चित्तौड़गढ़. पोक्सो कोर्ट-2 के पीठासीन अधिकारी अमित सहलोत ने पांच साल पुराने मामले में गुरुवार को सुनाए फैसले में दुष्कर्मी को 20 साल की कैद और 30 हजार रुपए का जुर्माने की सजा सुनाई. मामले में पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट और महिला डॉक्टर के बयान में विरोधाभास होने के बावजूद अदालत ने आरोपी को दोषी माना. साथ ही चिकित्सा अधिकारी के खिलाफ उचित कार्रवाई के भी आदेश दिए गए.
लोक अभियोजक अफजल मोहम्मद शेख ने बताया कि 14 जनवरी 2019 को भैंसरोड़गढ़ थाना क्षेत्र में रहने वाली एक 14 वर्षीय बच्ची अपने अन्य तीन-चार दोस्तों के साथ घर के बाहर गिल्ली-डंडा खेल रही थी. इस दौरान 29 वर्षीय आरोपी पीड़िता को बिस्किट दिलाने का झांसा देकर दुकान तक ले गया. वहां से बालिका को बहला फुसलाकर झाड़ी में ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया. पीड़िता जैसे-तैसे अपने घर पहुंची और बेहोश हो गई. परिजन उसे तुरंत रावतभाटा सीएससी लेकर पहुंचे. पीड़िता की हालत देखकर तुरंत डॉक्टर ने भैंसरोड़गढ़ पुलिस को सूचित किया. मौके पर पुलिस पहुंची और पीड़िता का पर्चा बयान लिया, जिसके आधार पर मामला दर्ज किया गया.
आरोपी के खिलाफ पुलिस ने भादसं की धारा 363, 376, 3/4 पोक्सो एक्ट में मामला दर्ज कर विशेष न्यायालय में चालान पेश किया. पीड़िता की ओर से 12 गवाह और 29 दस्तावेज पेश किए गए, जबकि आरोपी की ओर से सिर्फ दो गवाह ही पेश हुए. विशिष्ट न्यायाधीश पोक्सो संख्या द्वितीय के न्यायाधीश अमित सहलोत ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद आरोपी को दोषी मानते हुए भादसं की धारा 363 में सात साल का कठोर कारावास और दस हजार रुपए का जुर्माना, 3/4 पोक्सो एक्ट में 20 साल का कठोर कारावास और 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया. जुर्माना राशि पीड़िता को दिए जाने का आदेश दिया.
महिला डॉक्टर की रिपोर्ट और बयान में फर्क: विशेष लोक अभियोजक ने बताया कि मामले में पीड़िता न्यायालय में घबरा कर अपने बयान से बदल गई, इस पर न्यायालय ने उसे पक्षद्रोही घोषित किया था, लेकिन विशेष लोक अभियोजक ने क्रॉस एग्जामिन कर सभी तथ्यों को सही साबित किया. विशेष बात यह थी कि मेडिकल रिपोर्ट बनाने वाली महिला डॉक्टर कमलेश जाटव ने इस मामले में काफी लापरवाही की. उनकी मेडिकल रिपोर्ट और उनके बयान में फर्क था. इस पर न्यायाधीश ने नाराजगी जताते हुए चिकित्सा अधिकारी पर उचित कार्रवाई करने का आदेश दिया और कहा कि एक जिम्मेदार पद पर रहते हुए भी उन्होंने अपने दायित्व का निर्वहन सही ढंग से नहीं किया.
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उन्होंने इस निर्णय की एक-एक कॉपी राजस्थान के स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव और चित्तौड़गढ़ के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को भी भेजने के आदेश दिए. जज ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जिले में पीड़िताओं के दुष्कर्म का परीक्षण करने वाले सभी चिकित्सा अधिकारियों को परीक्षण सही तरीके से करने चाहिए.