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दिल्ली हाईकोर्ट ने BSES को सब इंस्पेक्टर की विधवा को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का दिया आदेश - Delhi High Court directs BSES

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Sep 7, 2024, 5:05 PM IST

Delhi High Court Directs BSES: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक प्रमुख बिजली वितरण कंपनी बीएसईएस को सब इंस्पेक्टर अफजल अली की विधवा शगुफ्ता अली को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है, जिनकी 2017 में बिजली के झटके से दुखद मृत्यु हो गई थी.

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नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बिजली वितरण कंपनी बीएसईएस को 2017 में बिजली का करंट लगने से मरने वाले सब इंस्पेक्टर की विधवा को 10 लाख रुपये का अनुग्रह मुआवजा देने का निर्देश दिया है. याचिकाकर्ता के पति अफजल अली की 21 मई, 2017 को बिजली का करंट लगने से मौत हो गई थी. उनकी विधवा शगुफ्ता अली ने आधिकारिक प्रतिवादियों से 50 लाख रुपये का मुआवजा मांगा था. न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने अपने फैसले में कहा, "याचिकाकर्ता को पहले से दिए जा चुके लाभों के मद्देनजर, न्यायालय अपने विवेक से बीएसईएस द्वारा याचिकाकर्ता को 10 लाख रुपये का अनुग्रह एकमुश्त मुआवजा देना उचित समझता है."

50 लाख रुपये भुगतान की प्रार्थना: याचिकाकर्ता ने मुआवजे के रूप में 50 लाख रुपये का भुगतान करने की प्रार्थना की है. उच्च न्यायालय ने कहा कि, "दिल्ली पुलिस द्वारा दायर स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, मृतक के परिवार को पहले ही पारिवारिक पेंशन लाभ के रूप में 27,96,496 रुपये दिए जा चुके हैं और उन्हें 21 मई, 2027 तक 17,150 रुपये की मासिक पेंशन भी मिल रही है और उसके बाद उन्हें 10,290 रुपये मिलेंगे." उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता सिविल न्यायालय में उचित कानूनी उपाय करने के लिए भी स्वतंत्र है. सक्षम सिविल न्यायालय को ऐसे किसी भी मुकदमे की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर मामले का निपटारा करने का निर्देश दिया जाता है. पीठ ने कहा कि बीएसईएस को भी निर्देश दिया जाता है कि वह अनावश्यक स्थगन मांगकर कार्यवाही में कोई अनावश्यक देरी न करे.

पीठ ने आगे स्पष्ट किया कि इस न्यायालय द्वारा दी गई अनुग्रह राशि सिविल न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले किसी भी मुआवजे से स्वतंत्र है और इसके अतिरिक्त है. अधिवक्ता सईद कादरी ने साहिल गुप्ता और मोहम्मद शकील के साथ याचिकाकर्ता शगुफ्ता अली के लिए बहस की. मामले के तथ्यों से पता चलता है कि याचिकाकर्ता के पति अफजल अली 1990 से दिल्ली पुलिस (यातायात) में सब-इंस्पेक्टर के रूप में काम कर रहे थे.

न्यू लाजपत राय मार्केट में हुआ था हादसा: याचिकाकर्ता और मृतका की शादी वर्ष 1991 में हुई थी और विवाह से तीन बच्चे थे. 21 मई, 2017 के दुर्भाग्यपूर्ण दिन, जब मृतक अपने सबसे छोटे बच्चे के लिए उपहार खरीदने के लिए साइकिल बाजार गए थे, तभी बारिश शुरू हो गई. वह आश्रय की तलाश में भागे और खुद को बारिश से बचाने की कोशिश करते हुए, वह न्यू लाजपत राय मार्केट में एक दुकान के पास स्थित चैनल गेट के संपर्क में आ गए और बिजली की चपेट में आ गए. फिर उसे अरुणा आसफ अली अस्पताल ले जाया गया, जहां दुर्भाग्य से उसे मृत घोषित कर दिया गया.

यह भी पढ़ें- DU के सीट आवंटन के आधार पर सातों छात्रों को एडमिशन दे सेंट स्टीफेंस कॉलेज: दिल्ली

पीठ ने कहा, "मौजूदा मामले में, पक्षों द्वारा प्रस्तुत तथ्य और तर्क संकेत देते हैं कि करंट के रिसाव के लिए लापरवाही एक आउटगोइंग तार के कारण हुई, जिससे शटर गेट और उसके बाद चैनल गेट तक करंट का प्रवाह हुआ, प्रथम दृष्टया, इस स्तर पर केवल बीएसईएस को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है." विद्युत अधिनियम, 2003 के नियम और प्रावधान भी निर्णायक रूप से यह स्थापित नहीं करते हैं कि यह केवल डिस्कॉम (इस मामले में बीएसईएस) था, जिसके पास इस तरह के रिसाव को रोकने की एकमात्र और प्रत्यक्ष जिम्मेदारी थी. बेशक, उपभोक्ता-दुकानदार आरोप पत्र में मुख्य आरोपी है और बीएसईएस का नाम नहीं लिया गया है. पीठ ने कहा, "रिकॉर्ड पर ऐसे किसी भी ठोस सबूत के अभाव में जो बीएसईएस की ओर से किसी चूक को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता हो, न्यायालय निर्णायक रूप से बीएसईएस की ओर से लापरवाही स्थापित नहीं कर सकता. हालांकि, उक्त स्थिति को केवल सक्षम सिविल न्यायालय में साक्ष्य प्रस्तुत करते समय ही पक्षकारों द्वारा स्थापित किया जा सकता है."

यह भी पढ़ें- बंगाल विधानसभा स्पीकर ने बुलाया विशेष सत्र, कहा- सबकुछ गवर्नर के हाथ में नहीं - West Bengal

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बिजली वितरण कंपनी बीएसईएस को 2017 में बिजली का करंट लगने से मरने वाले सब इंस्पेक्टर की विधवा को 10 लाख रुपये का अनुग्रह मुआवजा देने का निर्देश दिया है. याचिकाकर्ता के पति अफजल अली की 21 मई, 2017 को बिजली का करंट लगने से मौत हो गई थी. उनकी विधवा शगुफ्ता अली ने आधिकारिक प्रतिवादियों से 50 लाख रुपये का मुआवजा मांगा था. न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने अपने फैसले में कहा, "याचिकाकर्ता को पहले से दिए जा चुके लाभों के मद्देनजर, न्यायालय अपने विवेक से बीएसईएस द्वारा याचिकाकर्ता को 10 लाख रुपये का अनुग्रह एकमुश्त मुआवजा देना उचित समझता है."

50 लाख रुपये भुगतान की प्रार्थना: याचिकाकर्ता ने मुआवजे के रूप में 50 लाख रुपये का भुगतान करने की प्रार्थना की है. उच्च न्यायालय ने कहा कि, "दिल्ली पुलिस द्वारा दायर स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, मृतक के परिवार को पहले ही पारिवारिक पेंशन लाभ के रूप में 27,96,496 रुपये दिए जा चुके हैं और उन्हें 21 मई, 2027 तक 17,150 रुपये की मासिक पेंशन भी मिल रही है और उसके बाद उन्हें 10,290 रुपये मिलेंगे." उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता सिविल न्यायालय में उचित कानूनी उपाय करने के लिए भी स्वतंत्र है. सक्षम सिविल न्यायालय को ऐसे किसी भी मुकदमे की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर मामले का निपटारा करने का निर्देश दिया जाता है. पीठ ने कहा कि बीएसईएस को भी निर्देश दिया जाता है कि वह अनावश्यक स्थगन मांगकर कार्यवाही में कोई अनावश्यक देरी न करे.

पीठ ने आगे स्पष्ट किया कि इस न्यायालय द्वारा दी गई अनुग्रह राशि सिविल न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले किसी भी मुआवजे से स्वतंत्र है और इसके अतिरिक्त है. अधिवक्ता सईद कादरी ने साहिल गुप्ता और मोहम्मद शकील के साथ याचिकाकर्ता शगुफ्ता अली के लिए बहस की. मामले के तथ्यों से पता चलता है कि याचिकाकर्ता के पति अफजल अली 1990 से दिल्ली पुलिस (यातायात) में सब-इंस्पेक्टर के रूप में काम कर रहे थे.

न्यू लाजपत राय मार्केट में हुआ था हादसा: याचिकाकर्ता और मृतका की शादी वर्ष 1991 में हुई थी और विवाह से तीन बच्चे थे. 21 मई, 2017 के दुर्भाग्यपूर्ण दिन, जब मृतक अपने सबसे छोटे बच्चे के लिए उपहार खरीदने के लिए साइकिल बाजार गए थे, तभी बारिश शुरू हो गई. वह आश्रय की तलाश में भागे और खुद को बारिश से बचाने की कोशिश करते हुए, वह न्यू लाजपत राय मार्केट में एक दुकान के पास स्थित चैनल गेट के संपर्क में आ गए और बिजली की चपेट में आ गए. फिर उसे अरुणा आसफ अली अस्पताल ले जाया गया, जहां दुर्भाग्य से उसे मृत घोषित कर दिया गया.

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पीठ ने कहा, "मौजूदा मामले में, पक्षों द्वारा प्रस्तुत तथ्य और तर्क संकेत देते हैं कि करंट के रिसाव के लिए लापरवाही एक आउटगोइंग तार के कारण हुई, जिससे शटर गेट और उसके बाद चैनल गेट तक करंट का प्रवाह हुआ, प्रथम दृष्टया, इस स्तर पर केवल बीएसईएस को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है." विद्युत अधिनियम, 2003 के नियम और प्रावधान भी निर्णायक रूप से यह स्थापित नहीं करते हैं कि यह केवल डिस्कॉम (इस मामले में बीएसईएस) था, जिसके पास इस तरह के रिसाव को रोकने की एकमात्र और प्रत्यक्ष जिम्मेदारी थी. बेशक, उपभोक्ता-दुकानदार आरोप पत्र में मुख्य आरोपी है और बीएसईएस का नाम नहीं लिया गया है. पीठ ने कहा, "रिकॉर्ड पर ऐसे किसी भी ठोस सबूत के अभाव में जो बीएसईएस की ओर से किसी चूक को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता हो, न्यायालय निर्णायक रूप से बीएसईएस की ओर से लापरवाही स्थापित नहीं कर सकता. हालांकि, उक्त स्थिति को केवल सक्षम सिविल न्यायालय में साक्ष्य प्रस्तुत करते समय ही पक्षकारों द्वारा स्थापित किया जा सकता है."

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