिशोर ने बताया कि उनके परिवार द्वारा बनाई गई सभी मूर्तियां हाथों से निर्मित है. यदि मूर्तियों का आर्डर ज्यादा होता है, तो उसके लिए पहले मूर्ति के आकार का मॉडल बनाया जाता है. उसे भी हाथों द्वारा तैयार किया जाता है. यदि कम क्वांटिटी में मूर्तियां बनानी होती है, तो सब लोग हाथों से ही मूर्तियों को तैयार करते हैं. उन्होंने बताया कि कुछ मूर्तियां ऐसी होती है जो एक दिन में तैयार हो जाती है, तो वहीं कुछ मूर्तियां ऐसी होती है, जो करीब 10 दिनों में तैयार होती है. छोटी व बड़ी मूर्ति के हिसाब से देखना पड़ता है कि वह कितने समय में तैयार हो सकती है.

चिकनी मिट्टी से तैयार होती है अलवर में गणेश प्रतिमा
चिकनी मिट्टी से तैयार होती है अलवर में गणेश प्रतिमा (फोटो ईटीवी भारत अलवर)

चिकनी मिट्टी से बनाई जाती है प्रतिमा : रामस्वरूप के बेटे मोनू कुमार ने बताया कि वह कई समय से इस पुश्तैनी काम में हाथ बंटा रहे हैं. उन्होंने बताया कि अलवर में तैयार की गई प्रतिमाओ की खास पहचान उनकी बनावट व चिकनी मिट्टी के चलते हैं. अलवर मे तैयार गणेश प्रतिमाओ को चिकनी मिट्टी के द्वारा तैयार किया जाता है. इसके लिए मिट्टी अलवर के राजगढ़ व आंधवाड़ी क्षेत्र से लेकर आई जाती है. यह मिट्टी खेतों की होती है. काली, पीली व भूरी मिट्टी को मिलाकर मिश्रण तैयार किया जाता है. इसके बाद प्रतिमा बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है.

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4 इंच से लेकर 5 फीट तक की प्रतिमा होती है तैयार : मोनू ने बताया कि उनके द्वारा तैयार की गई गणेश प्रतिमा 4 इंच से लेकर 5 फीट तक की होती है. इनकी कीमत उसी के अनुसार तय की जाती है. उन्होंने बताया कि उनके पास 30 रुपए की कीमत से प्रतिमा शुरू होती है. इसके बाद 15 से 20 हजार तक की प्रतिमाएं उनके पास मिल जाती है.

लॉकडाउन के बाद बढ़ा लोगों मे क्रेज : मोनू ने बताया कि उनके द्वारा तैयार की गई मूर्तियों पहले से ही लोगों को काफी पसंद आई. हालांकि कोरोना में हुए लॉकडाउन के बाद लोगों मे ज्यादा क्रेज देखने को मिल रहा हैं. उन्होंने बताया कि अलवर में तैयार की गई मूर्तिया मिट्टी से निर्मित है. जिन्हें विसर्जन करने पर जीव जंतुओं को भी कोई नुकसान नहीं होता.

पूरा परिवार लगता है काम में : रामकिशोर ने बताया कि गणेश प्रतिमा को बनाने के लिए उनका पूरा परिवार जुटता है. इसमें वह खुद, उनकी पत्नी, दो बेटे, बेटों की पत्नी व उनकी एक बेटी इस कार्य को मिलकर पूरा करते है. उन्होंने बताया साथ ही कुछ कारीगर भी इसके लिए लगाए जाते हैं. उन्होंने बताया कि सभी इस काम में निपुण है. सभी को अपने-अपने काम पता है. आज हमारे परिवार की पहचान इसी काम की वजह से मिली है, इसके हकदार परिवार के सभी सदस्य हैं.

विदेशों तक पहुंचती है गणेश प्रतिमा : मोनू ने बताया कि उनके द्वारा तैयार की गई प्रतिमाएं विदेशों के साथ भारत के कई राज्यों में जाती है. इसमें दिल्ली, मुंबई, गुजरात, एमपी व राजस्थान की ज्यादातर जिलों में अलवर में तैयार हुई गणेश प्रतिमाओं की विशेष डिमांड रहती है. उन्होंने बताया विदेश में जाने वाली गणेश प्रतिमाएं बड़े डिस्ट्रीब्यूटर के जरिए पहुंचती हैं. इसमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा सहित अन्य देश हैं, जहां प्रतिमा की विशेष डिमांड रहती है.

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