नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने मालिक और किरायेदार द्वारा एक-दूसरे पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के एक मामले में वकीलों को नसीहत देते हुए टिप्पणी की. जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि वकीलों को इस तरह के तुच्छ (छोटे) मामलों को दर्ज कराने से बचना चाहिए. साथ ही लोगों को इसके प्रति जागरूक भी करना चाहिए.
जस्टिस सुब्रह्मण्य प्रसाद ने मालिक और किरायेदार दोनों की ओर से एक दूसरे पर दर्ज कराई गई छेड़छाड़ की एफआईआर को रद्द करते हुए दोनों पर 50-50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया. साथ ही इस जुर्माने में से 10 हजार रुपए सशस्त्र सेवना युद्ध बलिदान कोष में भी जमा करने का निर्देश दिया. जस्टिस सुब्रह्मण्य प्रसाद ने एफआईआर रद्द करते हुए टिप्पणी की कि इस तरह के आरोप लगाने से उस आदमी की छवि को ठेस पहुंचती है, जिस पर ये आरोप लगाए जाते हैं. इस तरह के आरोप बिना सोचे सझे नहीं लगाए जा सकते.
उन्होंने कहा कि पुलिस बल की संख्या भी सीमित है. ऐसे तुच्छ मामलों की जांच में पुलिस बल का समय खराब होता है. इसलिए वकीलों को इस बारे में जागरूक होना चाहिए और लोगों को भी जागरूक करना चाहिए. महिलाएं अक्सर इस तरह के तुच्छ आरोप लगा देती हैं, जिससे समय खराब होता है. न्यायमूर्ति प्रसाद ने आगे कहा कि उन व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का समय आ गया है, जो धारा 354, 354ए, 354बी, 354सी और 354डी आदि के तहत तुच्छ शिकायतें दर्ज करते हैं, जिनका उद्देश्य केवल गुप्त उद्देश्य होता है.
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अदालत ने कहा कि यह देखना भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि वकील पक्षों को ऐसे तुच्छ मामले दर्ज करने की सलाह दे रहे हैं और उन्हें उकसा रहे हैं. वकीलों को भी संवेदनशील बनाने का समय आ गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो.
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