दमोह: नगर का सबसे बड़ा श्री देव जानकी रमण बंदा बहू मंदिर ट्रस्ट बार फिर सुर्खियों में आ गया है. पिछले 4 वर्षों से मंदिर कमेटी में हुए आर्थिक गबन को लेकर लगातार मामला चल रहा है. लंबे समय से इस गबन के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे मंदिर ट्रस्ट के आचार्य एवं उनके सहयोगियों ने इस बात का खुलासा प्रेस वार्ता में किया. गौरतलब है कि मंदिर की अधिकांश प्रॉपर्टी बाजार क्षेत्र में ही स्थित है. जिसका मूल्य कई करोड़ रुपए है. मंदिर की आमदनी भी लाखों रुपए महीना है.
जांच में 79 लाख से ज्यादा का गबन
मंदिर कमेटी द्वारा किए गए आर्थिक गबन के मामले पर अनुविभागीय अधिकारी आर एल बागरी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का लेख किया है. मंदिर ट्रस्ट के आचार्य पंडित चंद्र गोपाल पौराणिक ने प्रेस वार्ता में बताया कि, ''मंदिर में करीब ढाई करोड रुपए का गबन हुआ है. जिसमें प्रथम दृष्टया रोकड़ की जांच होने पर 79 लाख 22 हजार रुपए का आर्थिक गबन सामने आया है. जबकि बैंक में मात्र 8 लाख 23 हजार ही जमा हुए हैं.''
पारिवारिक सदस्यों को लाभ पहुंचाने का आरोप
इस संबंध में चंद्र गोपाल पौराणिक ने एक शिकायत एसडीएम कोर्ट में दर्ज कराई थी. जिसमें ट्रस्ट के पदाधिकारियों द्वारा हेरा फेरी कर अपने पारिवारिक सदस्यों को वित्तीय लाभ पहुंचाने, जमीन की खरीदी का भुगतान, लेन देन, मूर्ति निर्माण में लागत से ज्यादा का भुगतान, मंदिर के जीर्णोद्धार सहित कई आरोप लगाते हुए साक्ष्य सहित अपना पक्ष रखा था. जिसमें चार्टर अकाउंटेंट की रिपोर्ट भी शामिल थी. मंदिर ट्रस्ट कमेटी के चार्टर्ड एकाउंटेंट ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया कि मंदिर का रोकड़, बैंकों की पासबुक, खर्च बिल वाउचर आदि में बहुत अधिक अंतर है. जो की मंदिर ट्रस्ट कमेटी द्वारा प्रस्तुत रोकड़ से मेल नहीं खाता है.
चंद्र गोपाल पौराणिक द्वारा जारी प्रेस नोट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि, ''मंदिर परिसर के बाहर जो बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं, उनकी लागत करीब एक करोड़ 20 लाख रुपए दर्शाई गई है. जबकि उनकी वास्तविक लागत उससे काफी कम है. इसके अलावा ट्रस्ट के सदस्य सचिन असाटी ने तीन लोगों के साथ मिलकर 2014 में ग्राम महंतपूर के पास 13 लाख रुपए की एक जमीन गौशाला के नाम पर खरीदी थी. बाद में इसी जमीन को 96 लाख रुपए का दर्शाकर राशि निकाली गई. जबकि मंदिर ट्रस्ट के पास जमीन की कोई कमी नहीं है.
जिला न्यायालय के अधीन है मंदिर
चंद्र गोपाल पौराणिक ने आरोप लगाया कि, ''यह सारा आर्थिक गबन मंदिर के पूर्व अध्यक्ष देवी सिंह राजपूत एवं कार्यकारिणी द्वारा किया गया. यह जिले का ऐसा दूसरा मंदिर है जो जिला प्रशासन के अधीन न होकर जिला न्यायालय के अधीन है. रजिस्टर पब्लिक ट्रस्ट दमोह ने अपने निर्णय में इस बात का उल्लेख किया था कि मंदिर कमेटी को भंग करके तहसीलदार को रिसीवर नियुक्त किया जाना उचित होगा. धारा 26 मध्य प्रदेश लोकन्यास के तहत जिला एवं सत्र न्यायालय महोदय को प्रकरण प्रेषित कर दिया गया, लेकिन अभी तक रिसीवर नियुक्त नहीं किया गया है.''
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खुद आमंत्रित सदस्य बन गए मंदिर कमेटी अध्यक्ष
मंदिर आचार्य एवं उनके सहयोगियों की तरफ से अधिवक्ता अजय बाजपेई ने बताया कि, ''मंदिर ट्रस्ट के नियम को न मानकर ट्रस्ट ने लगातार व्यापक गड़बड़ियां की हैं. जैसे स्पष्ट प्रावधान है कि किसी को भी आमंत्रित सदस्य नहीं बनाया जा सकता, लेकिन मंदिर कमेटी के अध्यक्ष देवी सिंह राजपूत अध्यक्ष पद से हटने के बाद खुद ही आमंत्रित सदस्य बन गए. इसी तरह एक अन्य ट्रस्टी सचिन असाटी के पिता पीताम्बर असाटी को भी मंदिर का विशेष आमंत्रित सदस्य बना लिया गया.''
अजय बाजपेई ने बताया, ''एक और चौंकाने वाली बात यह है की देवी सिंह राजपूत जिस समय मंदिर कमेटी के अध्यक्ष थे उसी समय वह जिला न्यायालय में अपर लोक अभियोजक भी थे. जबकि प्रावधान है कि कोई भी सरकारी सदस्य मंदिर ट्रस्ट कमेटी में सदस्य या पदाधिकारी नहीं बनाया जा सकता है. एक ही परिवार के दूसरा मेंबर भी सदस्य नहीं बन सकता है. लेकिन एक ही परिवार के दो दो लोग सदस्य बना दिए गए. इसी तरह अध्यक्ष पद से हटने के बाद देवी सिंह राजपूत ने अपने ही साले कीरत सिंह राजपूत को मंदिर ट्रस्ट कमेटी का अध्यक्ष बना दिया. इस तरह की कई अन्य सारी गड़बड़ियां भी सामने आई हैं.''