लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में एक जनहित याकिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से स्पष्ट किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए मांगे गए आवेदन पत्रों के सम्बंध में प्रमुख सचिव, प्रशासनिक सुधार विभाग की अध्यक्षता में बनाई गई स्क्रीनिंग कमेटी सिर्फ मिनिस्ट्रीयल (लिपिकीय) कार्य करेगी. स्क्रीनिंग कमेटी आवेदन पत्रों की जांच करेगी कि आवेदन पत्रों में कोई कमी तो नहीं है. सरकार की ओर से आश्वासन दिया गया कि स्क्रीनिंग कमेटी किसी भी आवेदक की मेरिट के आधार पर छंटनी नहीं करेगी.
मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली व न्यायमूर्ति एआर मसूदी की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि इन नियुक्तियों के लिए बनी कमेटी प्रश्नगत चयन के लिए क्या प्रकिया अपनाएगी. इस विषय पर अभी नहीं जाया जा सकता है. इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने महेंद्र अग्रवाल की ओर से दाखिल एक जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया. याचिका में कहा गया था कि सरकार ने 20 नवंबर को अधिसूचना जारी करके मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए आवेदन पत्र मांगे, जिसके सापेक्ष छह सौ से अधिक लोंगो ने आवेदन किया. कहा गया कि इस अधिसूचना के पैरा 10 में कहा गया है कि आवेदन पत्रों की स्क्रीनिंग एक कमेटी करेगी. जिसके अध्यक्ष प्रमुख सचिव, प्रशासनिक सुधार विभाग होंगे. तर्क दिया गया था कि सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 15 (3) के तहत गठित कमेटी को ही नियुक्तियां करने का अधिकार प्राप्त है. साथ ही आशंका प्रकट की गई थी कि स्क्रीनिंग कमेटी आवेदन पत्रों को मेरिट के आधार पर छांट देगी जो सरासर गलत होगा. इस पर सरकार एवं सूचना आयोग की ओर से न्यायालय को आश्वासन दिया गया कि स्क्रींनग कमेटी मात्र मिनिस्ट्रीयल कार्य ही करेगी और मेरिट पर किसी की भी छंटनी नहीं करेगी.
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