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दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका की खारिज, कहा- याचिका सुनवाई योग्य नहीं - petition challenge kejriwal arrest - PETITION CHALLENGE KEJRIWAL ARREST

Petition Rejected challenging Kejriwal arrest: दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि याचिका सुनवाई योग्य नहीं है और पहले भी ऐसी एक याचिका जुर्माने के साथ खारिज की जा चुकी है.

दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट (फाइल फोटो)
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By PTI

Published : May 3, 2024, 5:43 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने आबकारी नीति घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी. अदालत ने कहा कि यह सुनवाई योग्य नहीं है. केजरीवाल के पास निश्चित रूप से अदालत का दरवाजा खटखटाने और उचित कार्यवाही दायर करने के और साधन हैं.

हाईकोर्ट ने कहा कि आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) लागू होने पर भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को किसी राजनीतिक दल के नेता या उम्मीदवार की गिरफ्तारी की जानकारी प्रदान करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है. अदालत का विचार है कि वर्तमान रिट याचिका, जो अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को प्रभावी ढंग से चुनौती देती है, सुनवाई योग्य नहीं है. क्योंकि उक्त व्यक्ति न्यायिक आदेशों के अनुसार न्यायिक हिरासत में है, जो वर्तमान याचिका का विषय नहीं है.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने कहा कि याचिका स्पष्ट रूप से उस व्यक्ति का नाम बताने में विफल रही है, हालांकि, उसकी राजनीतिक स्थिति/स्थिति के संदर्भ के कारण पहचान स्पष्ट है. यह आदेश एक मई को पारित किया गया था. जबकि, विस्तृत फैसला शुक्रवार को उपलब्ध कराया गया. कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिका में कोई योग्यता नहीं है और यह तुच्छ है. यह केवल प्रचार पाने के इरादे से दायर की गई याचिका लगती है. पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता अमरजीत गुप्ता के पास गिरफ्तार व्यक्ति के पक्ष में राहत मांगने का कोई अधिकार नहीं है.

इसमें कहा गया है कि पहले भी इसी तरह की एक जनहित याचिका (पीआईएल) को इस अदालत ने यह देखने के बाद जुर्माने के साथ खारिज कर दिया था कि याचिकाकर्ता के पास केजरीवाल के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही के संबंध में राहत मांगने के लिए अदालत से संपर्क करने का कोई अधिकार नहीं है. याचिका में लगाए गए तथ्यों के अनुसार, संबंधित व्यक्ति (केजरीवाल का जिक्र) को उसकी गिरफ्तारी के बाद सक्षम अदालत के समक्ष विधिवत पेश किया गया और वह अदालत के आदेशों के अनुपालन में न्यायिक हिरासत में है. इसलिए, ईसीआई को अलग से जानकारी मांगने के निर्देश का कोई औचित्य या आधार नहीं है और यह कानून में मौजूद सुरक्षा उपायों को कमजोर करता है.

इससे पहले हाईकोर्ट ने गिरफ्तार राजनीतिक नेताओं को लोकसभा चुनावों के लिए वर्चुअल मोड के माध्यम से प्रचार करने की अनुमति देने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए कर दिया था. साथ ही यह भी कहा था कि इससे खूंखार अपराधियों, यहां तक ​​​​कि दाऊद इब्राहिम को भी राजनीतिक दलों के साथ पंजीकृत होने और प्रचार करने का मौका मिलेगा. याचिकाकर्ता ने कहा था कि वह 16 मार्च को चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद राजनेताओं, खासकर आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक की गिरफ्तारी के समय से व्यथित है.

यह भी पढ़ें- सिसोदिया की जमानत याचिका पर ED और CBI को नोटिस, अगली सुनवाई 8 मई को

याचिकाकर्ता ने कहा था कि वह 16 मार्च को चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ एमसीसी लागू होने के बाद राजनेताओं, खासकर आप के राष्ट्रीय संयोजक की गिरफ्तारी के समय से व्यथित है. राजनीतिक दलों के नेता चुनाव के दौरान प्रचार करने के संवैधानिक रूप से गारंटीकृत मौलिक और कानूनी अधिकार से भी वंचित हैं.

यह भी पढ़ें- डीप फेक वीडियो पर निर्देश देने से इनकार, हाईकोर्ट ने कहा- चुनाव आयोग पर भरोसा

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने आबकारी नीति घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी. अदालत ने कहा कि यह सुनवाई योग्य नहीं है. केजरीवाल के पास निश्चित रूप से अदालत का दरवाजा खटखटाने और उचित कार्यवाही दायर करने के और साधन हैं.

हाईकोर्ट ने कहा कि आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) लागू होने पर भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को किसी राजनीतिक दल के नेता या उम्मीदवार की गिरफ्तारी की जानकारी प्रदान करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है. अदालत का विचार है कि वर्तमान रिट याचिका, जो अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को प्रभावी ढंग से चुनौती देती है, सुनवाई योग्य नहीं है. क्योंकि उक्त व्यक्ति न्यायिक आदेशों के अनुसार न्यायिक हिरासत में है, जो वर्तमान याचिका का विषय नहीं है.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने कहा कि याचिका स्पष्ट रूप से उस व्यक्ति का नाम बताने में विफल रही है, हालांकि, उसकी राजनीतिक स्थिति/स्थिति के संदर्भ के कारण पहचान स्पष्ट है. यह आदेश एक मई को पारित किया गया था. जबकि, विस्तृत फैसला शुक्रवार को उपलब्ध कराया गया. कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिका में कोई योग्यता नहीं है और यह तुच्छ है. यह केवल प्रचार पाने के इरादे से दायर की गई याचिका लगती है. पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता अमरजीत गुप्ता के पास गिरफ्तार व्यक्ति के पक्ष में राहत मांगने का कोई अधिकार नहीं है.

इसमें कहा गया है कि पहले भी इसी तरह की एक जनहित याचिका (पीआईएल) को इस अदालत ने यह देखने के बाद जुर्माने के साथ खारिज कर दिया था कि याचिकाकर्ता के पास केजरीवाल के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही के संबंध में राहत मांगने के लिए अदालत से संपर्क करने का कोई अधिकार नहीं है. याचिका में लगाए गए तथ्यों के अनुसार, संबंधित व्यक्ति (केजरीवाल का जिक्र) को उसकी गिरफ्तारी के बाद सक्षम अदालत के समक्ष विधिवत पेश किया गया और वह अदालत के आदेशों के अनुपालन में न्यायिक हिरासत में है. इसलिए, ईसीआई को अलग से जानकारी मांगने के निर्देश का कोई औचित्य या आधार नहीं है और यह कानून में मौजूद सुरक्षा उपायों को कमजोर करता है.

इससे पहले हाईकोर्ट ने गिरफ्तार राजनीतिक नेताओं को लोकसभा चुनावों के लिए वर्चुअल मोड के माध्यम से प्रचार करने की अनुमति देने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए कर दिया था. साथ ही यह भी कहा था कि इससे खूंखार अपराधियों, यहां तक ​​​​कि दाऊद इब्राहिम को भी राजनीतिक दलों के साथ पंजीकृत होने और प्रचार करने का मौका मिलेगा. याचिकाकर्ता ने कहा था कि वह 16 मार्च को चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद राजनेताओं, खासकर आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक की गिरफ्तारी के समय से व्यथित है.

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याचिकाकर्ता ने कहा था कि वह 16 मार्च को चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ एमसीसी लागू होने के बाद राजनेताओं, खासकर आप के राष्ट्रीय संयोजक की गिरफ्तारी के समय से व्यथित है. राजनीतिक दलों के नेता चुनाव के दौरान प्रचार करने के संवैधानिक रूप से गारंटीकृत मौलिक और कानूनी अधिकार से भी वंचित हैं.

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