दमोह। क्या ये संभव है कि बिना नियुक्ति, बिना दस्तावेजों के सरकारी नौकरी मिल जाए. दमोह में 3 लोग करीब दो दशक से फर्जी तरीके से नौकरी कर रहे हैं. मामले का खुलासा होने पर हड़कंप मच गया. कई शिकायतों के बाद न्यायालय आयुक्त नि:शक्तजन मध्य प्रदेश ने मामले की जांच के आदेश उप संचालक को दिए. लेकिन जांच 3 महीने में पूरी नहीं हो पाई है. हालांकि 15 दिन में यह जांच करके संबंधितों पर कार्रवाई की जाना थी, लेकिन जिला पंचायत के अधिकारी ही मामले को दबाने में लगे हुए हैं. वे बार-बार मामला जांच में होने का हवाला देकर पल्ला झाड़ रहे हैं.
तीन माह में होनी थी जांच, केवल कमेटी ही बन सकी
दरअसल, दिव्यांग पुनर्वास केंद्र में करीब 18 वर्षों से फिजियोथैरेपिस्ट डॉ.रियाज कुरैशी, लेखपाल कम स्टोर कीपर धर्मेंद्र परिहार तथा अटेंडर कम भृत्य प्रदीप नामदेव बिना नियुक्ति के नौकरी कर रहे हैं. वे लगातार वेतन भी ले रहे हैं. नि:शक्तजन मध्य प्रदेश के सहायक संचालक सुनील शर्मा ने मामले की जांच के आदेश उपसंचालक को दिए. यह आदेश 23 जनवरी 2024 को जारी किए गए थे. इसमें लिखा था कि 15 दिन के भीतर जांच करके कार्रवाई की जाए. इस आदेश के बाद जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी जितेंद्र जैन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया.
जिला पंचायत सीईओ की भूमिका संदिग्ध
कमेटी में सदस्य के रूप में एवं अतिरिक्त पेंशन अधिकारी दीपक जैन तथा समग्र सामाजिक सुरक्षा विस्तार अधिकारी यशस्वनी गजोरिया को शामिल किया गया. जिला पंचायत के सीईओ ने यह आदेश 1 फरवरी 2024 को जारी किया था, लेकिन 3 महीने से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी जांच अभी तक पूरी नहीं हो पाई है. इस मामले में जिला पंचायत सीईओ की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं ? उन्होंने एक पत्र जारी किया है जिसमें आरोपित कर्मचारियों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया है. इसमें कहा गया है कि यदि उनके पास नियुक्ति प्रमाण पत्र या उससे संबंधित कोई दस्तावेज हों तो लेकर उनके समक्ष उपस्थित हों. जबकि इसके पूर्व जब जांच की गई थी तब उसमें उपरोक्त तीनों ही कर्मचारी लिखित में यह जवाब दे चुके हैं कि उनके पास किसी तरह का कोई नियुक्ति प्रमाण पत्र नहीं है.
विभाग के पास फर्जी कर्मचारियों के कोई दस्तावेज तक नहीं
वहीं विभाग के एक पत्र से इस बात का खुलासा हुआ है कि उपरोक्त तीनों कर्मचारियों की नियुक्ति संबंधी कोई भी फाइल या महत्वपूर्ण दस्तावेज विभाग में है ही नहीं. इसका मतलब है कि तीनों कर्मचारी फर्जी तरीके से अब तक नौकरी करते आ रहे हैं. एक भी दस्तावेज तीनों कर्मचारियों के पास नहीं थे. एक बात और भी निकल कर सामने आई है कि तीनों कर्मचारी न तो नियमित रूप से भर्ती किए गए हैं और न ही यह संविदा आधार पर कार्य पर रखे गए हैं. क्योंकि यदि यह संविदा आधार पर कार्यरत होते तो अन्य सभी कर्मचारियों की भांति प्रतिवर्ष इनका संविदा कार्यकाल अनुबंध के आधार पर आगे बढ़ाया जाता है, लेकिन पिछले 18 वर्षों में एक बार भी इनका संविदा का कार्यकाल आगे नहीं बढ़ाया गया.
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कलेक्टर ने कहा- एक सप्ताह में होगी कार्रवाई
जब जांच समिति के अध्यक्ष अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी जितेंद्र जैन से उनका पक्ष जानना चाहा तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. इस मामले में कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर का कहना है "यह मामला उनके संज्ञान में है और अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए गए हैं. इस सप्ताह तक जांच पूरी होने की उम्मीद है. इस तरह के गंभीर मामलों की मॉनिटरिंग वह स्वयं करते हैं. उन्होंने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि हम जल्द ही जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करेंगे."