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वरिष्ठ रंगकर्मी राज बिसारिया को रंगमंच से था सबसे ज्यादा प्यार, सिस्टम से लड़े, नहीं किया कोई समझौता

कलाजगत के पुरोधा पद्मश्री राज बिसारिया का शुक्रवार को निधन (Theater master Raj Bisaria passes away) हो गया. राज बिसारिया लंबे समय से गले के कैंसर से पीड़ित थे. पीजीआई लखनऊ में उनका इलाज चल रहा था.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 17, 2024, 10:31 AM IST

लखनऊ : वरिष्ठ रंगकर्मी राज बिसारिया ने अपना पूरा जीवन रंगमंच के विकास और उत्थान के लिए लगा दिया. आधुनिक रंगमंच की वकालत करने वाले वरिष्ठ रंगकर्मी राज बिसारिया ने रंगमंच को ही अपनी दुनिया बना ली. रंगमंच से ज्यादा वो किसी और को प्यार नहीं करते थे. इसके लिए उन्होंने कभी भी समझौता नहीं किया. वो पूरे सिस्टम से लड़े, लेकिन रंगमंच से समझौता नहीं किया. आज वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वो हमेशा दिलों में रहेंगे. शुक्रवार को वरिष्ठ रंगकर्मी राज बिसारिया के निधन के बाद कला जगत पर उनकी ही चर्चाएं होती रहीं.

अभिनेता अनिल रस्तोगी
अभिनेता अनिल रस्तोगी

'भारतेंदु नाट्य अकादमी की स्थापना की' : वरिष्ठ रंगकर्मी और अभिनेता अनिल रस्तोगी ने बताया कि अखिल भारतीय स्तर पर उत्तर प्रदेश के नाटकों की जो स्थिति थी, उसे सम्मान दिलाने के लिए राज बिसारिया ने बहुत मेहनत की. अपने व्यक्तिगत प्रयासों से लखनऊ में भारतेंदु नाट्य अकादमी की स्थापना की. यह मील का पत्थर साबित हुआ. अब तक न विद्या केवल दिल्ली तक केंद्रित थी, उसे विकेन्द्रित कर के छोटे-छोटे शहरों के रंगमंच से जोड़कर राष्ट्रीय स्तर पर उनको पहचान दिला पाने में सफल रहे. राज बिसारिया को जब सन 1969 में लंदन से निमंत्रण आया तो उन्हें लगा कि 5-6 महीने का जो ये प्रशिक्षण है, यह सही मौका है रंगमंच को जानने, करीब से देखने और समझने का.

अपने देश में विधिवत रंगमंच के प्रशिक्षण की जो कमी रह गई थी, उसकी भरपाई यहां की जा सकती है. यहां उन्हें दुनिया भर के महान नाटक देखने को मिले. नाटकों में भाग लेने वाले कलाकारों की तैयारी की प्रक्रिया को करीब से ऑब्जरवेशन करने का मौका मिला. रंगमंच के लिए राज बिसारिया को सत्ता से कई स्तर पर लड़ाई लड़नी पड़ी. उनके खिलाफ न्यायालय में मुकदमें भी चले. रंगमंच से जुड़े कई परंपरागत रंगकर्मियों ने तरह-तरह के आक्षेप लगाकर व्यक्तिगत स्तर इनका विरोध किया, लेकिन राज बिसारिया का जो व्यक्तित्व था वो कभी झुका नहीं. 23 सितंबर 1975 में जिस भारतेंदु नाट्य अकादमी की स्थापना की, 1980 में रंगमंडल बनाया, सन 1986 में सत्ता के हस्तक्षेप और अंदरूनी उठा-पटक से निराश होकर उन्होंने त्यागपत्र दे दिया.

वरिष्ठ रंगकर्मी सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ
वरिष्ठ रंगकर्मी सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ

'बड़े से बड़े कलाकारों को बेबाक होकर टोकते थे' : वरिष्ठ रंग कर्मी सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ ने कहा कि राज बिसारिया ने अपने वक्त में जो लड़ाई लड़ी थी, उसी का परिणाम इतने वर्षों के बाद आज हमें देखने को मिल रहा रहा है कि मध्य प्रदेश, त्रिपुरा, सिक्किम, बनारस, बेंगलुरु, चंडीगढ़, हैदराबाद जैसे शहरों, महानगरों में नाटक की अलग-अलग विधाओं में स्पेशलाइजेशन कोर्स की पढ़ाई जा रही है. वो हमेशा हर चीज परफेफ्ट करना चाहते थे, इसके लिए वो बड़े से बड़े कलाकारों को बेबाक होकर टोकते थे. मेरा तो बहुत पुराना नाता रहा है, उनके साथ कई तरह के नाटक किए हैं.

'राज बिसारिया पहले अंग्रेजी थियेटर करते थे' : दर्पण संस्था के महासचिव राधेश्याम सोनी ने कहा कि रंगमंच के पुरोधा राज बिसारिया साहब नहीं रहे. भारतीय रंगमंच के लिए 'राज साहब' जैसे व्यक्तित्व का जाना एक अपूर्णीय क्षति है. उनका मंत्रमुग्ध कर देने वाला करिश्माई व्यक्तित्व अब भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं है. लेकिन, उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी. उत्तर प्रदेश में भारतेन्दु नाट्य अकादमी को स्थापित कर रंगमंच अध्ययन के लिए देश को एनएसडी का विकल्प दिया. बीएनए के छात्रों ने फिल्म एवं रंगजगत में इसे साबित भी किया. राज साहब स्वयं मे एक जीवंत संस्था थे. उन्हें सुनना देखना हमेशा ही प्रेरणा दायक रहा. राज बिसारिया पहले अंग्रेजी थियेटर करते थे. लेकिन, हिन्दी रंगमंच को आधुनिक बनाने और उसमें गुणात्मक सुधार लाने के लिए हिन्दी रंगमंच की ओर ध्यान दिया. रंगमंच के हितों एवं सिद्धांतों के लिए लड़ने वाले को राज साहब को सलाम.

वरिष्ठ रंगकर्मी पुनीत अस्थाना
वरिष्ठ रंगकर्मी पुनीत अस्थाना

'गुरु ही नहीं बल्कि एक मूर्तिकार की तरह थे राज बिसारिया' : बीएनए के पूर्व निदेशक और वरिष्ठ रंगकर्मी पुनीत अस्थाना ने बताया कि मेरे लिए राज साहब केवल एक गुरु ही नहीं बल्कि एक मूर्तिकार की तरह थे. जिन्होंने मुझे थिएटर की मिट्टी से गढ़ा. आज मैं जो कुछ भी हूं उन्हीं का रोपा हुआ पौधा हूं. थिएटर में मुझको संस्कारित करने में उनका बहुत बड़ा योगदान है. राज बिसारिया से मेरा पहला परिचय 1976 में बीएनए में प्रवेश के समय हुआ था. उसके बाद तो उन्होंने मुझे अपने बच्चे की तरह पाल पोसकर बड़ा किया. उनका जाना मेरे लिए पर्सनल लॉस है. उनकी कमी कोई पूरा नहीं कर सकता.

वरिष्ठ रंगकर्मी सीमा मोदी
वरिष्ठ रंगकर्मी सीमा मोदी

'कला जगत के लिए बड़ी क्षति' : वरिष्ठ रंगकर्मी सीमा मोदी ने बताया कि राज बिसारिया सर मेरे कई शोज में आए थे. जब 2017-18 में प्ले कर रही थी तब उनसे मिलने की ठानी. उस दौरान बीएनए के एक टीचर से उनका नंबर मांगा, लेकिन उन्होंने दिया नहीं. किसी तरह उनका नंबर लेकर फोन मिलाया और मिलने पहुंची. जब उनको नंबर न देने की बात बताई तो कहा कि कई लोग जलन के कारण ऐसा करते हैं. उन्होंने मुझे गाइड किया और मैंने काफी कुछ सीखा उनसे. अभी हाल ही में मुलाकात हुई थी. उनकी मेमोरी बेहद शार्प थी. उनका निधन कला जगत के लिए बड़ी क्षति है.

यह भी पढ़ें : रंगमंच के महारथी पद्मश्री राज बिसारिया का निधन, कला जगत में शोक की लहर

यह भी पढ़ें : प्रसिद्ध रंगकर्मी राज बिसारिया की हालत बिगड़ी, अस्पताल में हुए भर्ती

लखनऊ : वरिष्ठ रंगकर्मी राज बिसारिया ने अपना पूरा जीवन रंगमंच के विकास और उत्थान के लिए लगा दिया. आधुनिक रंगमंच की वकालत करने वाले वरिष्ठ रंगकर्मी राज बिसारिया ने रंगमंच को ही अपनी दुनिया बना ली. रंगमंच से ज्यादा वो किसी और को प्यार नहीं करते थे. इसके लिए उन्होंने कभी भी समझौता नहीं किया. वो पूरे सिस्टम से लड़े, लेकिन रंगमंच से समझौता नहीं किया. आज वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वो हमेशा दिलों में रहेंगे. शुक्रवार को वरिष्ठ रंगकर्मी राज बिसारिया के निधन के बाद कला जगत पर उनकी ही चर्चाएं होती रहीं.

अभिनेता अनिल रस्तोगी
अभिनेता अनिल रस्तोगी

'भारतेंदु नाट्य अकादमी की स्थापना की' : वरिष्ठ रंगकर्मी और अभिनेता अनिल रस्तोगी ने बताया कि अखिल भारतीय स्तर पर उत्तर प्रदेश के नाटकों की जो स्थिति थी, उसे सम्मान दिलाने के लिए राज बिसारिया ने बहुत मेहनत की. अपने व्यक्तिगत प्रयासों से लखनऊ में भारतेंदु नाट्य अकादमी की स्थापना की. यह मील का पत्थर साबित हुआ. अब तक न विद्या केवल दिल्ली तक केंद्रित थी, उसे विकेन्द्रित कर के छोटे-छोटे शहरों के रंगमंच से जोड़कर राष्ट्रीय स्तर पर उनको पहचान दिला पाने में सफल रहे. राज बिसारिया को जब सन 1969 में लंदन से निमंत्रण आया तो उन्हें लगा कि 5-6 महीने का जो ये प्रशिक्षण है, यह सही मौका है रंगमंच को जानने, करीब से देखने और समझने का.

अपने देश में विधिवत रंगमंच के प्रशिक्षण की जो कमी रह गई थी, उसकी भरपाई यहां की जा सकती है. यहां उन्हें दुनिया भर के महान नाटक देखने को मिले. नाटकों में भाग लेने वाले कलाकारों की तैयारी की प्रक्रिया को करीब से ऑब्जरवेशन करने का मौका मिला. रंगमंच के लिए राज बिसारिया को सत्ता से कई स्तर पर लड़ाई लड़नी पड़ी. उनके खिलाफ न्यायालय में मुकदमें भी चले. रंगमंच से जुड़े कई परंपरागत रंगकर्मियों ने तरह-तरह के आक्षेप लगाकर व्यक्तिगत स्तर इनका विरोध किया, लेकिन राज बिसारिया का जो व्यक्तित्व था वो कभी झुका नहीं. 23 सितंबर 1975 में जिस भारतेंदु नाट्य अकादमी की स्थापना की, 1980 में रंगमंडल बनाया, सन 1986 में सत्ता के हस्तक्षेप और अंदरूनी उठा-पटक से निराश होकर उन्होंने त्यागपत्र दे दिया.

वरिष्ठ रंगकर्मी सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ
वरिष्ठ रंगकर्मी सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ

'बड़े से बड़े कलाकारों को बेबाक होकर टोकते थे' : वरिष्ठ रंग कर्मी सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ ने कहा कि राज बिसारिया ने अपने वक्त में जो लड़ाई लड़ी थी, उसी का परिणाम इतने वर्षों के बाद आज हमें देखने को मिल रहा रहा है कि मध्य प्रदेश, त्रिपुरा, सिक्किम, बनारस, बेंगलुरु, चंडीगढ़, हैदराबाद जैसे शहरों, महानगरों में नाटक की अलग-अलग विधाओं में स्पेशलाइजेशन कोर्स की पढ़ाई जा रही है. वो हमेशा हर चीज परफेफ्ट करना चाहते थे, इसके लिए वो बड़े से बड़े कलाकारों को बेबाक होकर टोकते थे. मेरा तो बहुत पुराना नाता रहा है, उनके साथ कई तरह के नाटक किए हैं.

'राज बिसारिया पहले अंग्रेजी थियेटर करते थे' : दर्पण संस्था के महासचिव राधेश्याम सोनी ने कहा कि रंगमंच के पुरोधा राज बिसारिया साहब नहीं रहे. भारतीय रंगमंच के लिए 'राज साहब' जैसे व्यक्तित्व का जाना एक अपूर्णीय क्षति है. उनका मंत्रमुग्ध कर देने वाला करिश्माई व्यक्तित्व अब भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं है. लेकिन, उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी. उत्तर प्रदेश में भारतेन्दु नाट्य अकादमी को स्थापित कर रंगमंच अध्ययन के लिए देश को एनएसडी का विकल्प दिया. बीएनए के छात्रों ने फिल्म एवं रंगजगत में इसे साबित भी किया. राज साहब स्वयं मे एक जीवंत संस्था थे. उन्हें सुनना देखना हमेशा ही प्रेरणा दायक रहा. राज बिसारिया पहले अंग्रेजी थियेटर करते थे. लेकिन, हिन्दी रंगमंच को आधुनिक बनाने और उसमें गुणात्मक सुधार लाने के लिए हिन्दी रंगमंच की ओर ध्यान दिया. रंगमंच के हितों एवं सिद्धांतों के लिए लड़ने वाले को राज साहब को सलाम.

वरिष्ठ रंगकर्मी पुनीत अस्थाना
वरिष्ठ रंगकर्मी पुनीत अस्थाना

'गुरु ही नहीं बल्कि एक मूर्तिकार की तरह थे राज बिसारिया' : बीएनए के पूर्व निदेशक और वरिष्ठ रंगकर्मी पुनीत अस्थाना ने बताया कि मेरे लिए राज साहब केवल एक गुरु ही नहीं बल्कि एक मूर्तिकार की तरह थे. जिन्होंने मुझे थिएटर की मिट्टी से गढ़ा. आज मैं जो कुछ भी हूं उन्हीं का रोपा हुआ पौधा हूं. थिएटर में मुझको संस्कारित करने में उनका बहुत बड़ा योगदान है. राज बिसारिया से मेरा पहला परिचय 1976 में बीएनए में प्रवेश के समय हुआ था. उसके बाद तो उन्होंने मुझे अपने बच्चे की तरह पाल पोसकर बड़ा किया. उनका जाना मेरे लिए पर्सनल लॉस है. उनकी कमी कोई पूरा नहीं कर सकता.

वरिष्ठ रंगकर्मी सीमा मोदी
वरिष्ठ रंगकर्मी सीमा मोदी

'कला जगत के लिए बड़ी क्षति' : वरिष्ठ रंगकर्मी सीमा मोदी ने बताया कि राज बिसारिया सर मेरे कई शोज में आए थे. जब 2017-18 में प्ले कर रही थी तब उनसे मिलने की ठानी. उस दौरान बीएनए के एक टीचर से उनका नंबर मांगा, लेकिन उन्होंने दिया नहीं. किसी तरह उनका नंबर लेकर फोन मिलाया और मिलने पहुंची. जब उनको नंबर न देने की बात बताई तो कहा कि कई लोग जलन के कारण ऐसा करते हैं. उन्होंने मुझे गाइड किया और मैंने काफी कुछ सीखा उनसे. अभी हाल ही में मुलाकात हुई थी. उनकी मेमोरी बेहद शार्प थी. उनका निधन कला जगत के लिए बड़ी क्षति है.

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