प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अग्रिम जमानत देने के क्षेत्राधिकार में ठोस न्यायिक सिद्धांतों पर काम करने की आवश्यकता है. अदालत को उन अभियुक्तों को अग्रिम जमानत देने में सुस्ती दिखानी चाहिए जो कानून का पालन नहीं करते और अपराध करते हैं.
मुकेश, तुषार, विकास सहित 13 आरोपियों की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने यह टिप्पणी की. सभी आरोपियों के खिलाफ हापुड़ के पिलखुवा थाने में मारपीट, जान से मारने का प्रयास, बलवा करने सहित तमाम गंभीर धाराओं में 22 अप्रैल 2024 को मुकदमा दर्ज किया गया था. इसमें गिरफ्तारी से बचने के लिए अभियुक्तों ने हाई कोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल की थी.
कहा गया कि शिकायतकर्ता और याचीगण एक ही गांव के रहने वाले हैं. गाजियाबाद में एक शादी समारोह में बच्चों के बीच कुछ विवाद हुआ था. इसके बाद जब शिकायतकर्ता अपने परिवार के साथ रात करीब 1 बजे घर पहुंचा, तो आरोपी पहले से उनका इंतजार कर रहे थे. उन पर लाठी , डंडों तथा तमंचे से हमला कर दिया गया. इसमें कुल 11 लोग घायल हो गए. साथ ही दो लोगों को गोली लगी थीं तथा एक अन्य गंभीर रूप से घायल है.
याचियों के अधिवक्ता सुनील कुमार और बृजेश कुमार गुप्ता का कहना था कि सभी आरोप सामान्य प्रकृति के हैं. आरोपी तुषार ,अमित, आशीष और राहुल पर फायरिंग करने का आरोप है. किसी को भी गंभीर चोट नहीं आई है, जिससे कहा जा सके कि यह जानलेवा हमला था. शिकायतकर्ता के वकील नवीन कुमार श्रीवास्तव का कहना था कि हमले में कुल 11 लोग घायल हुए हैं, जिसमें से तीन को गंभीर चोटे आई हैं. आरोपियों की ओर से कोई भी घायल नहीं है. यह हमला एक तरफा था और पूर्व नियोजित तरीके से किया गया.
कोर्ट ने कहा कि प्राथमिकी से पता चलता है कि अभियुक्त गणों के खिलाफ अपराध बनता है. याची गण यह नहीं बता सके कि शिकायतकर्ता या अभियोजन ने उनको गलत फंसाया है. कोर्ट ने कहा कि इस तथ्य से नजर नहीं फेरी जा सकती कि अभियुक्त गणों को अनावश्यक संरक्षण देने से समाज की शांति और व्यवस्था और कानून व्यवस्था प्रभावित होती है. कोर्ट ने अपराध की प्रकृति, साक्ष्य और गंभीरता को देखते हुए अग्रिम जमानत अर्जियां खारिज कर दीं.
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