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यमुना के डूब क्षेत्र पर किसी भी अनाधिकृत निर्माण को हटाना होगा चाहे वह धार्मिक स्थल ही क्यों न होः हाईकोर्ट - illegal constructions near Yamuna - ILLEGAL CONSTRUCTIONS NEAR YAMUNA

दिल्ली में यमुना नदी के आसपास अनाधिकृत निर्माण को हटाने का आदेश दिया गया है. हाईकोर्ट का कहना है कि यमुना के डूब क्षेत्र की रक्षा करनी होगी. किसी भी अनाधिकृत निर्माण को रोकना होगा, चाहे वो धार्मिक स्थल ही क्यों न हों.

दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jul 19, 2024, 7:41 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा यमुना के डूब क्षेत्र को किसी भी सूरत में बचाना होगा. इसका अतिक्रमण करने वाला कोई भी निर्माण हो चाहे वो धार्मिक ही क्यों न हो, उसे हटाना होगा. कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने यमुना के डूब क्षेत्र में गीता कॉलोनी के पास बने पुराने शिव मंदिर को हटाने के डीडीए के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश में कोई भी दखल देने से इनकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति मंदिर का कोई भी वैध दस्तावेज दिखाने में असफल रहा है. हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने इस बात को स्वीकार किया है कि मंदिर यमुना के डूब क्षेत्र में स्थित है. इसका मतलब साफ है कि मंदिर अनाधिकृत तरीके से ईको-सेंसिटिव जोन में अतिक्रमण कर बनाया गया. हमें यमुना के डूब क्षेत्र की रक्षा करनी होगी. किसी भी अनाधिकृत निर्माण को रोकना होगा चाहे वो धार्मिक स्थल ही क्यों न हों.

बता दें, याचिकाकर्ता ने सिंगल बेंच के फैसले को डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी. जस्टिस धर्मेश शर्मा की सिंगल बेंच ने 29 मई को याचिका खारिज करते हुए कहा था कि भगवान शिव की हमें रक्षा करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे खुद हमारी रक्षा करते हैं. सिंगल बेंच ने कहा था कि अगर यमुना का किनारा और डूब क्षेत्र अतिक्रमण मुक्त हो जाए तो भगवान शिव ज्यादा खुश होंगे.

सिंगल बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने मंदिर के भगवान को इस मामले में पक्षकार बनाकर मामले को एक दूसरा रंग देने की कोशिश की. सिंगल बेंच ने कहा था कि याचिकाकर्ता की दलील है कि मंदिर में रोजाना पूजा की जाती है. विशेष अवसरों पर खास आयोजन होते हैं, लेकिन इस सबसे ये सार्वजनिक महत्व का विषय नहीं हो सकते हैं.

याचिका प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति ने दायर किया था. मंदिर गीता कालोनी में यमुना किनारे ताज एन्क्लेव में स्थित है. याचिका में डीडीए की ओर से मंदिर को हटाने के आदेश को चुनौती दी गई थी. सिंगल बेंच ने कहा था कि ऐसा कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया जिससे पता चले कि मंदिर सार्वजनिक उपयोग के लिए है और वो मंदिर समिति के निजी उपयोग के लिए नहीं है.

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा यमुना के डूब क्षेत्र को किसी भी सूरत में बचाना होगा. इसका अतिक्रमण करने वाला कोई भी निर्माण हो चाहे वो धार्मिक ही क्यों न हो, उसे हटाना होगा. कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने यमुना के डूब क्षेत्र में गीता कॉलोनी के पास बने पुराने शिव मंदिर को हटाने के डीडीए के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश में कोई भी दखल देने से इनकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति मंदिर का कोई भी वैध दस्तावेज दिखाने में असफल रहा है. हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने इस बात को स्वीकार किया है कि मंदिर यमुना के डूब क्षेत्र में स्थित है. इसका मतलब साफ है कि मंदिर अनाधिकृत तरीके से ईको-सेंसिटिव जोन में अतिक्रमण कर बनाया गया. हमें यमुना के डूब क्षेत्र की रक्षा करनी होगी. किसी भी अनाधिकृत निर्माण को रोकना होगा चाहे वो धार्मिक स्थल ही क्यों न हों.

बता दें, याचिकाकर्ता ने सिंगल बेंच के फैसले को डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी. जस्टिस धर्मेश शर्मा की सिंगल बेंच ने 29 मई को याचिका खारिज करते हुए कहा था कि भगवान शिव की हमें रक्षा करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे खुद हमारी रक्षा करते हैं. सिंगल बेंच ने कहा था कि अगर यमुना का किनारा और डूब क्षेत्र अतिक्रमण मुक्त हो जाए तो भगवान शिव ज्यादा खुश होंगे.

सिंगल बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने मंदिर के भगवान को इस मामले में पक्षकार बनाकर मामले को एक दूसरा रंग देने की कोशिश की. सिंगल बेंच ने कहा था कि याचिकाकर्ता की दलील है कि मंदिर में रोजाना पूजा की जाती है. विशेष अवसरों पर खास आयोजन होते हैं, लेकिन इस सबसे ये सार्वजनिक महत्व का विषय नहीं हो सकते हैं.

याचिका प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति ने दायर किया था. मंदिर गीता कालोनी में यमुना किनारे ताज एन्क्लेव में स्थित है. याचिका में डीडीए की ओर से मंदिर को हटाने के आदेश को चुनौती दी गई थी. सिंगल बेंच ने कहा था कि ऐसा कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया जिससे पता चले कि मंदिर सार्वजनिक उपयोग के लिए है और वो मंदिर समिति के निजी उपयोग के लिए नहीं है.

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