मैहर। दीपावली पर्व पर बाजारों में चाइनीज लाइट की धूम है. इस करण मिट्टी के दीयों की मांग बहुत कम हो गई है. बाजारों को रंग-बिरंगी लाइट की रोशनी में मिट्टी से दीये बनाने वालों को निराशा हाथ लगी है. अमरपाटन क्षेत्र में एक समय कुम्हार मोहल्ला मिट्टी के दीये, गुल्लक और मटकों के लिए मशहूर था. अब घटती बिक्री के चलते प्रजापति समुदाय कठिन दौर से गुजर रहा है. 32 वर्षीय प्रिया प्रजापति और 35 वर्षीय सोनू प्रजापति इस दर्द को बयां कर रहे हैं.
मिट्टी के दीये की बिक्री घटने से दीवाली की खुशियां नहीं
मिट्टी के दीये बनाने वाले इस दीवाली पर भी अपनी आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इनका जीवनयापन इसी परंपरागत काम से चलता है, लेकिन बदलते समय और लागत बढ़ने से इनकी समस्याएं बढ़ गई हैं. प्रिया प्रजापति ने अपने जीवन का अहम हिस्सा मिट्टी के बर्तन बनाने में खपाया है. वह बताती हैं "दीये, गुल्लक और करवे अब उनके परिवार की जरूरतों को पूरा करने में नाकाफी हैं. उनको अधिकांश सामान बाहर से खरीदकर लाना पड़ता है, जिस वजह से लाभ बहुत ही कम होता है. हमारी पूरी दिवाली में मुश्किल से 2 से 4 हजार रुपए की बचत हो पाती है. एक हजार दीए बेचने पर 200-250 रुपए की बचत होती है और कभी-कभी तो एक दिन में एक हजार दीये भी नहीं बिकते."
अब केवल गर्मी के मौसम में मटके बिकते हैं
मिट्टी के बर्तन बनाने वाले बताते हैं कि गर्मी के मौसम में मटके बेचने का सहारा मिलता है लेकिन ये भी जीवनयापन के लिए काफी नहीं है. उनका यह व्यवसाय मौसमी बनकर रह गया है. सालभर का आय स्त्रोत नहीं बन पाता. प्रिया प्रजापति ने बताया "पहले जब बाजार में प्लास्टिक और मशीन से बने सामान नहीं होते थे, तब मिट्टी के दीये और मटके घर-घर में उपयोग किए जाते थे. पर अब प्लास्टिक और अन्य सजावटी आइटम ने उनकी जगह ले ली है, जिससे उनकी बिक्री पर सीधा असर पड़ा है."
मिट्टी के बर्तन बनाकर घर चलाना मुशिक्ल हो रहा
सोनू प्रजापति भी इन्हीं मुश्किलों से जूझ रहे हैं. वह बताते हैं "पहले लोग मिट्टी के दीये और अन्य उत्पादों को पारंपरिक रूप से खरीदते थे, लेकिन अब इनकी मांग तेजी से घट रही है. इस दीवाली में उनकी बिक्री और भी कम रही है, जिससे उनकी आय पर काफी असर पड़ा है. हम भी सामान बाहर से खरीदकर लाते हैं और इसे बेचते हैं. कभी-कभी टूटा-फूटा सामान भी मिल जाता है, जिससे हमें और भी नुकसान होता है." उनकी आय एक दिन में अधिकतम 300-400 रुपए तक सीमित हो गई है, जोकि उनके परिवार की जरूरतों के लिए काफी नहीं है. उनके परिवार में कुल 7 सदस्य हैं और इसी व्यवसाय से पूरे परिवार का गुजारा चलता है.
ये खबरें भी पढ़ें... भगवान राम की चरण रज है इन दीयों में, ओरछा की मिट्टी से तैयार करने की परंपरा बाल संप्रेषण के बालकों के हाथों से बने मिट्टी के दीये बने आकर्षण का केंद्र |
मिट्टी के बर्तनों की डिमांड भी लगातार घटी
सोनू प्रजापति के अनुसार "त्यौहारों के बाद उनके मिट्टी के उत्पादों की मांग खत्म हो जाती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी दयनीय हो जाती है." प्रिया प्रजापति और सोनू प्रजापति जैसे कई कई लोग आज भी पारंपरिक तरीके से अपने उत्पाद तैयार कर रहे हैं, लेकिन बदलते समय और प्रतिस्पर्धा के कारण उनकी आजीविका संकट में है. वे बड़ी मुश्किल से अपना घर चला रहे हैं.