लखनऊ: बीते दिनों राजधानी की जिला कारागार में 36 बंदी एचआइवी संक्रमित मिलने की खबर फैलते ही हड़कंप मच गया था. लोगों ने जेल प्रशासन पर लापरवाही समेत कई तरह के आरोप लगाने लगे. हालांकि जेल प्रशासन ने बंदियों के संक्रमित होने के पीछे का कारण साफ करते हुए बताया कि, जितने भी बंदी संक्रमित पाए गए है, वे जेल में आने से पहले ही संक्रमित थे जिसकी सबसे बड़ी वजह सिरिंज से ड्रग्स लेना है.
जेल अधीक्षक लखनऊ आशीष तिवारी ने बताया कि 1 जनवरी 2023 तक लखनऊ जेल में 47 बंदी एचआईवी पॉजिटिव थे. सितंबर 2023 से एचआईवी टेस्टिंग किट जेल में उपलब्ध नहीं थी, जिस कारण 3 दिसंबर 2023 तक जेल में दाखिल होने वाले बंदियों की जांच नही हो सकी थी. ऐसे में 3 दिसंबर को जेल में आयोजित कैंप में जब बंदियों की एचआईवी जांच कराई गई तो उसमें से 36 बंदी एचआईवी पॉजिटिव मिले. जेल अधीक्षक ने बताया कि पूर्व में एचआईवी से ग्रसित 47 बंदियों में समय-समय पर अब तक कुल 20 बंदी रिहा हो चुके हैं और वर्तमान में कुल 63 बंदी एचआईवी से ग्रस्त है जिनका उपचार कराया जा रहा है.
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सिरिंज से ड्रग्स लेने से हुए HIV संक्रमित
जेल अधीक्षक आशीष तिवारी ने बताया कि जो बंदी एचआईवी पॉजिटिव मिले है, इनमें से अधिकाश बंदी ड्रग एडिक्ट है जो जेल में आने से पहले सिरिंज से विभिन्न प्रकार का नशा लेते थे. कारागार में प्रवेश करने के बाद कोई बंदी एचआईवी से संक्रमित नहीं हुआ है. सभी बंदियों का एचआईवी सेंटर से नियमित रूप से उपचार कराया जा रहा है और पिछले 5 वर्षों में एचआईवी के संक्रमण से किसी भी बंदी की मृत्यु जिला कारागार लखनऊ में नहीं हुई है.
क्यों होती है HIV जांच
दरअसल, एचआइवी जांच की प्रक्रिया जेल में दाखिल होने वाले हर नए बंदी की हेपेटाइटिस व एचआइवी प्रारंभिक जांच होती है. एक शुरुआती किट से एचआइवी की जांच में संक्रमित मिलने पर उसकी पुष्टि के लिए रिपोर्ट स्थानीय सीएससी केंद्र भेजी जाती है. सीएचसी की टीम बंदी की जांच कर पुष्टि करती है तो उसकी रिपोर्ट केजीएमयू स्थित एआरटी सेंटर लखनऊ भेजी जाती है, जहां प्रारंभिक जांच के बाद उपचार शुरू हो जाता है. इसके बाद एचआइवी संक्रमित बंदी की ग्रीन बुक बनाकर जेल प्रशासन को भेज दी जाती है.
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