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उत्तराखंड सीएम आवास, राजभवन समेत कई सरकारी भवनों पर करोड़ों का हाउस टैक्स बकाया! गढ़ी कैंट बोर्ड हुआ लाचार

आम आदमी छोड़िए, सरकार भी भवन कर जमा करने में काफी पीछे है. गढ़ी कैंट बोर्ड का सरकारी भवनों पर करोड़ों रुपए बकाया है.

DEHRADUN
गढ़ी कैंट बोर्ड देहरादून. (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 2 hours ago

Updated : 2 hours ago

देहरादून: बजट की कमी से जूझ रहा गढ़ी कैंट बोर्ड सरकार के कई विभागों से भी परेशान है. बोर्ड को कई सरकारी भवनों से बकाया कर नहीं मिल रहा है. कर जमा नहीं करने वालों में सीएम आवास से लेकर राजभवन और बीजापुर गेस्ट हाउस तक शामिल हैं. गढ़ी कैंट बोर्ड में पांच ऐसे सरकारी भवन हैं, जिन पर प्रॉपर्टी टैक्स के रूप में करोड़ों रुपए बकाया है.

सरकारी भवनों पर कर का करोड़ों रुपए बकाया: गढ़ी कैंट बोर्ड के अंतर्गत पांच बड़े सरकारी भवन आते हैं. इनमें सीएम आवास, राजभवन, बीजापुर गेस्ट हाउस, एफआरआई और प्रेमनगर का सरकारी हॉस्पिटल शामिल है. इसमें से कुछ भवनों जैसे राजभवन ने तो अपना कर जमा कर दिया था, लेकिन मुख्यमंत्री आवास का साल 2009 से कोई टैक्स जमा नहीं हुआ है. इस तरह कुल मिलाकर मुख्यमंत्री आवास पर करीब 85 लाख से ज्यादा का कर बकाया है.

देहरादून में सरकारी भवनों पर हाउस टैक्स का करोड़ों रुपए बकाया (ETV Bharat)

राजभवन ने 23 में 13 लाख रुपए ही जमा कराया: वहीं, राजभवन पर भी साल 2022 से अब तक का करीब 23 लाख रुपए का कर था. इसमें से 13 लाख रुपए जमा किए जा चुके हैं. अभी भी करीब 10 लाख रुपए का बकाया कर है. वहीं बीजापुर गेस्ट हाउस पर साल 2022 से अब तक 20 लाख रुपए से ज्यादा का कर बकाया है.

प्रेम नगर सरकारी हॉस्पिटल पर 58 लाख रुपए बकाया: इसके अलावा प्रेमनगर में संयुक्त अस्पताल स्वास्थ्य विभाग के अधीन है. इस अपस्ताल पर साल 2022 से अब तक 58 लाख रुपए कर बकाया है. कई बार छावनी परिषद की ओर से सीएमओ देहरादून को इस संबध में पत्र लिखा गया है, लेकिन आज तक बकाया कर जमा नहीं किया गया है.

एफआरआई ने पांच करोड़ से ज्यादा देने हैं: सबसे बुरी हालत एफआरआई की है. एफआरआई पर करीब साढ़े पांच करोड़ कर बकाया है. जब कैंट बोर्ड ने बार-बार पत्राचार किया तो एफआरआई ने कर बकाया तीन हिस्सों में विभाजित कर दिया. साथ ही आधा हिस्सा एफआरआई का है, जबकि बाकी आधे में सेंटर एकेडमी स्टेट फॉरेस्ट और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी का क्षेत्र है. जिसके बाद बोर्ड ने 2.63 करोड़ के कर वसूली के लिए एफआरआई और बाकी के ढाई करोड़ का बिल दोनों संस्थानों को भेजा है.

गढ़ी कैंट बोर्ड के सीईओ का बयान: इस बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए गढ़ी कैंट बोर्ड के सीईओ हरेंद्र सिंह का कहना है कि गढ़ी कैंट छावनी बोर्ड का करोड़ों रुपए सरकारी कार्यालयों पर कर बकाया है. बोर्ड समय-समय पर संबंधित विभागों के साथ पत्राचार करता है, लेकिन अब तक कर का भुगतान नहीं किया गया है.

गढ़ी कैंट छावनी बोर्ड में कुल आठ वार्ड है और बोर्ड का सालाना खर्चा करीब 48 करोड़ रुपए है. केंद्र से बोर्ड में करीब 25 करोड़ आते है. बाकी खर्चा बोर्ड कर के रूप इकट्ठा करता है. साथ ही गढ़ी कैंट छावनी बोर्ड का हाउस टैक्स भी नगर निगम के हाउस टैक्स से 10 प्रतिशत अधिक है.

बड़े भवनों पर करोड़ों रुपए का कर बकाया होने के कारण बोर्ड को स्टाफ और पेंशनर्स को वेतन भत्ता तक देने में दिक्कत हो रही है. साथ ही बोर्ड का भी विकास नहीं हो रहा है. इतना ही नहीं 6 महीने पहले स्टाफ की तीन महीने की सैलरी भी रुक गई थी, जिसके बाद केंद्र से अनुरोध करने पर रकम आई थी.

वहीं, सीईओ का कहना है कि बोर्ड के स्टाफ से लेकर विकास कार्य का खर्चा अधिकतर कर से होता है, लेकिन समय से कर जमा नहीं होने पर बोर्ड को बजट की कमी से जूझना पड़ता है. अगर सभी भवनों से बकाया कर आ जाता है, तो बोर्ड की स्थिति काफी हद तक सही हो पाएगी और विकास कार्य भी कर पाएंगे.

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देहरादून: बजट की कमी से जूझ रहा गढ़ी कैंट बोर्ड सरकार के कई विभागों से भी परेशान है. बोर्ड को कई सरकारी भवनों से बकाया कर नहीं मिल रहा है. कर जमा नहीं करने वालों में सीएम आवास से लेकर राजभवन और बीजापुर गेस्ट हाउस तक शामिल हैं. गढ़ी कैंट बोर्ड में पांच ऐसे सरकारी भवन हैं, जिन पर प्रॉपर्टी टैक्स के रूप में करोड़ों रुपए बकाया है.

सरकारी भवनों पर कर का करोड़ों रुपए बकाया: गढ़ी कैंट बोर्ड के अंतर्गत पांच बड़े सरकारी भवन आते हैं. इनमें सीएम आवास, राजभवन, बीजापुर गेस्ट हाउस, एफआरआई और प्रेमनगर का सरकारी हॉस्पिटल शामिल है. इसमें से कुछ भवनों जैसे राजभवन ने तो अपना कर जमा कर दिया था, लेकिन मुख्यमंत्री आवास का साल 2009 से कोई टैक्स जमा नहीं हुआ है. इस तरह कुल मिलाकर मुख्यमंत्री आवास पर करीब 85 लाख से ज्यादा का कर बकाया है.

देहरादून में सरकारी भवनों पर हाउस टैक्स का करोड़ों रुपए बकाया (ETV Bharat)

राजभवन ने 23 में 13 लाख रुपए ही जमा कराया: वहीं, राजभवन पर भी साल 2022 से अब तक का करीब 23 लाख रुपए का कर था. इसमें से 13 लाख रुपए जमा किए जा चुके हैं. अभी भी करीब 10 लाख रुपए का बकाया कर है. वहीं बीजापुर गेस्ट हाउस पर साल 2022 से अब तक 20 लाख रुपए से ज्यादा का कर बकाया है.

प्रेम नगर सरकारी हॉस्पिटल पर 58 लाख रुपए बकाया: इसके अलावा प्रेमनगर में संयुक्त अस्पताल स्वास्थ्य विभाग के अधीन है. इस अपस्ताल पर साल 2022 से अब तक 58 लाख रुपए कर बकाया है. कई बार छावनी परिषद की ओर से सीएमओ देहरादून को इस संबध में पत्र लिखा गया है, लेकिन आज तक बकाया कर जमा नहीं किया गया है.

एफआरआई ने पांच करोड़ से ज्यादा देने हैं: सबसे बुरी हालत एफआरआई की है. एफआरआई पर करीब साढ़े पांच करोड़ कर बकाया है. जब कैंट बोर्ड ने बार-बार पत्राचार किया तो एफआरआई ने कर बकाया तीन हिस्सों में विभाजित कर दिया. साथ ही आधा हिस्सा एफआरआई का है, जबकि बाकी आधे में सेंटर एकेडमी स्टेट फॉरेस्ट और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी का क्षेत्र है. जिसके बाद बोर्ड ने 2.63 करोड़ के कर वसूली के लिए एफआरआई और बाकी के ढाई करोड़ का बिल दोनों संस्थानों को भेजा है.

गढ़ी कैंट बोर्ड के सीईओ का बयान: इस बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए गढ़ी कैंट बोर्ड के सीईओ हरेंद्र सिंह का कहना है कि गढ़ी कैंट छावनी बोर्ड का करोड़ों रुपए सरकारी कार्यालयों पर कर बकाया है. बोर्ड समय-समय पर संबंधित विभागों के साथ पत्राचार करता है, लेकिन अब तक कर का भुगतान नहीं किया गया है.

गढ़ी कैंट छावनी बोर्ड में कुल आठ वार्ड है और बोर्ड का सालाना खर्चा करीब 48 करोड़ रुपए है. केंद्र से बोर्ड में करीब 25 करोड़ आते है. बाकी खर्चा बोर्ड कर के रूप इकट्ठा करता है. साथ ही गढ़ी कैंट छावनी बोर्ड का हाउस टैक्स भी नगर निगम के हाउस टैक्स से 10 प्रतिशत अधिक है.

बड़े भवनों पर करोड़ों रुपए का कर बकाया होने के कारण बोर्ड को स्टाफ और पेंशनर्स को वेतन भत्ता तक देने में दिक्कत हो रही है. साथ ही बोर्ड का भी विकास नहीं हो रहा है. इतना ही नहीं 6 महीने पहले स्टाफ की तीन महीने की सैलरी भी रुक गई थी, जिसके बाद केंद्र से अनुरोध करने पर रकम आई थी.

वहीं, सीईओ का कहना है कि बोर्ड के स्टाफ से लेकर विकास कार्य का खर्चा अधिकतर कर से होता है, लेकिन समय से कर जमा नहीं होने पर बोर्ड को बजट की कमी से जूझना पड़ता है. अगर सभी भवनों से बकाया कर आ जाता है, तो बोर्ड की स्थिति काफी हद तक सही हो पाएगी और विकास कार्य भी कर पाएंगे.

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