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हाईकोर्ट ने RTI अधिनियम के आदेश को चुनौती देने वाली CBI की याचिका पर IFS अधिकारी से जवाब मांगा - Delhi HC asks IFS officer

दिल्ली उच्च न्यायालय ने आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी देने के आदेश को चुनौती देने वाली सीबीआई की याचिका पर आईएफएस अधिकारी से जवाब मांगा है.

दिल्ली उच्च न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय (Etv Bharat फाइल फोटो)
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By PTI

Published : May 15, 2024, 5:03 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने CBI की उस याचिका पर भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी से जवाब मांगा, जिसमें जांच एजेंसी से एम्स ट्रॉमा सेंटर में कथित भ्रष्टाचार के बारे में कुछ जानकारी देने के लिए कहा गया था. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने एम्स, दिल्ली के पूर्व मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) संजीव चतुर्वेदी को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर सीबीआई की अपील के जवाब में जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा. न्यायालय ने मामले को 29 जुलाई को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.

खंडपीठ सीबीआई की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एकल न्यायाधीश के 30 जनवरी के आदेश को चुनौती दी गई थी. इसमें केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के नवंबर 2019 के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया गया था, जिसमें जांच एजेंसी को कुछ जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया गया था. चतुर्वेदी ने एम्स के जय प्रकाश नारायण एपेक्स ट्रॉमा सेंटर के मेडिकल स्टोर के लिए कीटाणुनाशक और फॉगिंग समाधान की खरीद में कथित भ्रष्टाचार के बारे में जानकारी मांगी थी. वह उस समय एम्स के मुख्य सतर्कता अधिकारी थे.

चतुर्वेदी ने मामले में सीबीआई द्वारा की गई जांच से संबंधित फाइल नोटिंग या दस्तावेजों या पत्राचार की प्रमाणित प्रति मांगी थी. अधिकारी के मुताबिक, चूंकि सीबीआई ने उनके द्वारा दी गई जानकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की, इसलिए उन्होंने जांच एजेंसी के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) से संपर्क किया. सीबीआई द्वारा जानकारी देने से इनकार करने के बाद उन्होंने सीआईसी से संपर्क किया. जिसने केंद्रीय एजेंसी को उन्हें विवरण प्रदान करने का आदेश दिया.

इसके बाद सीबीआई ने सीआईसी के 2019 के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. एकल न्यायाधीश ने 30 जनवरी के आदेश में कहा कि सीबीआई को सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे से पूरी तरह छूट नहीं है, जो उसे भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित जानकारी देने की अनुमति देता है.

आरटीआई अधिनियम की धारा 24 (कुछ संगठनों पर लागू नहीं होने वाला अधिनियम) का अवलोकन करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि भले ही संगठन (सीबीआई) का नाम कानून की दूसरी अनुसूची में उल्लेखित है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि संपूर्ण अधिनियम ऐसे संगठनों पर लागू नहीं होता है. इसमें कहा गया था कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है, जो दर्शाता हो कि जेपीएनए ट्रॉमा सेंटर, एम्स में कीटाणुनाशक और फॉगिंग समाधान की खरीद में कदाचार के संबंध में जांच में शामिल अधिकारियों और अन्य व्यक्तियों का पर्दाफाश हो जाएगा. जो उनके जीवन को खतरे में डाल सकता है.

बुधवार को सीबीआई के वकील ने तर्क दिया कि एकल न्यायाधीश के फैसले को इस आधार पर रद्द किया जाना चाहिए कि आरटीआई कानून की धारा 24 पूर्ण प्रतिबंध के रूप में कार्य करती है. एजेंसी को अधिनियम के प्रावधानों से छूट दी गई है, क्योंकि इसकी जांच एक रहस्य बनी हुई है और कोई भी खुलासा आरटीआई अधिनियम में इसे शामिल करने के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा. सीबीआई ने कहा कि भ्रष्टाचार के अपराधों की जांच में खुफिया जानकारी ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और खुफिया जानकारी के आधार पर कई महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामले दर्ज किए गए. इसलिए, वह चतुवेर्दी को जांच के विवरण का खुलासा नहीं कर सकती.

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने CBI की उस याचिका पर भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी से जवाब मांगा, जिसमें जांच एजेंसी से एम्स ट्रॉमा सेंटर में कथित भ्रष्टाचार के बारे में कुछ जानकारी देने के लिए कहा गया था. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने एम्स, दिल्ली के पूर्व मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) संजीव चतुर्वेदी को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर सीबीआई की अपील के जवाब में जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा. न्यायालय ने मामले को 29 जुलाई को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.

खंडपीठ सीबीआई की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एकल न्यायाधीश के 30 जनवरी के आदेश को चुनौती दी गई थी. इसमें केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के नवंबर 2019 के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया गया था, जिसमें जांच एजेंसी को कुछ जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया गया था. चतुर्वेदी ने एम्स के जय प्रकाश नारायण एपेक्स ट्रॉमा सेंटर के मेडिकल स्टोर के लिए कीटाणुनाशक और फॉगिंग समाधान की खरीद में कथित भ्रष्टाचार के बारे में जानकारी मांगी थी. वह उस समय एम्स के मुख्य सतर्कता अधिकारी थे.

चतुर्वेदी ने मामले में सीबीआई द्वारा की गई जांच से संबंधित फाइल नोटिंग या दस्तावेजों या पत्राचार की प्रमाणित प्रति मांगी थी. अधिकारी के मुताबिक, चूंकि सीबीआई ने उनके द्वारा दी गई जानकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की, इसलिए उन्होंने जांच एजेंसी के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) से संपर्क किया. सीबीआई द्वारा जानकारी देने से इनकार करने के बाद उन्होंने सीआईसी से संपर्क किया. जिसने केंद्रीय एजेंसी को उन्हें विवरण प्रदान करने का आदेश दिया.

इसके बाद सीबीआई ने सीआईसी के 2019 के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. एकल न्यायाधीश ने 30 जनवरी के आदेश में कहा कि सीबीआई को सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे से पूरी तरह छूट नहीं है, जो उसे भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित जानकारी देने की अनुमति देता है.

आरटीआई अधिनियम की धारा 24 (कुछ संगठनों पर लागू नहीं होने वाला अधिनियम) का अवलोकन करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि भले ही संगठन (सीबीआई) का नाम कानून की दूसरी अनुसूची में उल्लेखित है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि संपूर्ण अधिनियम ऐसे संगठनों पर लागू नहीं होता है. इसमें कहा गया था कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है, जो दर्शाता हो कि जेपीएनए ट्रॉमा सेंटर, एम्स में कीटाणुनाशक और फॉगिंग समाधान की खरीद में कदाचार के संबंध में जांच में शामिल अधिकारियों और अन्य व्यक्तियों का पर्दाफाश हो जाएगा. जो उनके जीवन को खतरे में डाल सकता है.

बुधवार को सीबीआई के वकील ने तर्क दिया कि एकल न्यायाधीश के फैसले को इस आधार पर रद्द किया जाना चाहिए कि आरटीआई कानून की धारा 24 पूर्ण प्रतिबंध के रूप में कार्य करती है. एजेंसी को अधिनियम के प्रावधानों से छूट दी गई है, क्योंकि इसकी जांच एक रहस्य बनी हुई है और कोई भी खुलासा आरटीआई अधिनियम में इसे शामिल करने के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा. सीबीआई ने कहा कि भ्रष्टाचार के अपराधों की जांच में खुफिया जानकारी ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और खुफिया जानकारी के आधार पर कई महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामले दर्ज किए गए. इसलिए, वह चतुवेर्दी को जांच के विवरण का खुलासा नहीं कर सकती.

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