जांजगीर चांपा: छत्तीसगढ़ की पहचान धान के कटोरे से और अपनी लोक कला से है. फसल के लगाने से लेकर फसल की कटाई तक के समय को किसान पर्व की तरह मनाते हैं. दहीकांदो एक ऐसी पारंपरिक लोक कला का त्योहार है जिसे किसान बड़े चाव से मनाते हैं. जिस दिन गांव में दहीकांदो मनाया जाता है उस दिन किसानों के घर में त्योहार सा आयोजन होता है. दहीकांदो मनोरंजन के साथ साथ सामाजिक और आर्थिक भेदभाव को खत्म करने वाला गांव का त्योहार है. छोटे बड़े सभी किसान दहीकांदो का आनंद लेते हैं और मिल जुलकर इसे त्योहार के तौर पर मनाते हैं. खोखरा ग्राम पंचायत में हर साल दहीकांदो का आयोजन गांव वाले करते हैं.
दहीकांदो की परंपरा: दहीकांदो में श्री कृष्ण के जन्म उत्सव को मनाया जाता है. सात दिनों तक ये उत्सव गांव में चलता है. लोग नाच गाकर अपना और गांव वालों का मनोरंजन करते हैं. लोक कला और लोक परंपरा के तौर पर मनाए जाने वाले दहीकांदों में पूरा गांव शामिल होता है. बच्चे बूढ़े सब मिलकर नाचते गाते हैं. खुशियां मनाते हैं. दहीकांदो में पालकी में भगवान श्री कृष्ण को बिठाकर नाचगे गाते हैं, दही का छिड़काव भी करते हैं. सात दिनों तक ये त्योहार की तरह दहीकांदो मनाया जाता है.
ये भगवान श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव है. गांव भर के लोग इस उत्सव में शामिल होते हैं.: राधा कुमार, बुजुर्ग बैगा
दहीकांदो में श्री कृष्ण की लीला दिखाई जाती है. सालों से ये परंपरा हमारे गांव में चली आ रही है.: भरत लाल कहरा, स्थानीय
लोक कला और परंपरा के पीछे की कहानी: गांव वालों का कहना है कि गांव के माता चौरा में दहीकांदो का आयोजन किया जाता है. दहीकांदो कृष्ण की भक्ति से जुड़ा है. दूर दराज से कलाकार भी इसमें शामिल होने के लिए आते हैं. लोक कलाकारों को भी अपनी कला दिखाने का ये बेहतर मंच होता है. खोखरा ग्राम पंचायत के लोग दशकों से इस परंपरा को जीवत रखे हुए हैं. गांव के लोग माता चौरा में लगे कदम के पेड़ को राधा रानी और कृष्ण का प्रतीक मानकर पूजते हैं. गांव के लोग अपने अपने घरों से मेकअप कर मंच पर आते हैं और लोक धुन पर झूमते हैं. कलाकारों की मनोरंजन कला को देखकर लोगों की हंसी छूट जाती है.
हमें यहां आकर बहुत अच्छा लगा. लोग सज धज कर यहां आते हैं. हमें मेकअप करने में करीब एक घंटा लग जाता है.: मोहित कुमार, कलाकार
हमारे पूर्वजों के समय से ये त्योहार की तरह मनाने की पंरपरा चला आ रही है. पूरा गांव इस आयोजन में शामिल होता है.: सुशील कुमार कहरा, ग्रामीण
खोखरा गांव में जीवित हो सालों पुरानी छत्तीसगढ़िया परंपरा: भाग दौड़ भरी जिंदगी और हाइटेक टेक्नोलॉजी की दुनिया में आज भी दहीकांदो का उत्साह खोखरा ग्राम में देखते ही बनता है. जिस उत्साह के साथ बच्चे, बूढ़े और जवान गांव के मंच पर नाचते गाते हैं उसे देखकर गांव वालों का मिजाज खुश हो जाता है. अपनी कला और परंपरा के जरिए खोखरा के लोग आज भी सालों पुरानी मनोरंजन विधि और लोक कला को जिंदा रखे हुए हैं.