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लोधी मतदाता जिस पार्टी के साथ, वो जीत गया चुनाव, दमोह सीट में 35 साल से BJP का कब्जा - damoh lok sabha seat profile - DAMOH LOK SABHA SEAT PROFILE

एमपी के बुंदलेखंड की दमोह सीट बीजेपी का गढ़ है. यहां लोधी समाज का वर्चस्व देखने मिलता है. राजनीतिक दल भी लोधी समाज के प्रत्याशियों को ही मौका देते हैं. इस बार बीजेपी ने इस सीट से राहुल सिंह लोधी को उम्मीदवार बनाया है तो वहीं कांग्रेस का मंथन अभी जारी है.

DAMOH LOK SABHA SEAT PROFILE
लोधी मतदाता जिस पार्टी के साथ, वो जीत गया चुनाव, दमोह सीट में 35 साल से BJP का कब्जा
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 25, 2024, 6:49 PM IST

सागर। बुंदेलखंड की 4 संसदीय सीटों में दमोह लोकसभा सीट की बात करें, तो ये सीट एक तरह से भाजपा का गढ़ बन चुकी है. बुंदेलखंड का दमोह की पहचान एक धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगरी के रूप में है. यहां पर बांदकपुर में भगवान जागेश्वर नाथ का मंदिर बुंदेलखंड में आस्था का केंद्र है. वहीं जैन तीर्थ के रूप में मशहूर कुंडलपुर मंदिर भी प्रसिद्ध है. जहां बडे़ बाबा की प्रतिमा विराजमान है. इस सीट की बात करें, तो 2008 परिसीमन के बाद ये सीट एक तरह लोधी बाहुल्य सीट हो गयी है. राजनीतिक दल भी लोधी प्रत्याशियों को मौका देते हैं, क्योंकि इस लोकसभा की आठ सीटों में से सात सीटों पर लोधी मतदाताओं की संख्या ज्यादा है.

दमोह लोकसभा सीट

2008 के परिसीमन के बाद दमोह लोकसभा सीट में सागर जिले की तीन रहली, देवरी और बंडा विधानसभा, दमोह की चार दमोह, पथरिया, हटा और जबेरा और छतरपुर की बड़ामलहरा सीट शामिल है. दमोह में पुरूष मतदाताओं की संख्या 10 लाख 7 हजार 149 और महिला मतदाताओं की 9 लाख 14 हजार 853 और अन्य मतदाताओं की संख्या 18 है. इस तरह कुल मतदाता 19 लाख 22 हजार 20 है.

दमोह लोकसभा सीट का इतिहास

दमोह लोकसभा सीट की बात करें, तो दमोह लोकसभा 1962 में अस्तित्व में आयी थी. जब पहली बार दमोह सीट बनी, तो ये अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी. 1977 में हुई परिसीमन के बाद ये सीट अनारक्षित हो गयी और दमोह की 4, पन्ना की तीन और छतरपुर की एक सीट को शामिल किया गया. लोकसभा का नाम दमोह पन्ना लोकसभा दिया गया. 1977 में कांग्रेस की हार हुई और भारतीय लोकदल के उम्मीदवार नरेंद्र सिंह सांसद बने थे. इसके बाद 1980 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और 1984 का चुनाव भी जीता, लेकिन 1989 में इस सीट पर भाजपा के लोकेन्द्र सिंह ने जो भाजपा की जीत का सिलसिला शुरू किया, तो अब तक कायम है.

2008 के परिसीमन में ये सीट नए स्वरूप में सामने आयी. जिसमें सागर की तीन रहली, बंडा और देवरी और दमोह की दमोह, पथरिया,हटा और जबेरा और छतरपुर की बड़ी मलहरा को शामिल किया गया. नए परिसीमन में ये लोकसभा सीट लोधी बाहुल्य लोकसभा सीट हो गयी और 2009 से यहां पर भाजपा के लोधी नेता लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं.

चुनाव परिणाम

लोकसभा चुनाव 2009: भाजपा के शिवराज सिंह लोधी 3 लाख 2 हजार 673 वोट मिले. वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंदी चंद्रभान सिंह लोधी को 2 लाख 31 हजार 796 वोट मिले. इस तरह भाजपा के शिवराज सिंह लोधी 70 हजार 877 वोटों से चुनाव जीत गए.

लोकसभा चुनाव 2014: 2014 में मोदी लहर के बीच दमोह लोकसभा से फिर भाजपा ने प्रहलाद पटेल (लोधी) को चुनाव मैदान में उतारा और उन्हें 5 लाख 13 हजार 79 वोट हासिल हुए. भाजपा के प्रहलाद पटेल ने अपने निकटतम प्रत्याशी कांग्रेस के चौधरी महेंद्र प्रताप सिंह को 2 लाख 99 हजार 780 वोट मिले. इस तरह से कांग्रेस 2 लाख 13 हजार 299 मतो सें चुनाव हार गयी.

लोकसभा चुनाव 2019: लोकसभा चुनाव में एक बार फिर प्रहलाद पटेल को भाजपा ने टिकट दिया और इस बार उन्होंने 7 लाख 4 हजार 524 मत हासिल किए. वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के प्रताप सिंह को 3 लाख 51 हजार 113 वोट मिले. इस तरह प्रहलाद पटेल 3 लाख 53 हजार 411 मतों से चुनाव जीत गए.

DAMOH LOK SABHA SEAT PROFILE
दमोह लोकसभा सीट 2019 के परिणाम

35 साल से दमोह सीट पर भाजपा का कब्जा

बुंदेलखंड की दमोह सीट की बात करें, तो पिछले 35 साल से यहां भाजपा का तिलिस्म कांग्रेस नहीं तोड़ पायी है. 1989 में यहां से जहां भाजपा की हार की जीत का सिलसिला शुरू हुआ, तो 1991 से लगातार 4 चुनाव जीतकर रामकृष्ण कुसमारिया ने सीट भाजपा की झोली में डाली. इसके बाद 2004 में भाजपा के चंद्रभान सिंह लोधी सांसद बने और फिर 2008 के परिसीमन के बाद 2009 से अब तक लगातार भाजपा ने लोधी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. इस बार 2024 में भाजपा में कांग्रेस से आए राहुल सिंह लोधी को टिकट दिया गया है.

दमोह का जातीय समीकरण

दमोह लोकसभा सीट में सीधे तौर पर जातीय समीकरण के आधार पर चुनाव की जीत हार तय होती है. 2008 परिसीमन के बाद दमोह लोकसभा की रहली विधानसभा सीट छोड़कर सभी 7 विधानसभा सीटों पर लोधी मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है. वहीं कुर्मी मतदाता भी अच्छी संख्या में हैं, लेकिन लोधी मतदाताओं से उनकी संख्या कम है. लोधी और कुर्मी मतदाता मिलाकर ओबीसी मतदाताओं की बात करें, तो यहां पर करीब 5 लाख दोनों जातियों के मतदाता हैं. जिनकी संख्या करीब 23 फीसदी है. इसके अलावा यादव मतदाता की संख्या करीब एक लाख है. दमोह सीट पर सवर्ण वोटर भी करीब साढे़ तीन लाख मतदाता है।, लेकिन कई तरह की जातियों में बंटे होने के कारण इनका रूझान किसी एक दल की तरफ नहीं होता है. करीब दो लाख आदिवासी वोटर भी दमोह सीट पर है.

DAMOH LOK SABHA SEAT PROFILE
दमोह लोकसभा सीट रोचक जानकारी और मुद्दे

चुनावी मुद्दे

बुंदेलखंड के अन्य जिलों की तरह दमोह लोकसभा सीट की समस्याएं भी गंभीर है. बेरोजगारी और पलायन के अलावा यहां कानून व्यवस्था की स्थिति खराब है. सिंचाई परियोजना के अभाव में यहां कृषि घाटे का सौदा है. ज्यादातर किसान लोग भी अच्छी खेती के अभाव में पलायन के लिए मजबूर हैं और बडे शहरों में मजदूरी और नौकरियां कर रहे हैं.

यहां पढ़ें...

राजाराम की नगरी में क्या BJP को चौथी बार मिलेगा आशीर्वाद, या कांग्रेस के सिर सजेगा जीत का ताज

भाजपा का गढ़ मानी जाती है बुंदलेखंड की सागर सीट, 1991 से कांग्रेस नहीं तोड़ पा रही तिलिस्म

अखिलेश-राहुल के चक्रव्यूह को तोड़ पाएगी BJP, खजुराहो सीट के लिए इंडिया गठबंधन की नई रणनीति

कौन कौन दावेदार

भाजपा ने यहां पूर्व विधायक राहुल सिंह लोधी को टिकट दिया है. गौरतलब है कि 2018 में राहुल सिंह लोधी दमोह सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीते थे, लेकिन 2020 में भाजपा में शामिल हो गए थे. हालांकि उपचुनाव में राहुल लोधी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. जातिगत समीकरणों के आधार पर पार्टी ने उन्हें लोकसभा में मौका दिया है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के टिकट को लेकर अभी मंथन जारी है. कांग्रेस यहां से लोधी उम्मीदवार के साथ-साथ कुर्मी उम्मीदवार के नाम पर भी मंथन कर रही है.

सागर। बुंदेलखंड की 4 संसदीय सीटों में दमोह लोकसभा सीट की बात करें, तो ये सीट एक तरह से भाजपा का गढ़ बन चुकी है. बुंदेलखंड का दमोह की पहचान एक धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगरी के रूप में है. यहां पर बांदकपुर में भगवान जागेश्वर नाथ का मंदिर बुंदेलखंड में आस्था का केंद्र है. वहीं जैन तीर्थ के रूप में मशहूर कुंडलपुर मंदिर भी प्रसिद्ध है. जहां बडे़ बाबा की प्रतिमा विराजमान है. इस सीट की बात करें, तो 2008 परिसीमन के बाद ये सीट एक तरह लोधी बाहुल्य सीट हो गयी है. राजनीतिक दल भी लोधी प्रत्याशियों को मौका देते हैं, क्योंकि इस लोकसभा की आठ सीटों में से सात सीटों पर लोधी मतदाताओं की संख्या ज्यादा है.

दमोह लोकसभा सीट

2008 के परिसीमन के बाद दमोह लोकसभा सीट में सागर जिले की तीन रहली, देवरी और बंडा विधानसभा, दमोह की चार दमोह, पथरिया, हटा और जबेरा और छतरपुर की बड़ामलहरा सीट शामिल है. दमोह में पुरूष मतदाताओं की संख्या 10 लाख 7 हजार 149 और महिला मतदाताओं की 9 लाख 14 हजार 853 और अन्य मतदाताओं की संख्या 18 है. इस तरह कुल मतदाता 19 लाख 22 हजार 20 है.

दमोह लोकसभा सीट का इतिहास

दमोह लोकसभा सीट की बात करें, तो दमोह लोकसभा 1962 में अस्तित्व में आयी थी. जब पहली बार दमोह सीट बनी, तो ये अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी. 1977 में हुई परिसीमन के बाद ये सीट अनारक्षित हो गयी और दमोह की 4, पन्ना की तीन और छतरपुर की एक सीट को शामिल किया गया. लोकसभा का नाम दमोह पन्ना लोकसभा दिया गया. 1977 में कांग्रेस की हार हुई और भारतीय लोकदल के उम्मीदवार नरेंद्र सिंह सांसद बने थे. इसके बाद 1980 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और 1984 का चुनाव भी जीता, लेकिन 1989 में इस सीट पर भाजपा के लोकेन्द्र सिंह ने जो भाजपा की जीत का सिलसिला शुरू किया, तो अब तक कायम है.

2008 के परिसीमन में ये सीट नए स्वरूप में सामने आयी. जिसमें सागर की तीन रहली, बंडा और देवरी और दमोह की दमोह, पथरिया,हटा और जबेरा और छतरपुर की बड़ी मलहरा को शामिल किया गया. नए परिसीमन में ये लोकसभा सीट लोधी बाहुल्य लोकसभा सीट हो गयी और 2009 से यहां पर भाजपा के लोधी नेता लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं.

चुनाव परिणाम

लोकसभा चुनाव 2009: भाजपा के शिवराज सिंह लोधी 3 लाख 2 हजार 673 वोट मिले. वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंदी चंद्रभान सिंह लोधी को 2 लाख 31 हजार 796 वोट मिले. इस तरह भाजपा के शिवराज सिंह लोधी 70 हजार 877 वोटों से चुनाव जीत गए.

लोकसभा चुनाव 2014: 2014 में मोदी लहर के बीच दमोह लोकसभा से फिर भाजपा ने प्रहलाद पटेल (लोधी) को चुनाव मैदान में उतारा और उन्हें 5 लाख 13 हजार 79 वोट हासिल हुए. भाजपा के प्रहलाद पटेल ने अपने निकटतम प्रत्याशी कांग्रेस के चौधरी महेंद्र प्रताप सिंह को 2 लाख 99 हजार 780 वोट मिले. इस तरह से कांग्रेस 2 लाख 13 हजार 299 मतो सें चुनाव हार गयी.

लोकसभा चुनाव 2019: लोकसभा चुनाव में एक बार फिर प्रहलाद पटेल को भाजपा ने टिकट दिया और इस बार उन्होंने 7 लाख 4 हजार 524 मत हासिल किए. वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के प्रताप सिंह को 3 लाख 51 हजार 113 वोट मिले. इस तरह प्रहलाद पटेल 3 लाख 53 हजार 411 मतों से चुनाव जीत गए.

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दमोह लोकसभा सीट 2019 के परिणाम

35 साल से दमोह सीट पर भाजपा का कब्जा

बुंदेलखंड की दमोह सीट की बात करें, तो पिछले 35 साल से यहां भाजपा का तिलिस्म कांग्रेस नहीं तोड़ पायी है. 1989 में यहां से जहां भाजपा की हार की जीत का सिलसिला शुरू हुआ, तो 1991 से लगातार 4 चुनाव जीतकर रामकृष्ण कुसमारिया ने सीट भाजपा की झोली में डाली. इसके बाद 2004 में भाजपा के चंद्रभान सिंह लोधी सांसद बने और फिर 2008 के परिसीमन के बाद 2009 से अब तक लगातार भाजपा ने लोधी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. इस बार 2024 में भाजपा में कांग्रेस से आए राहुल सिंह लोधी को टिकट दिया गया है.

दमोह का जातीय समीकरण

दमोह लोकसभा सीट में सीधे तौर पर जातीय समीकरण के आधार पर चुनाव की जीत हार तय होती है. 2008 परिसीमन के बाद दमोह लोकसभा की रहली विधानसभा सीट छोड़कर सभी 7 विधानसभा सीटों पर लोधी मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है. वहीं कुर्मी मतदाता भी अच्छी संख्या में हैं, लेकिन लोधी मतदाताओं से उनकी संख्या कम है. लोधी और कुर्मी मतदाता मिलाकर ओबीसी मतदाताओं की बात करें, तो यहां पर करीब 5 लाख दोनों जातियों के मतदाता हैं. जिनकी संख्या करीब 23 फीसदी है. इसके अलावा यादव मतदाता की संख्या करीब एक लाख है. दमोह सीट पर सवर्ण वोटर भी करीब साढे़ तीन लाख मतदाता है।, लेकिन कई तरह की जातियों में बंटे होने के कारण इनका रूझान किसी एक दल की तरफ नहीं होता है. करीब दो लाख आदिवासी वोटर भी दमोह सीट पर है.

DAMOH LOK SABHA SEAT PROFILE
दमोह लोकसभा सीट रोचक जानकारी और मुद्दे

चुनावी मुद्दे

बुंदेलखंड के अन्य जिलों की तरह दमोह लोकसभा सीट की समस्याएं भी गंभीर है. बेरोजगारी और पलायन के अलावा यहां कानून व्यवस्था की स्थिति खराब है. सिंचाई परियोजना के अभाव में यहां कृषि घाटे का सौदा है. ज्यादातर किसान लोग भी अच्छी खेती के अभाव में पलायन के लिए मजबूर हैं और बडे शहरों में मजदूरी और नौकरियां कर रहे हैं.

यहां पढ़ें...

राजाराम की नगरी में क्या BJP को चौथी बार मिलेगा आशीर्वाद, या कांग्रेस के सिर सजेगा जीत का ताज

भाजपा का गढ़ मानी जाती है बुंदलेखंड की सागर सीट, 1991 से कांग्रेस नहीं तोड़ पा रही तिलिस्म

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कौन कौन दावेदार

भाजपा ने यहां पूर्व विधायक राहुल सिंह लोधी को टिकट दिया है. गौरतलब है कि 2018 में राहुल सिंह लोधी दमोह सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीते थे, लेकिन 2020 में भाजपा में शामिल हो गए थे. हालांकि उपचुनाव में राहुल लोधी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. जातिगत समीकरणों के आधार पर पार्टी ने उन्हें लोकसभा में मौका दिया है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के टिकट को लेकर अभी मंथन जारी है. कांग्रेस यहां से लोधी उम्मीदवार के साथ-साथ कुर्मी उम्मीदवार के नाम पर भी मंथन कर रही है.

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